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Reference
https://www.livemint.com/news/india/up-govt-invites-us-based-companies-to-shift-investment-from-china-11588182633930.html
https://economictimes.indiatimes.com/news/international/business/us-supports-firms-weighing-india-as-alternative-to-china/articleshow/75437352.cms
https://www.indiatoday.in/india/story/us-in-talks-with-india-other-friends-to-restructure-global-supply-chains-says-mike-pompeo-1672842-2020-04-30
https://www.siasat.com/us-discussing-restructuring-supply-chains-india-pompeo-1881787/
पिछले लम्बे समय से आप सभी का कहना यह रहा है, की भारत ने कोसिस करना चाहिए, ताकिअमेरिकन कंपनियां चीन से उखाड़ कर अपना प्लांट भारत में लगाने के लिए प्रेरित हो.
हमेसा से चर्चा का विषय यह रहता था, की कैसे भारत को विदेशी पूजी निवेश और वैश्विक स्तर के उत्पादन के लायक बनाया जाये.
असली मेड इन चाइना वायरस का कमाल देखिये, की अब उलटी गंगा बहने लगी है.
कल ही आपने सायद अख़बारों में पड़ा हो, US स्टेट डिपार्टमेंट के सीनियर अधिकारी ने बड़ी बड़ी अमेरिकी कंपनियों को यह बतलाया, की उन्हें घवड़ाने की जरूरत नहीं है, क्योकि आज उनकी जो भी इंडस्ट्रियल एक्टिविटी चीन में हो रही है, उसको आसानी से और तुरंत इंडिया में ले जाया जा सकता है. क्योकि भारत अमेरिका के लिए एक फेवरेबल ऑप्शन है.
यह तो हो गयी, अमेरिकी विदेश मंत्रालय की बात, आज तो उनके विदेश मंत्री ने भी कह दिया, की अमेरिका भारत जैसे मित्र देशो के साथ बातचीत कर रहा है, ताकि ग्लोबल सप्लाई चैन को restructure किया जा सके, तभी निश्चित हो पायेगा, की आज जो हमारे साथ हो रहा है, वह भविस्य में दोबारा घटित ना हो.
आप सभी कई बर्षो से कहते आ रहे हैं, की पूरी दुनिया की सप्लाई का 80 परसेंट चीन पर डिपेंडेंट होना खतरनाक है, तब लाखों करोड़ों की सैलरी उठाने वाले विद्वान हम सभी को ग्लोबलाइजेशन के लाभ बताते थे.
सस्ता और घटिया सस्ता माल जो दुनिया को नहीं सीखा पाया, आज बेहद ऊँची कीमत पर वही पाठ हाई क्वालिटी चाइनीस वायरस ने पूरी दुनिया को अच्छे ढंग से पड़ा दिया है.
काश विद्वानों ने आम आदमी की बात तब सुन ली होती, तो आज दुनिया पर ताला नहीं डालना पड़ता.
आज जब स्वयं अमेरिका ग्लोबल सप्लाई चैन को शिफ्ट करने की कोसिस कर रहा है, तो भी एक्सपर्ट लोग हमें यही बता रहे हैं, की कोरोना संग्राम में हमने चीन के साथ मिलकर लड़ना चाहिए.
आप सभी को पता है, प्रधान मंत्री मोदी जी ने मुख्य मंत्रियो के साथ बैठक में साफ़ कर दिया था, की अमेरिकी कंपनियां चीन से अपने प्लांट ट्रांसफर करने के लिए अल्टरनेटिव ऑप्शन को तलाश रही हैं, इसलिए इस मौके का लाभ उठाने के लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए.
इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश ने १०० अमेरिकी कंपनियों के साथ वीडियो कांफ्रेंस करके साफ़ कर दिया है, की वह अमेरिकन कंपनियों के हिसाब से इंडस्ट्रियल पालिसी में न्याय संगत परिवर्तन कर सकता है.
मोदी साहब दिल्ली में बैठकर कोई भी डिसिशन ले लें, जब तक उसे जमीं पर राज्य सरकारों के द्वारा नहीं उतारा जायेगा, तब तक ये सब दिल बहलाने के लिए बातें ही बनी रहेंगी.
