Super News - India to become Renewable Energy Manufacturing Hub


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Reference
https://www.hindustantimes.com/india-news/india-seeks-to-woo-renewable-energy-firms-shifting-from-china-plans-manufacturing-hubs-at-ports/story-QWHBaLLfCuLxYIsy0eHvoO.html
https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/renewable/mnre-steps-up-efforts-to-attract-investment-from-firms-shifting-base-from-china/75230039
https://www.sentinelassam.com/national-news/ministry-of-new-and-renewable-energy-mnre-moves-to-attract-firms-shifting-from-china/
https://www.livemint.com/industry/energy/facing-national-lockdown-deadlines-for-green-energy-projects-extended-11585216781582.html
https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/renewable/covid-19-need-to-focus-on-improving-domestic-solar-manufacturing-says-official/75215036
https://www.saurenergy.com/solar-energy-news/the-next-big-push-mnre-unveils-moves-to-push-manufacturing
https://mercomindia.com/indian-solar-industry-coronavirus-crisis/

हम सभी अच्छे से जानते हैं, की भारत अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए खाड़ी के कच्चे तेल पर निर्भर है, हमारी कुल आयल की जरूरत का अराउंड 80% विदेशो से import किया जाता है. कहने की जरूरत नहीं है, आयल को इम्पोर्ट करने में हमें अपना विदेशी मुद्रा भंडार खर्च करना पड़ता है.



भारत की एनर्जी सिक्योरिटी और व्यापारिक घाटे को कम करने के लिए सुझाया जाता है, की भारत ने ग्रीन एनर्जी जैसे की सोलर एनर्जी के उत्पादन पर फोकस करना चाहिए.



लेकिन हमारा दुर्भाग्य देखिये, की सोलर प्रोजेक्ट के लिए 85% सोलर सेल्स एंड modules विदेशो से import किये जाते हैं, और इस 85% में सबसे बड़ा हिस्सा है चीन का.



इसलिए बात साफ़ है, की हम सिर्फ ऊर्जा का रूप बदल रहे थे, विदेशो पर हमारी निर्भरता कम नहीं हो रही थी. पहले हम खाड़ी के कच्चे तेल पर निर्भर थे, और अब हम तेजी से चाइनीस सोलर इम्पोर्ट पर ओवर डिपेंडेंट होते चले जा रहे थे.



हालाँकि आप सभी को इस संकट की पहले से जानकारी है, और आप सभी ने इसके बारे में आवाज़ बुलंद की है. सायद इसलिए भारत सर्कार ने  विदेशो से सोलर इक्विपमेंट के आयत की की राह में रुकावट पैदा करि, और लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने के लिए नई योजनाएं बनाई.



लेकिन आप सभी को पता है, एक दिन में ताजमहल नहीं बनता है, इसी बीच भारत सर्कार का विरोध होने लगा, क्योकि पालिसी परिवर्तन के दौरान इंडियन सोलर प्रोजेक्ट धीमे होने लगे.



इंडियन सोलर इंडस्ट्री की ऑंखें खोली कोरोना वायरस ने, जब चीन से सोलर module की सप्लाई पर तलवार लटक गयी.


हालाँकि सोलर प्रोजेक्ट्स को राहत देते हुए भारत सर्कार ने उनकी कम्पलीशन डेट को बढ़ाने का निर्णय पिछले महीने कर दिया था.



फिर भी इस कोरोना महायुद्ध ने यह बात हमें दिखा दी है, की यदि आने वाले समय के लिए हमें अपनी एनर्जी सिक्योरिटी का पुख्ता इंतजाम करना है, तो हम अपनी 85 परसेंट जरूरत को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकते हैं.



आप सभी जानते हैं, निर्भरता सिर्फ शोषण को जन्म देती है. चीन पर इसी ओवर डिपेंडेंस का नजारा हमें रोजाना देखने को मिलता है, जबकि यह बात सभी जानते हैं, की कोरोना बीमारी को महामारी में तब्दील चीन ने किया है, लेकिन उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत अमेरिका के अलावा किसी में नहीं है.



ऐसा नहीं है, की चीन के खिलाफ बोलना कोई नहीं चाहता है, असल बात आपको भी पता है, चीन का विरोध करने से सब डरते हैं. और इस डर का कारण है चीन पर दुनिया की ओवर डिपेंडेंस.



लेकिन कोरोना को धन्यवाद्, भारत सर्कार ने अब राज्य सरकारों और पोर्ट अथॉरिटीज से कहा है, की वह  renewable  एनर्जी इक्विपमेंट की मैन्युफैक्चरिंग के नए केन्द्रो का विकास करे.



मैन्युफैक्चरिंग हब के निर्माण के लिए 50 से 500 एकड़ लैंड की पहचान की जानी है, जिसमे विदेशी निवेश का स्वागत होगा , ताकि भारत अपनी घरेलु जरूरत की पूर्ति घरेलु उत्पादन के द्वारा कर सके.



जबकि चीन से अपनी फैक्ट्रियों को शिफ्ट करने के लिए बड़ी बड़ी कंपनियों में विचार मंथन  चल रहा है, तब भारत ने प्रोऐक्टिवली आगे बढ़कर इनका स्वागत करना होगा, साथ ही आप सभी का साफ़ तौर पर मत रहा है, की हमें जमीं पानी सड़क और सरकारी स्वीकृति जैसी चीज़ों की पहले से व्यवस्था करनी होगी, ताकि इन कंपनियों को इन फालतू के झंझटों में बाद में ना फसना पड़े.



Renewable energy manufacturing पार्क्स के माध्यमसे भारत सर्कार आप सभी के सुझाव पर काम करती नजर आरही है.



साथ ही मोदी सर्कार ने मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों से बातचीत चालू कर दी है, और US-India Strategic Partnership फोरम के अंतर्गत अमेरिकन कंपनियों से भी इस छेत्र में निवेश और सहयोग की अपेक्षा की गयी है.



भारत सर्कार की यह योजना अभी कागजों पर देखने में अच्छी लगती है, लेकिन देखना होगा, की यह जमीं पर उतरने में कितना समय लेती है.



फिर भी जबकि मीडिया का पूरा ध्यान शार्ट टर्म में कोरोना की नेगेटिव खबरों पर केंद्रित है, तब भी भारत सर्कार लॉन्ग टर्म को ध्यान में रखते हुए, पॉजिटिव कामो में लगी है.



पेड़ पर फल लगने में समय लगता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं, की बीज ही ना बोया जाये.



यदि इस चाइनीस वायरस के कारन ग्लोबल सप्लाई चैन की 80 फ़ीसदी चीन पर डिपेंडेंस कम  होती है, तो इसे वर्तमान कोरोना संकट का सबसे सकारात्मक परिणाम मन जायेगा.



लेकिन सरकारों की नींद तोड़ने के लिए इस कोरोना संग्राम में डेढ़ लाख लोगों की बलि चढ़ चुकी है, और ना जाने यह आंकड़ा किस ऊंचाई पर जा कर रुकेगा. इसलिए दुनिया को कभी न कभी इस बात का अध्यन करना होगा, की चीन की साजिस के प्रति होस में आने के लिए हमने अपना सब कुछ क्यों लुटा दिया.



जैसा की आपको अंदाज़ा है, इस ग्लोबल सप्लाई चैन के transfer की राह में रोड़ा पैदा करने की चाइना 420 हर सम्भव कोसिस करेगा.



इस कोरोना वर्ल्ड वॉर में कम्युनिस्ट चीन और डेमोक्रेटिक कन्ट्रीज में से किसकी जीत होती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

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