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Reference
https://timesofindia.indiatimes.com/india/covid-19-india-to-get-high-speed-testing-machines-from-us/articleshow/75338101.cmsReference
https://www.thehindu.com/news/national/coronavirus-rapid-test-kits-were-cleared-by-icmr-say-chinese-manufacturers/article31419792.ece
https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-faring-better-than-other-countries-at-the-5l-test-mark-committee-chief/articleshow/75336392.cms
https://timesofindia.indiatimes.com/india/corona-testing-shifts-into-top-gear/articleshow/75000569.cms
https://www.dnaindia.com/india/report-russia-calls-india-s-decision-to-send-hydrocholoquine-noble-says-it-will-be-reciprocated-2822339
हम सभी यह जानते हैं, की हाल फ़िलहाल कोरोना संग्राम को लड़ने के दो ही तरीके है, टेस्टिंग एंड आइसोलेशन.
जबकि आंकड़े बताते हैं, की 22 अप्रैल तक भारत ने 5 लाख टेस्ट करके 20 हज़ार कोरोना पॉजिटिव केसेस का पता लगाया है.
लेकिन चुकी हमारी आवादी बहुत ज्यादा है, इसलिए भारत में टेस्टिंग कम हो रही है, यह इम्प्रैशन तो क्रिएट हो ही गया है. इसलिए टेस्टिंग को बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह भारत ने चीन से साढ़े छह लाख रैपिड टेस्ट किट मगवाई.
लेकिन जैसे ही इन टेस्ट किट का स्तेमाल किया गया, तो यह पता लगने लगा, की यह डिफेक्टिव चाइनीस किट गलत रिजल्ट दे रही है.
भारत ने चीन की जिन दो कंपनियों से यह रैपिड टेस्टिंग किट मगवाई थी, अब वह ऑफिसियल स्टेटमेंट के जरिये कह रही है, की उनकी टेस्टिंग किट इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के द्वारा एप्रूव्ड हैं, और उन्हें आश्चर्य हो रहा है, की आखिर यह सब कैसे हो रहा है.
इसलिए उन्होंने डिफेक्टिव चाइनीस किट का दोष भी भारत के सर पर धर दिया है, और कहा है, की हमने स्टोरेज और उपयोग के नियमो को पालन करना चाहिए.
लौ क्वालिटी की किट सप्लाई करने के लिए अफ़सोस तो छोड़िये, यहाँ तो उल्टा चाइनीस चोर इंडियन कोतवाल को ही डांट रहा है.
हमने फ़र्ज़ी चाइनीस किट कांड से कुछ सीखा या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन अभी मोदी साहेब का कहना है, की कोरोना के वायरस ने हमें यही बात सिखाई है, की हमें आत्मा निर्भर होना चाहिए.
अब आप स्वयं देख लीजिये, सायद अगर हमारी सरकारों ने आम आदमी की बात मानकर चीन पर डिपेंडेंस कम कर ली होती, तो सेल्फ डिपेंडेंस का महत्वा समझने के लिए आज हमें पुरे देश पर ताला नहीं लगाना पड़ता.
एनीवे, कुछ सबक ऐसे होते हैं, जिन्हे सिखाने की तागत केवल बलबान समय के पास ही होती है.
इसी बीच चूँकि भारत कोरोना टेस्टिंग की छमता को कई गुना बढ़ाने के लिए गंभीर कोसिस कर रहा है, सहायता का हाथ आगे बढ़ाया अमेरिका ने.
ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को छह हाई स्पीड कोरोना टेस्टिंग मशीन बेचने का निर्णय ले लिया है. यह मशीन एक साथ 6000 से 8000 टेस्ट कर सकती है.
आपको भी पता है, कोरोना की हालत अमेरिका में कितनी ख़राब है, और वहां इस तरह की मशीन की बेहद जरूरत है, फिर भी भारत की रिक्वेस्ट को ध्यान में रखने हुए, अमेरिका ने भारत को यह SUV साइज्ड मशीन बेचने का निर्णय लिया है.
यहाँ कहने की जरूरत नहीं है, जिस तरह भारत ने अमेरिका को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन दवा सप्लाई की, उस भारतीय निर्णय ने भी अमेरिका को हमारी मदद करने के लिए बाध्य किया होगा.
और ऐसा नहीं है, की अमेरिका ही अकेला भारत को बदले में सहायता दे रहा है. साउथ कोरिया की कंपनी ने तो भारत में स्थित प्लांट से हर सप्ताह 5 लाख टेस्टिंग किट का प्रोडक्शन चालू कर दिया है.
भारत में रूस के राजदूत ने भी साफ़ कर दिया है, की भारत ने जिस प्रकार रूस की मदद करते हुए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन के एक्सपोर्ट को मंजूरी दी, वह प्रशंसनीय है. और रूस भारत के इस उपकार का बदला निश्चित रूप से चुकाएगा.
भारत और रूस की दोस्ती दशकों पुरानी है, इसमें उतार चढ़ाव भी आये और गीले शिकवे भी पैदा हुए हैं, लेकिन चूँकि यह दोस्ती समय की कसौटी पर खरी उतरी है, इसलिए ना तो हमने रूस पर कोई उपकार किया और ना ही हमें किसी बदले की अपेक्षा है.
लेकिन बड़ी बात यहाँ पर यह है, की दोस्त और दुश्मन में फ़र्क़ क्या होता है. भारत ने मदद तो चीन की भी की थी. आप सबको याद होगा, कुछ ही सप्ताह पहले भारत ने हवाई जहाज में भर भर के चीन को सहायता सामग्री भेजी थी. लेकिन Return में हमें क्या मिला, डिफेक्टिव रैपिड टेस्टिंग किट्स.
कई लोगों का कहना रहता है, की भारत और चीन में दोस्ती संभव है, लेकिन आप स्वयं चीन का ब्यवहार देख लीजिये, वह भारत को दोस्त नहीं पिछलग्गू बनाना चाहता है. और भारत को मजबूर करने के लिए ही वह हर मौके पर अपने पाकिस्तानी प्यादे का भरपूर उपयोग करता है.
जहाँ तक भारत की बात है, हम लोग शतरज के प्रतिद्वंदी को भूलकर उसके द्वारा आगे बढ़ाये जाने वाले प्यादे पाकिस्तान पर ही अपनी पूरी ऊर्जा और समय बर्बाद कर देते हैं, और यही है, भारत के खिलाफ चीन की रणनीति की सबसे बड़ी सफलता.
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