जम्मू कश्मीर के विभाजन पर चीन को भारत ने दिया करारा जवाब.


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Reference -
आप सभी दर्शको को हमारा नमस्कार, चलिए आज के रोचक रियल क्विक एनालिसिस की चर्चा करते हैं.
जैसा की आपको पता लग गया होगा, की चीन की तरफ से स्टेटमेंट आया है, की जम्मू कश्मीर राज्य का बिभाजन करके भारत ने गैर कानूनी काम किया है, और चीन ने इसे मानने से भी इंकार कर दिया है.

देखिये, कौन हमें कानून का पाठ पड़ा रहा है, यह वही चीन है, जिसने खुद तो छोटे छोटे गरीब देशों का हक़ मारकर पुरे साउथ चाइना सी को चाइना का साउथ सी बना दिया है. 

साथ ही चीन ने भारत को याद दिलाया, की यद्यपि भारत ने लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बना दिया है, एक्चुअली अभी भी अक्साई चिन पर चीन का कब्ज़ा है.

इसलिए हमें चाहे चीन से कितनी भी दोस्ती की कोसिस करते रहें, यह सत्य हमारा पीछा कभी नहीं छोड़ेगा, की दुनिया का सबसे लम्बा सीमा विवाद चीन का भारत के साथ है.

हमारी मीडिया का 99 फीसदी समय पाकिस्तान को खरी खोटी सुनाने में बीतता है, लेकिन इस बेसिक रियलिटी को पूरी तरह से नजर अंदाज़ कर दिया जाता है, की अगर चीन चाहे, तो कल पाकिस्तान भारत में दोस्ती हो जाए.

चीन की अनुमति के बगैर पाकिस्तान LOC पर एक राउंड तक फायर नहीं कर सकता है. लेकिन हम सभी चीन को भूलकर चीनी प्यादे पाकिस्तान पर अपना समय बर्बाद करते रहते हैं.

वात साफ़ है, हमारा ध्यान भारत के नंबर १ के दुसमन पर नहीं जाता है, यही चीन की रणनीति की सबसे बड़ी सफलता है.

लेकिन आज भारत के विदेश मंत्रालय ने भी चीन को जवाब देने में देरी नहीं लगायी, और कड़े शब्दों में चीन को बता दिया, की जब भारत चीन के मामलों में दखल नहीं देता है, तो चीन ने भी भारत के मामलों में टांग नहीं अड़ाना चाहिए.

जम्मू कश्मीर राज्य के विभाजन को वैसे भी चीन का अप्रूवल नहीं चाहिए, क्योकि यह संप्रभु भारत का निर्णय है.

लेकिन चीन और भारत के बीच चल रही इस बयां वाजी से प्रभावित होकर हमें bigger पिक्चर को नजर अंदाज़ नहीं करना चाहिए.

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 22 वे चरण की बातचीत जनवरी में आयोजित होने वाली है.

इस विवाद के निपटारे के लिए चतुर चीन का सुझाव था, की दोनों देशों ने मिलकर उन प्रस्तावों पर अमल करना चाहिए, जिन पर सहमति जल्दी से बन सकती है.

सरल शब्दों में, चीन चाहता है, की सिक्किम के कुछ विवादित इलाको में दोनों देशों की सेनाएं coordinated पेट्रोलिंग करें. यह सुनने में तो बड़ा अच्छा आईडिया लगता है. यदि ऐसा हो जाये, तो कितना अच्छा होगा. ऐसे तो दोनों देशो के सेनाओं के एक दूसरे की सीमा में घुस पैठ की समस्या ही ख़तम हो जाएगी.

लेकिन सचाई  यह है, की ये वही इलाके हैं, जहाँ भारतीय सेना सामरिक रूप से मजबूत हालत में है, चीन चाहता है, जहाँ भारत मजबूत है, वहां अंदर तक मिलकर गस्त लगाने का मौका उसे मिल जाये.

और जिन इलाको में चीन को मजबूती हांसिल है, उन इलाकों में भारत और चीन की सेना मिलकर गस्त नहीं लगा सकती है, क्योकि इसके लिए चीन तो कभी राजी होगा नहीं.

बात साफ़ है, चीन के साथ सीमा विवाद जल्दी से सुलझाने की कीमत चुकाए भारत अकेला. आप ही बताएं, चीन की ऐसे प्रस्तावों को कैसे स्वीकार किया जा सकता है.

