Huge Indian Victory in European Parliament (The Magic Of India?)
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https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/eu-parliament-postpones-voting-on-caa-in-major-diplomatic-victory-for-india/articleshow/73745417.cms
https://www.indiatoday.in/india/story/european-parliament-debates-anti-caa-motion-vote-delayed-till-march-1641429-2020-01-30
https://www.timesnownews.com/india/article/exposed-pakistan-origin-eu-mp-shaffaq-mohammed-moved-anti-caa-resolution-in-european-parliament/545523
https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/beyond-the-headline/eu-parliament-can-hardly-lecture-india-on-human-rights/
https://www.ndtv.com/india-news/diplomatic-victory-as-no-european-union-parliament-vote-on-citizenship-act-sources-2171833?pfrom=home-livetv
https://www.moneycontrol.com/news/business/economy/indian-economy-in-great-position-consumption-story-growing-bofa-ceo-4874971.html
https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/pakistan-has-got-its-act-together-in-narrative-warfare-with-its-dgispr-indian-cybersecurity-chief/articleshow/72915729.cms
सबसे पहले बात करते हैं, इंडियन इकोनॉमी की । क्योकि गिरती हुई विकास दर को बहाना बनाकर आजकर निराशा और हताशा बहुत बेचीं जा रही है।
जरा सोचिये, की बैंक ऑफ़ अमेरिका के सीईओ ने यदि कहा होता, की भारत की इकोनॉमी बर्बाद हो चुकी है, और उन्हें उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही है। तो हमारी मीडिया में इस खबर को कैसे कवर किया जाता। स्वाभाविक है, यह स्टेटमेंट हाथो हाथ लिया जाता, और ऐसा नेगेटिव इम्प्रैशन खड़ा किया जाता, की एक दो दिन में ही मोदी नामका प्रलय आने वाला है।
लेकिन बैंक ऑफ़ अमेरिका के सीईओ ने जब यह कहा, की इंडियन इकोनॉमी ग्रेट पोजीशन में हैं, और उन्हें विस्वाश है, की अर्थव्यवस्था अब रेजिंग Bull की रफ़्तार से दौड़ेगी, तो इस पॉजिटिव स्टेटमेंट को इग्नोर कर दिया गया, जैसे किसी ऐरे गैरे आदमी की बातों को नजर अंदाज़ कर दिया जाता है।
इसी बैकग्राउंड में आप जस्ट इमेजिन कीजिये, की कल यूरोपियन पार्लियामेंट में सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ यदि प्रस्ताव पारित हो जाता, तो आज मुस्लिम मीडिया का मुँह खिल जाता। और वह इस खबर को मोदी सर्कार की मुक्कमल हार के रूप में धड़ा धड़ बेचते।
लेकिन हुआ उल्टा, यूरोपियन पार्लियामेंट ने CAA के खिलाफ प्रस्ताव पर चर्चा तो करि, लेकिन मार्च महीने तक उस प्रस्ताव पर वोटिंग को टाल दिया। परिणाम आपके सामने है, मोदी सर्कार की सफलता को देखकर मक्कार मीडिया को सांप सूंघ गया है ।
अब यह कहने की कोसिस करि जा रही है, की यदि रेसोलुशन पास नहीं हुआ, तो वह सब ठीक है, लेकिन यूरोपियन पार्लियामेंट ने भारत के इंटरनल मैटर पर चर्चा करि, यह भी निकम्मी मोदी सर्कार की बड़ी असफलता है।
यूरोपियन यूनियन ने एंटी इंडिया रेसोलुशन पर चर्चा करि, इसे मोदी सर्कार की फेलियर माना भी जा सकता है, लेकिन क्या यह 72 सालों में इंडिया के डिफेंसिव ऐटिटूड की असफलता नहीं है?
