France to deploy Aircraft carrier & Warship against Turkey (New Conflict)
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https://www.thenational.ae/world/europe/french-aircraft-carrier-to-dock-in-cyprus-amid-turkey-drilling-dispute-1.971361
https://www.theguardian.com/world/2020/jan/29/greece-turkey-standoff-france-send-warships-east-mediterranean
https://greekcitytimes.com/2020/01/30/france-pledges-to-send-warships-to-support-greece-if-turkish-standoff-intensifies/
https://www.thenationalherald.com/282745/greece-nixes-turkish-demands-to-demilitarize-16-aegean-islands/
https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/alarm-over-chinese-research-ships-in-indian-ocean-region/articleshow/73755293.cms
हम सभी को पता है, की 1982 के अंतरास्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी भी देश के समुद्री तट से 200 नॉटिकल माइल्स तक जो समुद्र होता है, उसे उस देश का exclusive इकनोमिक Zone कहा जाता है, और इस इलाके में पाए जाने वाले सभी संसाधनों पर उस देश का अधिकार होता है।
इसलिए जब टर्की ने सायप्रस के एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन में आयल एंड गैस की खोज के लिए ड्रिलिंग चालू कर दी, और ड्रिलिंग शिप की प्रोटेक्शन के लिए टर्की ने युद्ध पोत और ड्रोन्स भी तैनात कर दिए।
तब टर्की की इन आक्रामक हरकतों के जवाब में सायप्रस ने भी बयान बाजी चालू करते हुए, टर्की की तुलना पाइरेट्स से कर दी, और चूँकि जिन इलाको में आयल एंड गैस का अंदाज़ा सायप्रस को लगा था, टर्की ने उसी इलाके में ड्रिलिंग चालू कर दी, तो सायप्रस ने यह भी आरोप लगाया, की चीन के चेले टर्की ने सायप्रस का टेक्निकल डेटा चुरा लिया।
लेकिन जमीनी सच्चाई यही है, की सायप्रस के बयानों के बाबजूद टर्की ने ड्रिलिंग ऑपरेशन नहीं रोके। और चूँकि टर्की साफ़ साफ़ सायप्रस के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहा है, इसलिए फ्रांस कैसे पीछे रहता।
और फ्रांस ने तय कर लिया, की ईस्टर्न मेडिटेरननियन सी में वह अपनी नौसेना की शक्ति बढ़येगा, और इसी निर्णय के अंतर्गत फ्रांस का एयरक्राफ्ट कर्रिएर कुछ ही दिनों में सायप्रस के लिमासोल पोर्ट तक पहुंचने वाला है।
फ्रांस अपना एयरक्राफ्ट कर्रिएर भेज रहा है, यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन यह बात हमारी समझ के परे है, की जब ड्रिलिंग नॉर्थेर्न सायप्रस की तरफ हो रही है, तो साउथर्न सायप्रस के पोर्ट पर एयरक्राफ्ट कर्रिएर भेजने का क्या मतलब है।
बात साफ़ है, फ्रांस अभी केवल टर्की को कड़ा सन्देश देने की कोसिस कर रहा है, टर्की से टकराने का फ्रांस का कोई इरादा नहीं है, लेकिन टर्की को ऐसे सन्देश समझ आएंगे, अगर फ्रांस को ऐसा लगता है, तो हमें फ्रांस की समझ पर हंसी ही आती है।
हम सबका आम अनुभव बताता है, की सर झुकाकर बात करने पर, गुंडे सर पर चढ़कर नाचने लगते हैं।
इसी का उदहारण देखने को मिलता है, टर्की के रक्षा मंत्री की बातों में, जिन्होंने ग्रीस के सामने डिमांड पेश कर दी, की वह 16 एजियन islands से अपनी सेना पीछे हटा ले।
