मोदी सरकार भारत को चीन और अमेरिका की लड़ाई में मालामाल कैसे करेगी??
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आप सभी का ध्यान हमेशा इस ओर रहता है, की भारत सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम को कैसे आगे बड़ा रही है, ताकि बड़ी संख्या में भारत में रोजगार पैदा हो सकें.
साथ ही आप सभी की मोदी सरकार से साफ़ तौर पर अपेक्षा है, की वह चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक संघर्ष का लाभ उठाये.
अभी कुछ ही दिनों पूर्व, ट्रम्प साहब ने अमेरिकी कंपनियों को ट्विटर पर आर्डर दिया था, की उन्हें जल्द से जल्द चीन को छोड़ना होगा. हालाँकि आपको भी पता है, ट्रम्प के ट्वीट में इतनी तागत नहीं है, की यका यक अमेरिकी कंपनियां अपनी सप्लाई चेन्स चीन से उखाड़कर कहीं और लगा लें.
लेकिन धीरे धीरे सप्लाई चेन्स ने चीन से बहार निकलना तो चालू कर ही दिया है. जैसा की चीन भी अमेरिका के साथ व्यापारिक संघर्ष को महीनो की बात ना मानकर लॉन्ग टर्म का खेल खेलने के लिए तयारी कर रहा है, आगे आने वाले लम्बे समय तक भारत के लिए चीन और अमेरिका की लड़ाई में लाभ उठाने का सुनहरा अवसर सामने खड़ा है.
इसी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, मोदी सरकार ने कल एक बहुत ही important कदम उठाया है.
आप सभी जानकार लोग हैं, भारत ने अभी तक मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत भारत में मैन्युफैक्चरिंग करने के छेत्र में 100 % विदेशी निवेश को अनुमति दी हुई थी.
लेकिन मैन्युफैक्चरिंग पालिसी में इस बात का साफ़ साफ़ जिक्र नहीं था, की जब कोई मल्टी नेशनल कंपनी अपने लिए उत्पादन करती है, इसके लिए तो वह भारत में 100 % का निवेश कर सकती है, लेकिन यदि यही मल्टी नेशनल कंपनी भारत की किसी कंपनी को उत्पादन करने का कॉन्ट्रैक्ट देती है, तो वह ऐसी कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग में कितना निवेश डाल सकती है, यह क्लियर नहीं था.
खास तौर पर कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग का इस्तेमाल फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में किया जाता है, क्यों की बड़ी बड़ी कंपनी ऐसा करके सस्ते में उत्पादन करवा लेती हैं, जिससे स्वाभाविक तौर पर उनका प्रॉफिट मार्जिन भी बढ़ जाता है.
जबकि कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के लाभ बहुत साफ़ है, फिर भी स्थिति साफ ना होने की वजह से, आप ही बताएं, कौन सी विदेशी कंपनी बड़ी मात्रा में अपना पैसा भारत में फसायेगी.
लेकिन कल भारत सरकार ने साफ़ कर दिया है, की मल्टी नेशनल कंपनी को अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भारत में लगाने की जरूरत नहीं है. वह अब मैन्युफैक्चरिंग का कॉन्ट्रैक्ट किसी देसी कंपनी को दे सकती है, और उसके प्लांट में 100% निवेश भी कर सकती है.
कई बड़ी बड़ी कंपनियां छोटे स्तर पर बहुत पहले से भारत में कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग करवा रही है, लेकिन विदेशी निवेश को लेकर गवर्नमेंट की पालिसी क्लियर ना होने की वजह से मेक इन इंडिया को बल नहीं मिल पा रहा था.
आशा है, अब कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के छेत्र में भी भरी निवेश भारत में आएगा. यहाँ पर साफ़ करने वाली बात यह है, की इस कदम को उठाकर यह नहीं कहा जा सकता है, की भारत अमेरिका और चीन की लड़ाई की आग में अपनी रोटियां सेकने का काम कर रहा है.
यदि अमेरिका चीन नहीं लड़ रहे होते, तो भी इस कदम से भारत को लाभ होना तो वैसे भी तय था.
भारत सरकार की पालिसी किसी विशेष देश के लिए नहीं हैं, यहाँ तक की यदि चीन की कंपनियों को भारत में कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग करवा के दुनिया में माल बेचना है, तो उनका भी स्वागत है.
जैसा की इकॉनमी की रफ़्तार धीमी होती हुई जान पड़ती है, हमें पूरा विश्वास है, की मोदी सरकार ऐसे ही स्मार्ट कदम और तेजी के साथ उठाती रहेगी.
आज का बेहद आसान सवाल है, कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के छेत्र में भारत ने अब कितना FDI allow कर दिया है?
पिछले वीडियो में पूछे गए सवाल के लिए आज के लकी विनर हैं, arvind gupta .
और इस वीडियो को देखने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.
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