Well Done Africa - Mega Chinese Project Cancelled



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Reference



इस वीडियो की स्पांसर अर्पिता गुप्ता जी को धन्यवाद, आपका कंट्रीब्यूशन हमारे लिए बेहद इम्पोर्टेन्ट है.



सायद आपको पता हो, चीन और तंज़ानिया के बीच 55 साल पुरानी चट्टानी दोस्ती है.





आठ साल पहले तंज़ानिया में निवेश करने वाले देशो में चीन 6th पोजीशन पर था. लेकिन आज चीन तंज़ानिया में निवेश करने वाला नंबर १ का दोस्त है.





इस पृष्ठ्भूमि में अब आप सुनिए की चीन किस तरह अपने दोस्तों के साथ वर्ताव करता है,



वर्ष 2013 में चीन के राष्ट्रपति ने बागमायो पोर्ट के लिए 10 बिलियन डॉलर की भारी भरकम डील तंज़ानिया के साथ फाइनल की थी.



बागमायो पोर्ट को तंज़ानिया में सबसे बड़े  इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में जाना जाता है. हलाकि पोर्ट को लेकर फ्रेमवर्क एग्रीमेंट वर्ष 2013 में तैयार हो चुका था, लेकिन तभी से चाइनीस इन्वेस्टमेंट को लेकर दोनों चट्टानी दोस्तों के बीच दरार पैदा हो गयी.



इसी बीच 2015 के चुनाव में हो गया तंज़ानिया में सत्ता परिवर्तन. और वर्ष 2016 में इस प्रोजेक्ट के ऊपर तलवार लटक गयी.



लेकिन फिर भी दोनों देशो के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत और मोलभाव चलता रहा, फिर ऐसी खबरें आयी, की वर्ष 2018 में  चाइनीस कंपनी इस प्रोजेक्ट पर कंस्ट्रक्शन चालू कर देगी.



इससे पहले की प्रोजेक्ट जमीं पर रफ़्तार पकड़ पता, यह फिर बातचीत के जाल में उलझ गया.



इसलिए सवाल उठता है, की आखिर यहाँ दिक्कत क्या थी,



इसका जवाब यह है, की इस प्रोजेक्ट के इम्प्लीमेंटेशन के दौरान यदि चीन को कोई भी नुकसान होता है, तो अगले 33 वर्षों के लिए गरीब तंज़ानिया ने अमीर  चीन को कंपनसेशन देना था. साथ ही, इस प्रोजेक्ट को लाभकारी ढंग से चलाने के लिए गरीब तंज़ानिया ने इस प्रोजेक्ट को टैक्स में छूट भी देना थी.





साथ ही श्री लंका के हम्बनटोटा पोर्ट की तरह चीन ने इस प्रोजेक्ट को अगले 99 वर्षो के लिए लीज पर भी ले लिया था.



चीन की शर्तें यही पर ख़तम हो जाती तो ठीक होता, लेकिन चीन ने यह डिमांड भी रख दी, बागमायो पोर्ट के बन जाने के बाद, तंज़ानिया उत्तर  में टेंगा पोर्ट और दक्षिण में मतवारा के बीच कोई और नया पोर्ट नहीं बना सकता था.





सिंपल शब्दों में, बागमायो पोर्ट में चीन से पैसा लेने के लिए, तंज़ानिया ने अपनी सम्प्रभुता गिरबी रख दी थी, और उसे अपनी पूरी कोस्ट लाइन पर कहीं भी  नया पोर्ट बनाने के पहले चीन का मुँह देखना पड़ता.



तंज़ानिया को चीन के कर्जे की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही थी, यह आपको समझ आ गया होगा.



आपने  चीन को कहते सुना होगा, की वह दुनिया के साथ मिलकर काम करना चाहता है, अब आप स्वयं देख लीजिये चीन की कथनी और करनी का फ़र्क़.



आप ही बताएं, क्या कोई ऐसा प्रोजेक्ट तंजानिया के लिए लाभकारी हो सकता है, जहाँ कॉस्ट पूरी तंजानिया भरे, और चीन अकेला मलाई उड़ाए.



