मोदी जी की ईरान के राष्ट्रपति की मुलाक़ात में क्या खास हुआ?
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Reference -
https://financialtribune.com/articles/domestic-economy/99732/ndfi-funds-for-completing-chabahar-railroad-project
http://www.iran-daily.com/News/235410.html
https://www.news18.com/news/world/indias-decision-to-shut-down-oil-import-hurting-trade-chabahar-work-iranian-envoy-2304767.html
https://www.thehindu.com/news/national/india-should-not-have-joined-us-ban-says-iran/article29386180.ece
जैसा की आपको पता है, की कल प्रधान मंत्री मोदी जी ने ईरान के राष्ट्रपति से अमेरिका में मुलाक़ात करि.
इस मीटिंग का महत्वा सिर्फ इस बात से बढ़ जाता है, की इसी साल जून महीने में इन दोनों नेताओं को SCO समिट के दौरान मिलना था, लेकिन मीटिंग का schedule नहीं मिल पाया, और दोनों देशों के लीडर्स के बीच द्विपक्षीय बातचीत तक नहीं हो पायी.
आप सही समझदार लोग हैं, इसलिए आपको अंदाजा होगा, दोनों पक्षों को मीटिंग का कॉमन स्लॉट नहीं मिल पाया, यह एक बहाना था, या महज एक संयोग था.
कोई बात नहीं, जून न सही सितम्बर महीने में तो दोनों देशो के नेताओं को एक दूसरे से मिलने का समय तो मिला.
इस मीटिंग में चाबहार पोर्ट के ope-rationalization को लेकर दोनों देशो के नेताओं के बीच बात हुई, और सेंट्रल एशिया और अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचने के लिए इस port का भारत के लिए कितना महत्वा है, इसे हाई लाइट किया गया. साथ ही औपचारिक रूप से यह भी याद किया गया, की दोनों देशों के बीच सदियों पुराने सम्बन्ध रहे हैं.
हालाँकि इस मीटिंग से बहार केवल अच्छी बातें ही निकल कर बहार आयी है, लेकिन यह मीटिंग किस बैकग्राउंड में हुई है, उसकी और भी हमें ध्यान देना चाहिए.
आप सभी को पता है, भारत ने अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के कारण, ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है. और स्वाभाविक है, ईरान को यह बात गले नहीं उतर रही है.
लेकिन मई महीन में जब अमेरिका ने ईरान से तेल खरीदने के लिए किसी भी प्रकार की ढील देने से मना कर दिया, तो भारत ने तो ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया, लेकिन चीन चोरी चुपके ईरान से तेल खरीदने के तरीके खोजता रहा है.
इसलिए सवाल उठा था, की भारत ने भी चीन को फॉलो करते हुए, ईरान से तेल खरीदना चालू कर देना चाहिए.
लेकिन इस बार ट्रम्प प्रसाशन ईरान पर मैक्सिमम प्रेशर कैंपेन को लेकर कितना सीरियस है, यह इस बात से पता लगता है, की 25 सितम्बर को अमेरिका ने ईरान से तेल खरीदने वाली चीन की छह कंपनियों पर आर्थिक प्रतिबन्ध जड़ दिए.
अमेरिका के इन ताजा आर्थिक प्रतिबन्ध के जवाब में चीन बासी तरीके से बिल बिलाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाया.
मुद्दे की बात यह है, की क्या भारत अफ़्फोर्ड कर सकता था, की हमारी आयल कंपनियों के पाँव में अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों के पत्थर बंध जाये.
बात साफ़ है, भारत अमेरिका और ईरान की दो नावों पर सवारी एक साथ नहीं कर सकता है. उम्मीद है, ईरान को यह बात समझ आएगी.
लेकिन हमारी दुविधा समझने के बजाये, ईरान भारत पर दवाब बनाने की फालतू कोसिस कर रहा है.
हम सभी को याद है, कश्मीर में धारा 370 का नापाक तिलिस्म टूटने के बाद, पाकिस्तान की धुन पर नाचते हुए ईरान के सुप्रीम लीडर ने साफ तौर पर कहा था, की भारत ने कश्मीर के लोगों का दमन नहीं करना चाहिए.
और तो और चाबहार पोर्ट के विकास के धीमे पड़ने का ठीकरा भी ईरान अब भारत के ही सर पर फोड़ रहा है. वल्कि इसके बजाय ईरान को थैंक यू बोलना चाहिए था, क्योकि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के कारण ही चाबहार पोर्ट को अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों से ढिलाई मिली हुई है.
बात यही पर ख़तम हो जाती तो ठीक होता, लेकिन इसी महीने की शुरुआत में ईरान के सुप्रीम लीडर ने निर्णय लिया, की अब ईरान अकेला अपने पैसे लगाकर चाबहार और ज़हेदन को जोड़ने वाली रेलवे लाइन का काम पूरा करेगा.
जबकि ईरान के ही अख़बारों ने पिछले साल दिसंबर में रिपोर्ट किया था, की इस रेलवे लाइन का लगभग 40 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है. अब ईरान अपने आप को बड़ा दिखाने के लिए इस प्रोजेक्ट का काम वर्ष 2021 तक अकेला पूरा करने की सोच रहा है.
साथ ही चीन पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर के रास्ते चीन तक जाने वाली LNG पाइपलाइन पर भी ईरान काम चालू कर रहा है.
और फिर बाद में ऐसी भी खबरे आने लगी, की चीन ईरान में 400 बिलियन डॉलर का भारी भरकम निवेश करने वाला है.
जबकि यह सभी डील्स वर्ष 2016 के ईरान और चीन के बीच कम्प्रेहैन्सिव स्ट्रेटेजिक पार्टरनशिप के अंतर्गत हुई हैं. लेकिन फिर भी 400 बिलियन डॉलर का चमकने वाला नंबर रख कर नयी बोतल में पुरानी शराब बेचने की भरपूर कोसिस करि गयी.
आप सभी को पता है, ये सब बातें हैं, बातों का क्या. चीन खुले में सीना तान के ईरान से तेल तो खरीद नहीं पा रहा है. अमेरिका और ईरान के बीच डील के बिना , अगर चीन के शहंशाह में शक्ति है, तो ईरान में पैसा लगाकर दिखाएँ.
इसलिए अच्छा होगा, पहले ईरान अमेरिका से डील करके अपना आपसी विवाद निपटाए, और फिर भारत ईरान से तेल खरीदना और ईरान में भारतीय टैक्स पयेर्स का पैसा लगाना भी चालू कर देगा.
जहाँ तक भारत पर दवाब बनाने की ईरानी कोसिस का सवाल है, भारत केवल अपने हितों के आगे झुकता है. जब ईरान को यह छोटी सी बात समझ आएगी, उसके मुँह पर ताला भी लग जायेगा.
आजका बेहद आसान सवाल है, हाल ही में ईरान से चोरी छुपे तेल खरीदने की सजा अमेरिका ने किस देश को दी है?
पिछले वीडियो में पूछे गए सवाल के लिए आज के लकी विनर हैं, SANDIP SHROFF
और इस वीडियो को देखने के लिए आपका बहुत धन्यवाद
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