आपको सायद पता हो, वर्ष 1974 में टर्की ने हमला करके नॉर्थेर्न सायप्रस पर कब्ज़ा कर लिया था, तभी ग्रीस ने इन 16 एजियन islands पर सेना तैनात करि थी।
और अब जबकि टर्की ने east मेडिटेरनियन सागर का टेम्परेचर बड़ा दिया है, तो उसने ग्रीस से पीछे हटने की मांग कर डाली। फिर क्या था, ग्रीस के रक्षा मंत्री ने साफ़ कर दिया, की 16 एजियन आइलैंड से ग्रीस की सेना पीछे नहीं हटेगी।
लेकिन टर्की ने टर टर करना तो अभी चालू किया है, पिछले कुछ महीनो से ग्रीस के हवाई छेत्र में टर्की के लड़ाकू विमानों के घुसने की बारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है।
अब आप ही देख लीजिये, ग्रीस ने टर्की की तानाशाही को सहन किया, तो टर्की ने ग्रीस की टेंशन और बड़ा दी। काश ग्रीस ने टर्की के लड़ाकू विमानों का सामना किया होता, काश ग्रीस ने सायप्रस के पानी में Turkish ड्रिलिंग के खिलाफ बयानबाजी करने के बजाये समुद्र में कुछ किया होता, तो आज उसे 16 एजियन islands पर अपने अधिकार को दोहराना नहीं पड़ता।
एनीवे देर आये दुरुस्त आये, मेडिटेरनियन सी में हालत बिगड़ते देख, प्रेजिडेंट ट्रम्प ने टर्की के राष्ट्रपति को फ़ोन घुमा दिया, और उम्मीद करि, की ये सभी देश मिलकर अपने विवाद को भड़कने नहीं देंगे।
लेकिन इसी बीच फ्रांस ने भी निर्णय ले लिया, की वह भी अपने जंगी जहाज ईस्टर्न मेडिटेरननियन सी में तैनात कर देगा। और फ्रांस के इस निर्णय का ग्रीस के प्रधान मंत्री ने स्वागत भी किया है।
साफ़ तौर पर फ्रांस सायप्रस और ग्रीस के साथ खड़ा होता हुआ दिखाई दे रहा है। लेकिन यहाँ पर फ्रांस ने रक्षात्मक रवैया अपनाया हुआ है।
ऐसा नहीं है, की फ्रांस और टर्की का विवाद केवल ईस्टर्न मेडिटरेनियन सी तक ही सीमित है।
लीबिया में भी टर्की और फ्रांस आमने सामने आ गए है, लीबिया की कागजी सर्कार को है टर्की का पूरा समर्थन और तुकी ने सीरिया के लड़ाके इसी सर्कार के समर्थन में लीबिया में उतार दिए है।
और यह बात फ्रांस को नागवार गुजरी, क्योकि टर्की ने पिछले हफ्ते ही बर्लिन में वादा किया था, की लीबिया में बाहरी हस्तक्चेप को कम किया जायेगा।
लेकिन टर्की के हिसाब से लीबिया का रायता फ्रांस ने ही फैलाया है। क्योकि लीबिया की सर्कार के खिलाफ जो सेना लड़ रही है, उसे फ्रांस का समर्थन प्राप्त है।
इसलिए फ्रांस और टर्की के बीच लीबिया की सिविल वॉर का तनाव अब ईस्टर्न मेडिटेरनियन सी में उबलकर सामने आ रहा है।
साथ ही आपको पता होगा, टर्की के दक्षिणी और लीबिया के उत्तरी तट के बीच 400 नॉटिकल माइल्स का कॉमन मेरीटाइम जोन बनाने को लेकर लीबिया की लंगड़ी सर्कार ने गुप् चुप तरीके से Turkey के साथ पिछले साल agreement कर लिया है।
और लीबिया टर्की का यह मेरीटाइम जोन मेडिटेरनियन सी को दो टुकड़ों में तोड़ देता है, और साथ में इसराइल की गैस को इटली तक ले जाने वाली प्रस्तावित पाइपलाइन का रास्ता ही काट देता है।
इसलिए इसराइल और टर्की के बीच तनाव सातवे आसमान तक पहुंच चूका है।
इसलिए यदि आप इन सभी विवादों को मिलाकर देखें, तो समझ आता है, टर्की ने बहुत ऊँची उड़न भरना चालू कर दिया है, और उसके पर कतरने का समय आ गया है।
