Israel and Turkey fight for supremacy (Global Conflict)



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https://www.al-monitor.com/pulse/originals/2020/01/israel-turkey-greece-cyprus-benjamin-netanyahu-natural-gas.html
https://www.reuters.com/article/us-turkey-libya/turkey-signs-maritime-boundaries-deal-with-libya-amid-exploration-row-idUSKBN1Y213I
https://honestreporting.com/israel-turkey-eastern-med/

अभी दो दिनों से ही हमने इस आईडिया को पेश करना चालू किया है, की भारत ने बिना समय गवाय हिन्द महासागर पर अपना दावा ठोक देना चाहिए।



तो हमें पड़े लिखे लोग नियमो कानूनों का ज्ञान देने लगे, ये विद्वान लोग बात तो सही कह रहे थे, लेकिन यह ज्ञान गलत जगह पर बाँट रहे थे. जब दुनिया के हर नियम और कानून को ताक पर रखकर चीन पूरा का पूरा साउथ चाइना सी बिना डकार के सीधा निगल गया, तो पूरी दुनिया खड़ी खड़ी तमासा देखती रही। इसलिए अब किसी को यह हक़ नहीं है, की वह हिन्दोस्तान को हिन्द महासागर से अलग करने के लिए कानून के पाठ पढ़ाये।



एनीवे इस वीडियो को देखकर आप सभी इस बात पर एग्री करेंगे, की भारत ने जल्दी से जल्दी हिन्द महासागर पर अपना क्लेम ठोक देना चाहिए, अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति का विकास होता रहेगा, लेकिन दावा पेश करने में हम जितनी देर करेंगे, उतना ही ज्यादा नुकसान हमें उठाना पड़ सकता है।



बात है, 15 जनवरी की जब अपने एनुअल इंटेलिजेंस असेसमेंट में इसराइल ने पहली बार टर्की को अपने लिए टॉप डेंजर के रूप में स्वीकार किया। इसलिए सवाल उठता है, की इसराइल को टर्की से खतरा क्यों लगने लगा।



इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें चर्चा करनी होगी, ईस्टर्न मेडिटेरनियन गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट की, जिसके ऊपर 2 जनवरी को इसराइल ग्रीस और सायप्रस ने एग्रीमेंट पर साइन किये।



यह पाइपलाइन इसराइल और सायप्रस की नेचुरल गैस को पाइपलाइन के जरिये इटली तक सप्लाई करेगी, और बाद में पुरे यूरोप को गैस की सप्लाई इसी पाइपलाइन से होनी है।



इस प्रोजेक्ट के बारे में सायद आपको पता होगा, मेडिटेरनियन समुद्र की गहराइयों से गुजरने वाली इस पाइपलाइन का कांसेप्ट अस्तित्वा में आया था, वर्ष 2013 में।



इस  प्रोजेक्ट को किन टेक्निकल और सिक्योरिटी चैलेंजेज का सामना करना पड़ेगा, यह अभी पता नहीं है, साथ ही गैस की कीमतों के नीचे रहने की सम्भावना है, और कम से कम अभी तो डिमांड से ज्यादा नेचुरल गैस की सप्लाई है, ऐसा दिखाई पड़ता है।



इसलिए सवाल उठता है, की आखिर इसराइल सायप्रस और ग्रीस के साथ मिलकर यह गैस पाइपलाइन क्यों बिछा रहा है, आप लोगों को अंदाज़ा लग गया होगा, की इसराइल की निगाहें कहीं और हैं, और निशाना कही और लगाया जा रहा है।





पाइपलाइन का प्रोजेक्ट तो एक जरिया है, जिसके द्वारा इसराइल ईस्टर्न मेडिटेरनियन वाटर में एक अलायन्स खड़ा करना चाहता है, ताकि इस पुरे इलाके में सिक्योरिटी और स्टेबिलिटी बनायीं रखी जा सके। कहने  की जरूरत नहीं है, की इस पाइपलाइन के माद्यम से इसराइल पुरे रीजन में बड़ी भूमिका निभाने के लिए निकल पड़ा है।



बस यही से दिक्कत होती है, चालू। आप सभी को पता है, टर्की भी इसी फ़िराक़ में हैं, की उसका पुरे के पुरे मेडेटेरनिअन सी पर कब्ज़ा हो।



लेकिन टर्की का ईस्टन मेडेटेरनिअन पाइप लाइन के प्रोजेक्ट से क्या वास्ता??



इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको थोड़ा और पीछे जाना होगा, पिछले साल 27 नवंबर को टर्की और लीबिया ने मेरीटाइम बॉउंड्री को लेकर समझौता किया।



आपको पता है, 1982 के अंतरास्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी भी देश के समुद्री तट से 200 नॉटिकल माइल्स तक जो समुद्र होता है, उसे उस देश का exclusive इकनोमिक जोन कहा जाता है, और इस इलाके में पाए जाने वाले सभी संसाधनों पर उस देश का अधिकार होता है।



तो बात यह है, की टर्की के दक्षिणी तट से लीबिया के तक के बीच दुरी है। लगभर 400 नॉटिकल माइल्स, यानि की मेडिटेरनियन सी के बीचो बीच इन दोनों देशो के एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन एक दूसरे से मिल जाते हैं।



तो टर्की और लीबिया के बीच हुए मेरीटाइम बॉउंड्री एग्रीमेंट के अनुसार इस पुरे इलाके की बॉउंड्री तय कर ली गयी, और इस इलाके में दोनों देशो ने मिलकर सिक्योरिटी और मिलिट्री कोऑपरेशन बढ़ाने की कसमे खा ली।



लेकिन परेशानी यह थी, की लीबिया की जिस सर्कार के साथ टर्की ने यह एग्रीमेंट किया, उस पर संकट के बादल छाए हुए हैं, इसलिए साफ़ तौर पर टर्की लीबिया की सर्कार की कमजोरी का लाभ उठा रहा था, और ऐसा करके टर्की ने effectively एक मेडिटेरनियन सी को दो हिस्सों में काट दिया, और इस पुरे इलाके के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना दावा indirectly ठोक दिया।



जाहिर है, सायप्रस ग्रीस इजिप्ट और इसराइल ने इस गैरकानूनी एग्रीमेंट का विरोध किया।  यहाँ पर आपको समझ आ गया होगा, की चीन ने साउथ चाइना सी में जो किया, उसी तरकीब का इस्तेमाल टर्की ने मेडिटेरनियन सी में कर लिया है, और समुद्र के बीचो बीच की जमीं हथिया ली है।



दिक्कत यहाँ पर यह थी, की लीबिया के साथ एग्रीमेंट करके टर्की ने इसराइल की गैस पाइपलाइन का रास्ता ही काट दिया था।



टर्की के इरादे जब इसराइल को समझ आये, तो आनन् फानन में ग्रीस और सायप्रस के साथ मिलकर इस साल जनवरी में गैस पाइपलाइन के एग्रीमेंट को फाइनल कर दिया गया।





लेकिन मामला तो उलझ चूका है। और यदि इसराइल को ईस्टर्न मेडिटेरनियन अलायन्स बनाना है, तो उसे टर्की की काट खोजनी ही होगी।



यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है, की वर्ष 2013 से इसराइल की पाइप लाइन का प्रोजेक्ट हवा में लटक रहा है, इसलिए साफ़ तौर पर पिछले साल नवमेंर में लीबिया की लंगड़ी सर्कार के साथ अग्रीमेंट करके टर्की ने इसराइल के रास्ते में टांग अड़ाने की कोसिस  करि है।



यदि इसराइल समय रहते इस पाइपलाइन के प्रोजेक्ट को अमली जमा पहना देता, तो सायद आज यह विवाद ना उलझता।



साथ में कल ही हमने चर्चा करि थी, की जैसे इसराइल को ईस्टन मेडिटेरनियन सागर में गैस के भंडारों का पता लगा, टर्की की भी लार टपकने लगी। और उसने भी सायप्रस के एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन में गैस खोजने के लिए अपने ड्रिलिंग शिप भेज दिए।



