सायप्रस,ग्रीस,अर्मेनिआ के साथ मिलकर मोदी जी टर्की को दिया कड़ा सन्देश!!


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नमस्ते दोस्तों, चलिए आज के रोचक रियल क्विक एनालिसिस की चर्चा करते हैं.
जैसा की आपको पता होगा, की प्रधान मंत्री मोदी जी अमेरिका से भारत लौट आये हैं.

इस यात्रा के दौरान मोदी जी ने सायप्रस के राष्ट्रपति से मुलाक़ात करि. तो हमारे कई दर्शकों ने इस टॉपिक के ऊपर वीडियो बनाने के लिए suggestion दिया.

वैसे तो मोदी जी ने दुनिया भर के कई नेताओं से मुलाक़ात करि, लेकिन सायप्रस और अर्मेनिया में ऐसा क्या विशेष है, जो आज हम उनकी चर्चा कर रहे है.

इसका जवाब यह है, की ये दोनों ही पाकिस्तान के प्यारे टर्की  के पड़ोसी देश है, और दोनों देशों के ही टर्की के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं है.

आप सभी को पता है, चीन के अलावा टर्की ऐसा दूसरा देश है, जो हमेसा पाकिस्तान के पीछे खड़ा रहा है. भारत ने टर्की के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का भरपूर प्रयास किया. लेकिन टर्की भारत को पाकिस्तान के चश्मे से ही देखता आया है.

आपके ध्यान में होगा, की टर्की के राष्ट्रपति ने UN जनरल असेंबली की अपनी स्पीच में कश्मीर का मुद्दा उठाया था.

जैसा की कहा जाता है, की जिनके घर शीशे के हों, वह दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते है. लेकिन टर्की को इतना घमंड है, की वह भारत के आतंरिक मामले को UN में उछालने की पूरी कोसिस कर रहा है. लेकिन टर्की की इस गुस्ताखी का दोष भी भारत को ही जाता है.

आपको पता होगा, की वर्ष 1974 में टर्की ने आक्रमण करके सायप्रस के दो टुकड़े कर दिए. पूरी दुनिया रिपब्लिक ऑफ़ सायप्रस के रूप में एक देश को स्वीकार करती है, लेकिन टर्की अकेला उत्तरी सायप्रस को अलग रूप में स्वीकार करता है.

वर्ष 1974 में भी टर्की के आक्रमण के खिलाफ भारत ने सायप्रस के ग्रीक्स का समर्थन किया था. और बाद में भारत ने निश्चित किया, की पूरी दुनिया केवल एक रिपब्लिक ऑफ़ सायप्रस को मान्यता प्रदान करे.

लेकिन जमीनी सच्चाई यही है, की उत्तरी सायप्रस में आज भी टर्की के 35 हज़ार सैनिक तैनात हैं. और टर्की उन्हें पीछे हटाने को तैयार नहीं है.

साथ ही टर्की की भूख इससे नहीं मिट रही है, इस साल टर्की ने फिर सायप्रस के एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन में ड्रिलिंग का काम चालू कर दिया.

और जहाँ तक सायप्रस और टर्की की शांति वार्ता का सवाल है, उसका एक मात्रा उद्देश्य रिपब्लिक ऑफ़ सायप्रस को टर्की की कठ पुतली बनाना है.

इसलिए आपको समझ आ गया होगा, टर्की यूरोपियन यूनियन के सदस्य सायप्रस के लिए सबसे बड़ा खतरा है, और इसी को मद्दे नजर रखते हुए, मोदी जी ने रिपब्लिक ऑफ़ सायप्रस की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता के प्रति भारत का सपोर्ट फिर से दोहराया है.

यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है, की मोदी जी ने सायप्रस के राष्ट्रपति से तो मुलाक़ात की ही, साथ में ग्रीस के प्रधान मंत्री से भी बातचीत करि. टर्की और ग्रीस के सम्बन्ध बहुत ख़राब है, ये दोनों देश वर्ष 1996 में युद्ध के कगार तक पहुंच चुके है. वर्ष 1974 में सायप्रस की जमीं पर रियलिटी में ग्रीस और टर्की का ही संघर्ष हुआ था.

