America wants Support from India for Afghan Peace Deal (New Development)


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https://www.moneycontrol.com/news/world/trumps-peace-deal-with-taliban-is-exceedingly-bad-news-for-india-4967891.html
https://www.aljazeera.com/news/2020/02/ghani-abdullah-rivalry-undermine-afghan-peace-process-200221052054522.html
https://www.theguardian.com/world/2020/feb/21/mike-pompeo-us-reached-understanding-taliban-violence-afghanistan-peace
https://edition.cnn.com/2020/02/21/opinions/new-york-times-taliban-op-ed-haqqani-bergen/index.html
https://www.washingtonpost.com/nation/2020/02/21/nyt-taliban-haqqani/
https://www.dnaindia.com/india/report-washington-looks-for-support-from-india-ahead-of-us-taliban-deal-2814597



जैसा की आपको सायद पता हो, अफ़ग़ानिस्तान में सात दिन लम्बे रिडक्शन ऑफ़ वायलेंस प्लान पर काम पिछले शुक्रवार को चालू हो गया.



और यदि इन सात दिनों में अफ़ग़ान जमीं पर शांति कामय रही, तो 29 फरबरी को अफ़ग़ान पीस डील फाइनल हो जाएगी.



जबकि अमेरिका बेसब्री से 29 फरबरी का इंतजार कर रहा है, पाकिस्तान ने 29 को होने वाले एग्रीमेंट के लिए क्रेडिट खोरी अभी से चालू कर दी है.



लेकिन इस बीच अभी तक भारत ने अफ़ग़ान पीस डील का ना तो स्वागत और ना ही समर्थन किया है. और इसी बैकग्राउंड में प्रेजिडेंट ट्रम्प भी कल पहली बार भारत आने वाले हैं.



इसलिए अंदाज़ा लगया जा रहा है, और ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन के सीनियर ऑफिसियल  को यह अपेक्षा है, की भारत भी अफ़ग़ान पीस डील का सपोर्ट कर दे.



इसी सीनियर अधिकारी का कहना है, की अमेरिका आशा करता है, की भारत इस शांति प्रक्रिया को पूरा समर्थन दे.



जैसा की मीडिया में छापा जा रहा है, प्रेसीडेंट ट्रम्प की इस भारत यात्रा के दौरान वैसे भी ट्रेड डील तो होनी नहीं है,  कुछ 2 से 3 बिलियन डॉलर की डिफेंस डील्स होने वाली हैं, ऐसी सम्भावना जताई जा रही है.



इसलिए देखना रोचक होगा, की अफ़ग़ान पीस डील को लेकर भारत और अमेरिका के बीच क्या बात चीत होती है , क्या अमेरिका भारत से सहयोग की मांग करता है, अथवा भारत से अफ़ग़ानिस्तान में सेना डेप्लॉय करने के लिए कहता है.



जैसा की आप  में से ज्यादातर दर्शको का कहना रहा है, की यदि अमेरिका POK वापस लेने में पहले भारत की मदद करे, तो बदले में भारत अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की मदद कर सकता है.



लेकिन अब अफ़ग़ान पीस टॉक की बात बहुत आगे निकल चुकी है, और चूँकि इस साल के अंत में अमेरिका में चुनाव होने हैं, इसलिए मुश्किल है, अमेरिका के राष्ट्रपति अफ़ग़ानिस्तान से भागने के लिए भारत का POK पर कब्ज़ा होने का इंतजार करें.





जहाँ तक इस पीस डील का सवाल है, हमें नहीं लगता है, की भारत को इसका स्वागत अथवा समर्थन करना चाहिए. यह पीस डील कितनी सफल हुई, यह जमीं पर देखने में हमें कोई ज्यादा इंतजार वैसे भी नहीं करना होगा.





वैसे भी 29 फरबरी को पीस डील हो या ना हो, अमेरिका का अफ़ग़ानिस्तान से भाग खड़ा होना, केवल वक़्त की बात थी.



हाँ अफ़ग़ान पीस डील को चुनौती मिलेगी, 29 फरबरी के बाद ही, जब बिभिन्न अफ़ग़ान समुदायों के बीच बातचीत चालू होनी है.



अमेरिकन आईडिया तो यह है, की इधर Inter अफ़ग़ान टॉक्स चालू होगी, उधर अमेरिका के सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में अपना बैग पैक करना चालू कर देंगे.