जब अचानक से यूरोपियन यूनियन में सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ छह प्रस्ताव पेश कर दिए, तब जाकर हमारी आँखें खुली। चौकाने वाली बात यह है, की 751 में से 560 सदस्यों के बहुमत ने इन छह प्रस्तावों को आगे बढ़ाया था।
इसलिए आपको समझ आ गया होगा, सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ कल यूरोपियन पार्लियामेंट में प्रस्ताव का पारित होना पूरी तरह से निश्चित था।
इसी बैकग्राउंड में जिस एंटी इंडिया रेसोलुशन का पास होना १००% निश्चित था, उस रेसोलुशन पर वोटिंग न होने देना, भारतीय कूटनीति कितनी बड़ी सफलता है, आपको इस बात का अंदाज़ा होगा ।
हमारे डिप्लोमैट्स यह समझाने में कामयाब रहे, की सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट इंडियन डेमोक्रैटिक डिसिशन मेकिंग का रिजल्ट है, और इस एक्ट को सविधान की कसौटी पर इंडियन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अभी कसा जा रहा है। इसलिए भारतीय विधायी प्रक्रिया के बाद न्यायिक प्रक्रिया को समाप्त होने के लिए पूरा समय दिया जाना चाहिए।
जो छोटी सी बात विदेशियों को समझ आ गयी, वह यदि हमारे भारतियों को समझ आ गयी होती, तो CAA को लेकर आसमान सर पर नहीं उठाया जाता।
लेकिन हम यहाँ पर यह जरूर पूछना चाहेंगे, की जो बात हमने गोरों को यूरोपियन पार्लियामेंट में छह प्रस्तावों के पेश होने के बाद समझायी, वह बात हमने उन्हें रेसोलुशन के पेश होने के पहले क्यों नहीं समझायी।
और यही पर बात आती है, लेफ्ट लिबरल मीडिया की शक्ति की, वह अपने मैसेज को दुनिया भर में एक रूपता से फ़ैलाने में हर बार बार बार सफल होती है।
और इस सफलता में सबसे बड़ा योगदान होता है, ह्यूमन राइट्स के दलालों का।
यहाँ पर हमें आश्चर्य होता है, की छह में से केवल एक रेसोलुशन को आगे बढ़ाया था, पाकिस्तानी ओरिजिन के शफ़्फ़ाक़ मोहम्मद ने, फिर क्या था मीडिया पांच प्रस्तावों को भूलकर सिर्फ के प्रस्ताव के पीछे हाथ धोकर पड़ गयी।
हम इसी प्रकार बीमारी की जड़ को भूलकर रोग के लक्षणों की चर्चा करके अपना समय बर्बाद कर देते हैं।
यह बात हमें कभी नहीं बताई जाती है, की पिछले 72 सालों में पाकिस्तान एक ही मैसेज को तीन तरह से दुनिया भर में बेचता आया है।
जब वह अमेरिका और EU से बात करता है, तो वह मानव अधिकारों की दुहाई देता है।
जब पाकिस्तान दूर दराज के इस्लामिक देशो से बात करता है, तो इस्लाम को खतरे में बताया जाता है।
और पाकिस्तान साउथ एसिया के देशो को यह बतलाता है, की इंडियन चौधरी का अखंड भारत का सपना उनकी चैन की नींद उड़ा देगा।
इसलिए यूरोपियन यूनियन में जो कुछ भी हुआ, उसे केवल CAA से जोड़कर देखना हमारी बेवकूफी के अलावा और कुछ नहीं हो सकता है।
यह चीन के टुकड़ों पर पलने वाले पाकिस्तान की रणनीति हमेसा से चलती रही है। और इसे तोड़ने के लिए सबसे पहले हमने राहुल द्रविड़ का रक्षात्मक रवैया छोड़कर सेहवाग की तरह आक्रामक तरीके से खेलना होगा। CAA को डिफेंड करने के बजाय यदि हमने CAA को प्रमोट किया होता, तो आज सायद हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता।
इसलिए मोदी सर्कार के रक्षात्मक प्रयासों की हम भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं, लेकिन यहाँ पर सुधार की गुंजाईश है, ऐसा हमें दिखाई पड़ता है। लेकिन हमें विस्वाश है, यह सुधार करने का साहस यदि किसी में है, तो वह 56 इंच के सीने में ही है।
वैसे भी जो नेता पिछले साल मानसरोवर की यात्रा के दौरान चीनी अधिकारीयों से गुप् चुप तरीकों से मिले थे, वह केवल चांदी की चम्मच से दूध ही पी सकते हैं।
इसी सन्दर्भ में भारतीय विदेश मंत्री जी यूरोपियन यूनियन फॉरेन अफेयर्स कौंसिल की बैठक में 17 फरबरी को हिस्सा लेंगे, और मोदी साहेब भी मार्च महीने में इंडिया यूरोपियन यूनियन समिट में भाग लेंगे।
लेकिन अंत में हम फिर यही साफ़ तौर पर कहना चाहेंगे, की पाकिस्तान की पब्लिसिटी कैंपेन से लड़ने के लिए हमें अपना रवैया बदलना होगा। सीमा पर अभी भी हम रक्षात्मक रवैया अपनाये हुए हैं, कम से कम मीडिया में तो हम पाकिस्तान और चीन के खिलाफ आक्रामक जल्दी से जल्दी हो ही सकते हैं।
Example के तौर पर आप ही बताएं, पाकिस्तान और चीन की माइनॉरिटी पर हो रहे हत्याचारों पर यूरोपियन पार्लियामेंट में चर्चा क्यों नहीं कराई जा सकती है।
हमें यूरोपियन पार्लियामेंट को आइना नहीं दिखाना है, हमें उस प्लेटफार्म का अपने हित में इस्तेमाल करना है।
बात सिंपल हैं, दुश्मन के खिलाफ हमारे पास उठाने के लिए मुद्दों की भरमार है, हमें सिर्फ अपनी आवाज़ बुलंद करनी है। जब भारतीय शेर दहाड़ेगा, तो ह्यूमन राइट के दलाल अपने मुँह का इस्तेमाल सिर्फ दही ज़माने के लिए ही करेंगे।
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