होस्ट कंट्री के खिलाफ इतनी हानिकारक शर्तों के कारण ही, चीन हर देश को मजबूर करता है, की एग्रीमेंट की डिटेल्स  देश की जनता को कभी ना बताई जाये.



इन शर्तो के मद्दे नजर तंज़ानिया की नै सर्कार का कहना था, की ना तो चीन को 30 सालों के लिए प्रॉफिट की गारंटी मिलेगी, और ना ही उसे 99 बर्षो के लिए Port लीज पर दिया जायेगा.



यदि चीन चाहे तो उसे 99 वर्ष नहीं, लेकिन 33 वर्षो का लीज पीरियड जरूर मिल सकता है.



पासा पलटते देख इसलिए चीन के हाथ पाँव पड़ गए ठन्डे, और वह बातचीत की table से बिना बताये ही ऐसा गायब हुआ, की लौटकर दोबारा नहीं आया.



अब इस साल ही तंजानिया में चुनाव होने वाले हैं, जबकि इस बागमायो पोर्ट को किलर चाइनीस प्रोजेक्ट की उपाधि से नवाजा जा चूका है, इसलिए तंज़ानिया के राष्ट्रपति ने ऑफिशियली बागमायो पोर्ट को कैंसिल कर दिया है.



उनका कहनासाफ़ है, की चाइनीस लोन की कंडीशंस इतनी खतरनाक थी, की केवल नशे में धूत व्यक्ति ही उस पर सिग्नेचर कर सकता है.



अभी जबकि बागमायो पोर्ट प्रोजेक्ट कैंसिल हो गया है, हमें इस प्रोजेक्ट को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए, क्योकि पता नहीं, तंज़ानिया की नई सर्कार का इस प्रोजेक्ट पर क्या रुख होता है.




लेकिन बड़ी बात यह है, की चीन के राष्ट्रपति जो कुछ दिनों पहले तक दुनिया भर में ब्लेंक चेक बांटते घूमते थे, प्रेजिडेंट ट्रम्प के चार साल और कोरोना के चार महीनो ने उन्हें कंजूश मक्खीचूस बना दिया है. तभी तो सायद, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के माध्यम से इंफ्रास्ट्रक्चर के एक और सफ़ेद हाथी को पैदा करने की उनमे हिम्मत नहीं बची है.



जिस तरह बागमायो पोर्ट  प्रोजेक्ट की शर्तें सामने आयी है, आप सभी का यह कहना सही साबित होता है, की  गरीबी हटाने में  चीन का कोई interest नहीं है, बल्कि वह छोटे छोटे गरीब देशो को कर्ज के जाल में फ़ांस कर भिख्मन्गा बनाना चाहता है.



इसी बैकग्राउंड में यह भी कहा जाता है, की भारत ने अफ्रीका के इन देशो में निवेश बढ़ाना चाहिए. हम यहाँ पर यही कहना चाहेंगे, की अभी हमारे देश में इतने अधिक विकास की जरूरत है, की हमारे पास इंफ्रास्ट्रक्चर के अफ्रीकन वाइट elephant को पालने के लिए समय ऊर्जा और धन नहीं है.



वैसे भी ये श्री लंका पाकिस्तान और तंज़ानिया जैसे देश भी कोई दूध के धुले नहीं है, वह भी अमेरिका के खिलाफ चीन और चीन का डर दिखाकर भारत से लाभ उठाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं.



इसलिए अफ्रीका या कहीं भी किसी भी प्रोजेक्ट में Indian tax payers का पैसा फ़साते समय स्वाभाविक रूप से पहले यह निश्चित किया जाना चाहिए, की उसके सफल होने की संभवना शत प्रतिशत होनी चाहिए.

हमारे दर्शकों विक्रांत जी और धर्मेंद्र जी ने वीडियो बनाने के लिए इस टॉपिक को रेकमेंड किया था, हम उन्हें धन्यवाद् देते हैं.

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