यह बात ना तो सायप्रस को स्वीकार होगी, और ना ही अमेरिका को। अमेरिका ने तो इसराइल की पाइपलाइन प्रोजेक्ट का समर्थन करने का भी मूड बना लिया है।



इसलिए अब आपको समझ आ गया होगा, इसराइल ने क्यों टर्की को एक खतरे के रूप में स्वीकार किया है। और निश्चय किया है, की वह अब टर्की की हरकतों पर नजर बनाये रखेगा ।



अब जैसा की इसराइल और टर्की ने एक दूसरे का रास्ता काट दिया है, विवाद किस दिशा में आगे बढ़ता है, यह तय होगा, की टर्की और इसराइल में से अगला कदम आगे कौन बढ़ाता है।



हालाँकि बाहरी तौर पर भारत टर्की और इसराइल के बीचे के इस पावर गेम का हिस्सा नहीं है, लेकिन हम इस पुरे विवाद को खड़े खड़े नहीं देख सकते हैं।



हमारी मीडिया को तो इस विवाद की भनक अभी तक नहीं लगी है, लेकिन हमें विस्वास है, की हमारी सर्कार की नजर इस धधकते विवाद पर जरूर होगी।





भारत सर्कार इस विवाद पर अपना रुख आधिकारिक रूप से जब  व्यक्त करेगी तब करेगी , लेकिन हमारा साफ़ तौर पर मत है, की इस पुरे विवाद में भारत ने अपने दोस्तों इसराइल ग्रीस और सायप्रस के साथ खड़ा होना ही होगा।



ऐसे कैसे टर्की जैसा देश पुरे के पुरे सागर को दो हिस्सों में तोड़ सकता है, आखिर कब तक हम चीन और टर्की के सर फिरे शाशको के आगे अपना सर झुकाते रहेंगे।



टर्की की उड़ान यदि मेडिटेरनियन सी तक ही सीमित रहती, तो भारत फिर भी शांत बैठ लेता, लेकिन कल ही हमने चर्चा करि थी, की सोमालिया के निमंत्रण पर टर्की अब सोमालिया के इंडियन ocean में एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन में भी आयल एंड गैस को खोजने की योजना पर काम कर रहा है।



आप को भी पता है, आयल गैस की खोज, रिसर्च आदि चीन और टर्की जैसे झूठे और मक्कार देशों के बहाने हैं, ये दोनों देश ग्लोबल भू माफिया बनते जा रहे हैं।



एक जमाना था, जब देश जमीं के लिए लड़ा करते थे, वर्ल्ड वॉर two के बाद अब मानव जाती ने इतनी प्रगति कर ली है, की पहले पूरा का पूरा साउथ चाइना सी और अब पूरा का पूरा मेडिटेरनियन सी विवादित हो गया है।



इसलिए इस पुरे विवाद में भारत को इसराइल ग्रीस और सायप्रस के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहना है, और इन तीनो देशो की हर संभव मदद करनी ही होगी। हाथ पर हाथ धरकर बैठने का विकल्प अब हमारे सामने है ही नहीं।



जिस तरह पश्चिम में मेडिटेरनियन सी और पूर्व में साउथ चाइना सी विवादित हो गया है, अब भारत को सोचना होगा, की हम बीच के इंडियन ocean के विवादित होने का वेट करे। अथवा अपनी चाल पहले चलते हुए, एन्ड two एन्ड इंडियन Ocean पर अपना दावा पेश करें।



दुनिया के जंगल में जैसी हवा चल रही है, उस हिसाब से हम चाहे गाँधी जी के तीन बन्दर एक साथ बन जाएँ, आज नहीं तो कल हिन्द महासागर को विवादित होना ही है।



अंत में हम यही उम्मीद करते हैं, की जब भी मौका आएगा, टर्की के तानाशाह के सामने भारत बिना डरे इसराइल ग्रीस और सायप्रस के साथ खड़ा दिखाई देगा।

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