लेकिन अभी तक यह तय नहीं है, की क्या इंटर अफ़ग़ान टॉक में अफ़ग़ानिस्तान की वर्तमान सर्कार गवर्नमेंट की हैसियत से भाग लेगी, अथवा अन्य किसी भी अफ़ग़ान समुदाय की तरह वह इंटर अफ़ग़ान टॉक में भीड़ बढ़ाने का काम करेगी.



उधर कुछ ही दिनों पहले, पांच महीनो बाद अफ़ग़ानिस्तान के चुनाव परिणाम घोसित हो गए, जिसमे प्रेसीडेंट घानी को विजयी घोसित किया गया, लेकिन पिछले पांच सालों से राष्ट्रपति घानी के साथ बेमन से काम कर रहे और राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाले चीफ एग्जीक्यूटिव अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने इन चुनाव परिणामो को मानने से साफ़ इंकार कर दिया है.



पिछली बार तो अमेरिका ने घानी और अब्दुल्ला के बीच दोस्ती करा दी थी, इस बार कौन इन्हे मिलकर सर्कार चलाने के लिए मनाएगा.



इसलिए देखना होगा, की जब प्रेसीडेंट घानी की सर्कार के आकर लेने पर अंदर ही अंदर घमासान मचा हुआ है, तब इस सबसे कमजोर अफ़ग़ान सर्कार को इंटर अफ़ग़ान टॉक में कितनी तब्बजो दी जाती है.



जैसा की आपको समझ आ गया होगा, अफ़ग़ान पीस डील का हश्र क्या होगा, यह अभी कहना बेहद मुश्किल होगा.



लेकिन जैसा हम आज सीरिया में देख रहे हैं, उसी तरह के नज़ारे हमें अमेरिकी सैनिको के चले जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में ना देखने मिले.



अभी तो रूस ने अफ़ग़ान पीस डील का स्वागत किया है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में शांति आएगी या नहीं, इसमें इस बात की इम्पोर्टेंस सबसे ज्यादा होगी , की प्रेसीडेंट पुतिन 29 फरबरी के बाद कौन से मोहरे आगे बढ़ाते हैं.



अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान खाली करने से जो स्पेस क्रिएट होगा, क्या उसे भरने के लिए प्रेसीडेंट पुतिन आगे आएंगे, यह देखने वाली बात होगी.



जैसा की आप में से अधिकतर लोगों का विस्वास रहा है, इतनी तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने अपने सैनिको को अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर नहीं उतारने चाहिए. हम भी आपकी ही बात का समर्थन करते हैं.



अभी देखना सिर्फ यह है, की प्रेसीडेंट ट्रम्प अफ़ग़ान पीस डील को भारत का समर्थन दिलाने के लिए क्या ऑफर सामने लाते हैं. लेकिन किसी भी हालत में हमें अमेरिका के अफ़ग़ान भूत को अपने सीने पर नहीं लादना है.



वैसे लगता नहीं है, की अफ़ग़ान पीस डील को भारत के समर्थन की कोई जरूरत है, क्योकि भारत साथ हो या ना हो, अमेरिका को तो अफ़ग़ानिस्तान से बचके निकलना है.



अभी तो बेस्ट ऑप्शन यही दिखाई देता है, की डिफेंसिव मोड को बनाये रखते हुए, हमें अफ़ग़ान पीस डील के जमीं पर उतरने का इंतजार करना चाहिए.



शांति को एक और मौका देने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, जहाँ तक अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर में भारत के हितों का सवाल है, उनकी रक्षा करने के लिए हर संभव कदम उठाया जाना चाहिए. पाकिस्तान या उसके प्यादों ने भारत के खिलाफ अगर कोई भी गुस्ताखी करि, तो उन्हें मुँह तोड़ जवाब दिया जायेगा.


हमें पूरा विस्वास है, वैसे भी POK को वापस लेने के लिए इंडियन आर्म्ड फोर्सेज के एग्रेसिव प्लान रेडी हैं, पाकिस्तान बस हलकी सी गलती तो करे, फिर इन प्लान्स को जमीं पर उतारने में देरी नहीं की जाएगी.

चीन चूँ चूँ करेगा, और पाकिस्तान पिटता रहेगा.

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