What is Deal of Century? Will India Support it?


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https://www.vox.com/2020/1/28/21083615/trump-peace-plan-map-netanyahu-israel-palestine
https://www.washingtonpost.com/politics/trump-set-to-release-long-awaited-mideast-peace-package-seen-as-generous-to-israel/2020/01/28/883e3d50-41d3-11ea-b5fc-eefa848cde99_story.html
https://twitter.com/realDonaldTrump/status/1222224528065155072
https://twitter.com/yosefyisrael25/status/1222239340912422914?s=20
https://www.theguardian.com/us-news/2020/jan/27/jared-kushner-israel-palestine-peace-plan
https://www.timesofisrael.com/gantz-hails-trumps-peace-plan-but-tells-him-it-should-wait-for-after-election/


सबसे पहले सॉरी फ्रेंड्स, पर्सनल कारणों से हम पिछले दो दिन से कोई वीडियो अपलोड नहीं कर पाए.



चलिए अब बात करते हैं, आज के गरमा गरम टॉपिक की. कल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया के सामने पेश की,  डील ऑफ़ सेंचुरी. जिसे फिलिस्तीन अथॉरिटी के प्रेजिडेंट ने स्लैप को सेंचुरी यानि की शताब्दी का तमाचा डिक्लेअर कर दिया.



राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद साहब ने अगले 80 सालों के लिए तैयार किया था, पीस प्लान, लेकिन जैसी की आवाज़ फिलिस्तीन से आ रही है, ऐसा लगता नहीं है, की यह पीस प्लान 80 मिनट तक भी  जिन्दा रह पाया.



लेकिन बड़ी बात यह है, की अमेरिका ने अपनी तरफ से डील ऑफ़ सेंचुरी पेश कर दी है, इसे स्वीकार करना या न करना, पूरी तरह से फिलिस्तीन के ऊपर निर्भर करता है.



यहाँ तक की प्रेजिडेंट ट्रम्प के दामाद साहब ने तो यह तक कह दिया, की भूतकाल की तरह यदि फिलिस्तीन ने यह डील भी रिजेक्ट कर दी, तो वह एक और अवसर को गवा देगा .



ध्यान रखने वाली बात यह है, की इवांका ट्रम्प के पतिदेव जब यह पीस प्लान  पका रहे थे, तो उन्होंने यह साफ़ कर दिया था, की वह केवल भविस्य की बात करना चाहते हैं, और भूतकाल के बारे में रोना धोना सुनने और सुनाने में उनकी कोई रूचि नहीं है.



इसीलिए इस वीडियो में हम भी पास्ट की नहीं, बल्कि फ्यूचर की चर्चा करेंगे.



50 पेजों की इस डील ऑफ़ सेंचुरी में क्या है, इसे केवल चार पॉइंट में समझा जा सकता है.



पहला यह है, की जेरुसलम का अधिकतर हिस्सा संप्रभु देश की राजधानी के रूप में  इसराइल के पास रहेगा.



दूसरा पॉइंट यह है, की 70 लाख फिलिस्तीनियों को वापस लौटने का कोई अधिकार यानि की राइट to return नहीं मिल रहा है है.



तीसरा बिंदु यह है, की इसराइल और वेस्ट बैंक की सीमा निर्धारित हो गयी है.



और चौथा अंतिम पॉइंट यह है, की फिलिस्तीन के पास कोई अधिकार नहीं होगा, की वह अपनी रक्षा के लिए फाइटिंग फाॅर्स का निर्माण करे , और फिलिस्तीन के पास यह अधिकार भी नहीं होगा, की वह इसराइल के किसी भी दुश्मन देश के साथ डिफेंस एग्रीमेंट कर पाए.



जैसा की इन four पॉइंट से आपको समझ आ गया होगा, की यह पूरा का पूरा प्लान Safe and Secure इसराइल के पक्ष में तैयार किया गया है.