लेकिन ग्रीस सायप्रस फ्रांस और इसराइल जिनके पांव पर टर्की ने पांव धर दिया है, वह सब मिलकर टर्की का मुकाबला करते दिखाई नहीं दे रहे हैं। और इसी का फायदा टर्की उठा रहा है।
इसलिए अच्छा होगा, की ये सभी देश टर्की के खिलाफ कंधे से कन्धा मिला लें, तभी टर्की के इरादों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
लेकिन इसी बीच आपको यह तो समझ आ गया होगा, इन सभी देशों के रक्षात्मक रवैये के कारण अब पूरा का पूरा एन्ड to एन्ड मेडिटेरनियन सी विवादित हो गया है।
ऐसा नहीं है, की टर्की के इरादे मेडिटेरनियन सी में ही सिमट कर रह गए हैं, अब वह सोमालिया के इनविटेशन का बहाना बनाकर इंडियन ocean में भी आयल एंड गैस के भंडारों को लूटने के सपने देखने लगा है।
बात सिंपल है, चीन ने जो साउथ चाइना सी में किया, उसी को चीन के चेले टर्की ने मेडिटेरननियन सी में करके दिखया है।
और जो चाइनीस ड्रैगन पुरे के पुरे साउथ चाइनासी को एक ही बार में निगल गया, वही चाइनीस ड्रैगन अब हमारे हिन्द महासागर की तरफ आगे बढ़ चूका है।
अभी जबकि हम टर्की की बात कर रहे हैं, तो चीन के जहाज हिन्द महासागर की गहराई नाप रहे हैं। चीन बहाना यह बना रहा है, की उसके रिसर्च शिप मानवता के कल्याण के लिए हिन्द महासागर का पानी छान रहे हैं।
लेकिन आप सभी को पता है, की चीन हिन्द महासागर में किस इरादे से आया है, आज जो ज्ञान चीन इकहट्टा कर रहा है, उसी का इस्तेमाल आयल एंड गैस की खोज में, पनडुब्बियों को तैनात करने जैसे कामो में इस्तेमाल किया जायेगा ।
इसी बीच वर्ष 2015 से चीन ने हिन्द महासागर में मछलियां भी पकड़ना चालू कर दिया है, और हर साल चीन के 600 जहाज हिन्द महासागर के खजाने को लूट रहे हैं। और ऐसा नहीं है, की चीन ने ये जहाज केवल मछलियां पकड़ने के लिए भेजे है, इनके पीछे चाइनीस नेवी की पूरी तागत लगी होती है।
हर गुजरते साल के साथ चीन और अधिक आक्रामक होता जा रहा है, और इंडियन नेवी चीन के जहाजों की संख्या गिनने में व्यस्त है।
आप सभी की तरह हमें भी भारतीय नौ सेना की छमता पर पूरा विस्वास है, लेकिन हमारी नौसेना के हाथ बांध रखें हैं, इन्ही अंतरास्ट्रीय नियमो और कानूनों ने।
आप ही बताएं, जिन अंतरष्ट्रीय कानूनों के चीन ने धज्जियाँ साउथ चाइना सी में उड़ा दी, उन्ही इंटरनेशनल लॉज़ की रक्षा हम हिंद महासागर में कब तक करते रहेंगे?
क्या इंटरनेशनल लॉ का पालन करना केवल इंडिया की जिम्मेदारी है। आज चीन इंटरनेशनल फ्रीडम ऑफ़ नेविगेशन के नियमो के पीछे खड़ा होकर, इंडियन ocean में अपने जंगी जहाज भेज रहा है, लेकिन जब साउथ चाइना सी से जंगी जहाज गुजरते हैं, तो ऐसी मिर्ची लगती है, की चीन की छोटी छोटी आखें लाल हो जाती है।
बात यह है, भूतकाल में जो साउथ चाइना सी में हुआ, वही वर्तमान में मेडिटेरनियन सी में हो रहा है, और वही same to same भविस्य में हिन्द महासागर में होगा।
हमारे सामने सवाल यही है, की आखिर कब तक हम चाइना और टर्की के सरफिरे शाशकों के आगे अपना सर झुकाते रहेंगे। क्या हमें जल्द से जल्द हिन्द महासगार पर हिंदुस्तान का दावा पेश नहीं करना चाहिए?
इन्ही दो सवालों के साथ हम यह एक वीडियो समाप्त करते हैं।
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