जिस प्रकार गुजरात और उत्तर प्रदेश ने हाल ही के दिनों में अमेरिकी कंपनियों का स्वागत करने के लिए सजगता दिखाई है, उम्मीद है, उसी तरह वह जमीं पर बदलाव लेकर आएंगे.
कोरोना वायरस ने इंडिया को ग्लोबल फैक्ट्री बनाने का रास्ता खोल दिया है, हमें अब सिर्फ उस पर तेजी से चलना है. और इस दौड़ में राज्य और केंद्र सर्कार को मिलकर दौड़ना होगा .
यदि केंद्र और राज्य सरकारें चाइनीस वायरस से लड़ने के लिए कंधे से कन्धा मिला सकती है, तो अमेरिकी कंपनियों के स्वागत के लिए हम हाथ से हाथ क्यों नहीं मिला सकते हैं???
अभी हाल ही में क्रिसिल की रिपोर्ट में इस साल भारत की आर्थिक विकास की रफ़्तार महज १.8 परसेंट रहने का अनुमान है. हमारे देश को पहुंचे इतने बड़े नुकसान की भरपाई के लिए यह बेहद जरूरी है, की अगले तीन सालों में सालाना भारत की विकास की दर 8.5 परसेंट रहे.
और इस विकास की रफ़्तार से ही अगले तीन सालों में हमारी इकॉनमी की गाड़ी पटरी पर आ पायेगी. नहीं तो हमारे देश में भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी की बाढ़ को रोक पाना असंभव हो जायेगा.
जाहिर है, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए केंद्र राज्य सरकारों और RBI को मदद करनी होगी. लेकिन बड़े पैमाने पर ग्लोबल इन्वेस्टमेंट के आभाव में यह टारगेट हांसिल नहीं किया जा सकता है.
इसलिए यदि अमेरिका चीन से ग्लोबल सप्लाई चैन के ट्रांसफर को सपोर्ट कर रहा है, तो हमें हाथ पर हाथ धरकर बैठना नहीं है. बल्कि हमें हाथ खोलकर उनका स्वागत करना है. यह बात कॉमन सेंस की है, लेकिन अभी भी कई राज्य सरकारों के गले यह बात नहीं उतर रही है.
इस वीडियो के अंत में हम बात करते हैं इतिहास की. बात हैं वर्ष 1972 की, जब पच्चीस सालों के बाद अमेरिकन प्रेजिडेंट रिचर्ड निक्सन ने चीन की सात दिनों की यात्रा की, और फिर कई उतार चढ़ाव आये, लेकिन चीन और अमेरिका के बीच आपसी सम्बन्ध बढ़ते चले गए. लेकिन इसका सीधा लाभ पंहुचा चीन को.
आपको सायद पता हो, रिचर्ड निक्सन की इस यात्रा के लिए जमीं तैयार की थी पाकिस्तान ने.
जब अमेरिका चीन को ग्लोबल फैक्ट्री बना रहा था, तब हम अमेरिका को शक की निगाह से देखते थे. कहने को हम थे, गुट निरपेक्ष, लेकिन हम किस गुट का हिस्सा थे, यह इतिहास को भी पता है.
पाकिस्तान और चीन ने तब अमेरिका का लाभ उठाकर सही दाव खेला था, परिणाम हमारे सामने है, आज चीन दुनिया की नंबर १ शक्ति बनने के लिए दावा पेश कर रहा है.
वर्ष 1972 में भारत ने जिस मौके को गवाया, अब वही मौका हमारे सामने फिर खड़ा हुआ है, हम इसका लाभ उठा पाते हैं, या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.
लेकिन एक बात तो तय है, जो इतिहास से नहीं सीखते हैं, वह वर्तमान का शिकार बनते हैं. 1972 में रूस के साथ दोस्ती की खातिर हमने अपने आर्थिक हितों की कुर्वानी दे दी, क्या 2020 में हम चीन जैसे दुस्ट पडोसी के साथ दोस्ती की आस में फिर अपने सुनहरे भविस्य को अंधकारमय बना देंगे??
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