अब फिलिस्तीन के पास चार सालों का समय होगा, जिसमे वह इस प्रस्ताव को लेकर बातचीत और मोलभाव कर सकता है.



पहले के अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने फिलिस्तीन को जो कुछ ऑफर किया था, निःसंदेह उससे कम राष्ट्रपति ट्रम्प फिलिस्तीन को देने को तैयार हुए हैं.



लेकिन प्रेजिडेंट ट्रम्प ने फिलिस्तीन को जो ऑफर किया है, वह उससे अधिक है, जो वह पहले देने को तैयार थे.  यहाँ तक ट्रम्प की आलोचना करने वालो को यह उम्मीद नहीं थी, की ट्रम्प इतना सब फिलिस्तीन को दे देंगे.



जैसा की फिलिस्तीन ने इस प्लान को रिजेक्ट कर ही दिया है, और जितना इस शताब्दी के समझौते का विरोध अमेरिका के बहार हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा इसका विरोध अमेरिका के अंदर हो रहा है.



जब राष्ट्रपति ट्रम्प यह डील ऑफ़ सेंचुरी पेश कर रहे थे, तो इसराइल के प्रधानमंत्री उनके साथ थे, फिलिस्तीन की तरफ से कोई नुमाइंदा मौजूद नहीं था, इसलिए यह एक्सपेक्ट करना हमारी मूर्खता होगी, की ट्रम्प प्रशाशन यह उम्मीद कर रहा था, की बाद में फिलिस्तीन इस पीस प्लान को पचा पायेगा.



जबकि इसराइल के साथ शांति स्थापित कर लेने वाले Egypt और जॉर्डन ने अपने प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में नहीं भेजे,  लेकिन UAE, ओमान और बहरीन ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया.



इससे यह सिद्द हो जाता है, की डील ऑफ़ सेंचुरी को middle east के कुछ देशों का समर्थन तो पक्के से प्राप्त है.



करोड़ों की दलाली खाने वाले एक्सपर्ट लोगों का कहना है, की यह यह पूरी डील ऑफ़ सेंचुरी कोई पीस प्लान नहीं है, बल्कि यह मार्च महीने में बेंजामिन नेतन्याहू को चुनाव जितवाने का प्लान है.



लेकिन यह एक्सपर्ट इस बात को छुपा जाते हैं, की बेंजामिन नेतन्याहू के मुख्य प्रतिद्वंदी ने भी सोमवार को रास्ट्रपति ट्रम्प से मुलाक़ात करि, और यह वचन दिया, की 2 मार्च के चुनाव के बाद वह भी इस प्लान को इम्प्लीमेंट करेंगे.



फिर भी अमेरिका और इसराइल की लेफ्ट लिबरल मीडिया ने डील ऑफ़ सेंचुरी के खिलाफ कलम की तलवारें म्यान से बहार निकाल ली हैं.



यह पीस प्लान फिलिस्तीन के गले नहीं उतर रहा है, यह बात समझ आती है, लेकिन अमेरिका और इसराइल की थाली में खाने वाली एक्सपर्ट उसी थाली में छेद करने की कोसिस क्यों कर रहे हैं??



बात साफ़ है, चाहे भारत हो, इसराइल हो या अमेरिका हो, लेफ्ट लिबरल मीडिया देश हित की जगह दुश्मन देशों के हित साधने में लगी रहती है. वैसे भी पैसे और प्रसिद्धि पाने का सबसे आसान तरीका होता है, देश को ही बेचने लगना.



एनीवे अमेरिका ने अपनी चाल चल दी है, भले ही फिलिस्तीन इस डील ऑफ़ सेंचुरी को बॉयकॉट करता रहे, लेकिन इसराइल में कोई भी सर्कार बने, इस पीस प्लान पर जमीनी काम चालू होगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है.



फिर भी साफ़ तौर पर, इस प्लान के जमीं पर उतरने के लिए बेंजामिन नेतन्याहू का चुनाव जीतना जरूरी जान पड़ता है.