इसलिए सायप्रस के राष्ट्रपति और ग्रीस के प्रधान मंत्री के साथ मोदी जी की मुलाक़ात का महत्वा बहुत अधिक बढ़ जाता है.

साथ ही मोदी जी ने अर्मेनिआ के प्रधान मंत्री से मुलाक़ात करि, अर्मेनिआ और टर्की के बीच भी 36 का आंकड़ा है,  अर्मेनिआ को अभी भी यही दर्द सताता है, की वर्ष 1915 में ऑटोमन एम्पायर के दौरान लाखों की संख्या में अर्मेनियंस को मौत के घात उतार दिया गया  था. हालाँकि अर्मेनिआ में हुए नर संहार की बात तक को तुरकी स्वीकार नहीं करता है.

अभी तक आपको समझ आ गया होगा, की टर्की और पाकिस्तान की कार गुजारियाँ कितनी मिलती जुलती है, इसलिए कोई बड़े अचरज की बात नहीं है, की चोर चोर मौसेरे भाइयो की तरह ये दोनों देश एक दूसरे के साथ हमेसा खड़े रहते हैं.

अब जबकि मोदी जी ने ग्रीस, सायप्रस और अर्मेनिआ के साथ टर्की के खिलाफ एक गठबंधन जैसा कुछ बनाने की कोसिस करि है.

लेकिन जब टर्की ने कश्मीर का मुद्दा UN में उठाया, तो यदि मोदी जी भी सायप्रस के पानी में टर्की की ड्रिलिंग का मुद्दा उठाते, तो क्या और ज्यादा अच्छा नहीं होता?

बात हम यह कहना चाह रहे हैं, की भारत के इन तीनो देशों के साथ हमेसा से अच्छे समबन्ध रहे हैं, और टर्की ने भारत के साथ बुरे समबन्ध के लिए हर एक काम किया है.

लेकिन फिर भी हमने टर्की को उसी की भासा में जवाब नहीं दिया, अभी भी मोदी जी की मुलाक़ातों के बाद, इस बात की उम्मीद कम है, की भारत जमीं पर ऐसा कोई काम करेगा, जिससे टर्की को उसके कर्मो का फल भुगतना पड़े.

हमारा पॉइंट सिंपल है, इन तीनो देशों के साथ भारत ने अच्छे और मजबूत सम्बद्ध बनाने ही होंगे. इन मुलाक़ातों से टर्की के दिल की खोट निकल जाएगी, ऐसी उम्मीद करने का कोई मतलब नहीं है.

चाहे चीन हो या चाहे टर्की हो, इन सापों का जितना तुस्टीकरण किया जायेगा, ये उतना ही जहर उगलेंगे.

इसलिए हमें आशा है, भारत इस बार फूंक फूंक कर कदम रखने के बजाये. Aggressive   होकर टर्की को मेडिटेरेनियन  सी और चीन को साउथ चाइना सी में सबक शिखाये.

आप स्मार्ट लोग है, अमेरिका में मोदी साब ने टर्की को कड़ा संदेस दिया तो है, लेकिन अनपढ़ टर्की को यह समझ नहीं आएगा, इसलिए भारत को सायप्रस की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए मजबूत कदम उठाना ही चाहिए.

वक़्त आ गया है, पाकिस्तान के साथ दोस्ती की कीमत चुकाने के लिए भारत ने टर्की को मजबूर करना ही होगा.

आज का बेहद आसान सवाल है, मोदी जी ने ग्रीस, सायप्रस और अर्मेनिआ के साथ मिलकर किस देश को घेरने की कोसिस की है?
पिछले वीडियो में पूछे गए सवाल के लिए आज के लकी विनर हैं, लुहितकुमार भुयान

और इस वीडियो को देखने के लिए आपका बहुत धन्यवाद

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