आप चीन का कोई भी प्रस्ताव randomly उठा कर देख लीजिए,  चीन भारत को दोस्त नहीं, वल्कि पिछ लग्गू बनाना चाहता है.

21 बार boundary टॉक हो चुकी है, भले ही इकीस सौ बार और टॉक भी हो जाये, भारत अपनी सीमा से एक इंच पीछे नहीं हटेगा. और यह चट्टानी निश्चय भारत की सर्कार का नहीं, बल्कि हम सभी भारतीयों का है.

आगे बढ़ते हुए, पिछले कुछ समय से मीडिया में ऐसी खबरें छपती आ रही हैं, की आखिर कार भारत 4 नवंबर को RCEP में शामिल हो जायेगा.

यहाँ तक खबरें आयी, की चेन्नई में चीन के सुल्तान ने मोदी साहेब को RCEP को लेकर विशेष आश्वासन दिया है. अगर मोदी जी इतिहास को भूल सकें, तो वह चीन के राष्ट्रपति की बातों पर भरोसा करने की गलती एक बार फिर दोहरा सकते हैं.

आपको तो पता है, यह चीन वही देश है, जो लिखित बातों तक पर अमल करता नहीं है.

आपको पता है, RCEP का सरल शब्दों में मतलब है, की भारत अपने सबसे बड़े दुसमन चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन करने जा रहा है.


अब जाके भारत के कॉमर्स मिनिस्टर ने साफ़ तौर पर कहा है, भारत किसी भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट में जल्दवाजी में शामिल नहीं होगा, 
और  तो और भारत RCEP में अपनी ही शर्तों पर शामिल होगा.

गोयल साब ने यह तो बहुत सही कहा, लेकिन साथ में उन्होंने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बकालत कर दी. हम सभी भारतीय फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के साथ हैं. लेकिन उसमे फेयरनेस भी होना चाहिए.

RCEP की डील के द्वारा चीन आसियान देशों के कंधे पर धरकर बंदूक चलाना चाहता है, इस बात का अंदाज़ा आप को भी है.

दुनिया में जो इतिहास से नहीं सीखते हैं, वह भूतकाल की गलतियों को वर्तमान में दोहराते रहते हैं. अभी हाल में SBI की रिपोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा है, यदि RCEP में शामिल होने के पहले हमने अपनी घरेलु छमता का विकाश नहीं किया.तो RCEP से माल की ऐसी बाढ़ आएगी, की भारत के व्यापारी और किसान उसमे डूब सकते हैं.

उम्मीद है, भारत सर्कार अगले कुछ दिनों में RCEP में चीन के द्वारा तय की गयी तारीख पर शामिल नहीं होगा.

बात साफ़ है, जबतक भारत के हितों की रक्षा की व्यवस्था नहीं होती है, तब तक RCEP में शामिल होने का हम सभी विरोध करेंगे.

जहाँ तक चीन का सवाल है, उसके सामने हम जितना झुकेंगे, वह उतना ही इतराएगा. इसलिए चाइनीस ड्रैगन को दूध पिलाने से भारत का भला नहीं होने वाला.

हो सकता है, चीन को अंदाज़ा लग गया हो, की RCEP पर उसकी दाल भारत में नहीं गल रही है, तभी जम्मू और कश्मीर के विभाजन पर स्टेटमेंट जारी करके खिस्यानी बिल्ली खम्भा नोच रही है.

इसी बीच RCEP एग्रीमेंट के फाइनल न होने का ठीकरा भारत के कुछ अख़बारों ने अभी से भारत के सर पर फोड़ना भी चालू कर दिया है . यह काम चीन के अख़बार करें, यह तो समझ आता है, लेकिन भारत के ही कुछ अख़बार विदेशी सूत्रों पर भरोसा करके चाइनीस सन्देश को भारत में क्यों फैलाते हैं.

कोई बात नहीं, देखने वाली बात यह होगी, की क्या भारत RCEP में चीन के द्वारा तय तारिख 4 नवंबर को शामिल हो जायेगा, फ्रैंकली, हमें तो अब इसकी सम्भावना बहुत कमजोर दिखाई देती है.

आज का बेहद आसान सवाल है, RCEP का सरल शबों में मतलब भारत का किस देश के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है?

पिछले वीडियो में पूछे गए सवाल के लिए आज के लकी विनर हैं, योगेंद्र दीक्षित.


और इस वीडियो को देखने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.

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