अब हम बात करते हैं, की भारत सर्कार इस डील ऑफ़ सेंचुरी पर क्या राय देगी.



जैसा की आपको अंदाज़ा होगा, सबसे आसान विकल्प है, की भारत भी two स्टेट के पुराने और फेल्ड solution के पीछे खड़े होकर इस नए पीस प्लान को रिजेक्ट कर दे.



और इस बात की सम्भावना भी अधिक है, की भारत इस इजी और रिस्क फ्री ऑप्शन को ही स्वीकार करेगी.



लेकिन बड़ा सवाल यह है, की जनता क्या इस पीस प्लान को सपोर्ट करती है. वैसे भी नेताओं को हिम्मत की खुराक जनता से मिलती है.



इसलिए पहले जनता को तय करना होगा, की वह डील ऑफ़ सेंचुरी के किस तरफ खड़ी है.



हमारा तो क्लियर कट विचार है. भारत ने इस डील ऑफ़ सेंचुरी का समर्थन करना चाहिए. वैसे भी, इस डील की घोसणा करके प्रेजिडेंट ट्रम्प ने इसराइल के पक्ष में एक बड़ी लकीर खेंच दी है. और केवल यही डील सेफ और सिक्योर इसराइल का रास्ता दिखलाती है.



बात साफ है, हम चाहे तमाशबीनो की तरह खड़े रहें, समय का पहिया तो आगे बढ़ चूका है. इसलिए परिवर्तन को स्वीकार करने में भलाई है. वैसे भी एक शक्तिशाली इसराइल भारत के लिए ज्यादा लाभकारी साबित होगा.



इसलिए भले ही भारत सर्कार एक बार फिर अपने विदेशी सम्बन्धो में संतुलन बनाये रखने की कोसिस करती रहे. हम सभी को अच्छे से पता है, की संकट के समय शक्तिशाली देश ही काम आते हैं.



1962 की लड़ाई में जब भारत हार रहा था, तो गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देश असहाय होकर तमाशा देख रहे थे, और हतास भारत को लिखित में अमेरिका के आगे हाथ फ़ैलाने पड़े थे.



स्वाभाविक है, नेहरू नाम की माला जपने वालों को यह बात बुरी लगेगी, लेकिन इतिहास की कड़वी सच्चाई तो यही है.



इसलिए जिस मित्र देश ने हर संकट के समय हमारी सहायता करि है, उसके पक्ष में बोलने में हमें शर्म क्यों आती है?



नफा नुकसान का अंदाज़ा लगाना पड़े लिखे एक्सपर्ट लोगों का काम है, हम जैसे आम लोगों को यही समझ आता है, की हर दुःख के समय जो इसराइल हमारे साथ खड़ा रहा, उसका हर मौके पर साथ देने में भारत को कोई संकोच नहीं करना चाहिए.

आप सभी ने देखा है, आज जो मीडिया डील of सेंचुरी का विरोध कर रही है, पिछले 72 सालों में इसी मीडिया ने पाकिस्तान और चीन के पांव दवाये हैं।

हर युद्ध के समय इन एक्सपर्ट लोगों ने भारत को केवल गालियां ही दी है, लेकिन मदद हमें इजराइल से ही मिली है, आप ही बताएं, भारत को एक्सपर्ट लोगों से ज्ञान लेना चाहिए, अथवा सच्चे दोस्त का साथ देना चाहिए?

इसलिए भले ही भारत सर्कार डील ऑफ़ सेंचुरी का स्वागत नहीं करे, हम सभी को इसके साथ खड़ा होना चाहिए.



साफ़ बात यह है, पहले जनता को जागना पड़ता है, बाद में नेताओं की नींद टूटती है.



अगर आप इस डील ऑफ़ सेंचुरी का समर्थन करते हैं, तो इस वीडियो को लाइक करना मत भूलियेगा.

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