Super News - America & Afghanistan Thanked India


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आप सभी को अच्छे से पता है, की पिछले 18 सालों से चल रहे अफगान तूफान को साधने के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच डील पर पिछली फरबरी में हस्ताक्षर हुए थे.

सितम्बर 2018 में यह तालिबान के साथ बातचीत का नाटक चालू हुआ, और हम सभी ने बड़े अच्छे से देखा है, की पाकिस्तान के द्वारा प्रायोजित इस बातचीत में भाग लेते समय अमेरिका ने भारत के हितों और विचारों की बिलकुल भी परवाह नहीं की.

यहाँ तक की अमेरिका के स्पेशल रिप्रेजेन्टेटिव को तो कई महीनो तक भारत से बातचीत करने तक का समय नहीं मिला.

वैसे भी अमेरिका को पीस डील की इतनी तेजाइ थी, की उसे पाकिस्तान से प्यारा और कोई नजर आ ही नहीं रहा था.

एनीवे पीस डील तो हो गयी फरबरी में, लेकिन पिछले 3 महीनो में जमीं पर बात आगे नहीं बढ़ पायी. 

यहाँ तक की इसी दौरान एक ऐसा वक़्त भी आया, जब अफ़ग़ानिस्तान में दो दो राष्ट्रपतियों ने सपथ ले ली. अमेरिका ने अफ़ग़ान लीडर्स को हर तरह की धमकी दे डाली, लेकिन कुछ काम ना आया.

तब जाके अमेरिका के होस ठिकाने पर आये, और पाकिस्तान जाने के पहले इसी महीने की शुरुआत में अमेरिकन स्पेशल रिप्रेजेन्टेटिव ने भारत की यात्रा करि.  

वैसे आपको याद होगा, पिछले २ सालों में लगातार भारत में ही कुछ विद्वान लोग तालिबान की तरफ से मोर्चा सम्हाले हुए हैं, और उनका कहना रहा है, की अड़ियल भारत लकीर पीट रहा है, उसने फ्लेक्सिबिलिटी दिखलाते हुए तालिबान से बातचीत चालू कर देनी चाहिए.

वैसे unofficially पीछे के दरबाजे से बातचीत हमेसा चलती रहती है, लेकिन यहाँ सलाह दी जाती है, की भारत ने आधिकारिक रूप से तालिबान से बात करके उसके अस्तित्व को जायज़ मान लेना चाहिए.

लेकिन तारीफ करनी होगी मोदी सर्कार की , उसने अफ़ग़ानिस्तान में भारत के दोस्तों को आज तक अकेला नहीं छोड़ा. और इसी का परिणाम देखने को मिला, की अमेरिकन स्पेशल रिप्रेजेन्टेटिव की भारत यात्रा के तुरंत बाद ही अफ़ग़ानिस्तान का पोलिटिकल क्राइसिस समाप्त हो गया.

किसी ने भारत को इसका श्रेय नहीं दिया, और हम भी क्रेडिट के भूखें नहीं है. लेकिन आप ही बताएं, जो काम अमेरिका तक नहीं करा पाया, फिर महीनो से लड़ रहे दो राष्ट्रपतियों के बीच अचानक से दोस्ती कैसे हो गयी??

इसी दौरान The हिन्दू अख़बार में तालिबान के हवाले से खबरें छपने लगी, की तालिबान कश्मीर को भारत का आतंरिक मसला मानता है, इसलिए वह पाकिस्तान की तरफ से कोई हस्तक्छेप नहीं करेगा. 

तालिबान के ये सभी स्टेटमेंट छपते ही मानो भारत के वामपंथी विद्वानों को जैसे जीवनदान मिल गया हो, उन्होंने फिर आवाज़ उठाना चालू कर दिया, की अब तो भारत ने तालिबान से आधिकारिक बातचीत चालू कर ही देनी चाहिए.

लेकिन असली गेम आप सभी को पता है, तालिबान को भारत से बात करने में कोई रूचि नहीं है, बल्कि वह तो अफ़ग़ान लोकतान्त्रिक सर्कार को प्राप्त भारत के सपोर्ट को कमजोर होता दिखाना चाहता है.


यहाँ तक की  अमेरिकन डिफेंस intelligence की ताजा रिपोर्ट में साफ़ हो गया है, की पहले की तरह आज भी पाकिस्तान ही तालिबान को पाल पोस रहा है, ताकि वह तालिबान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सके.

लेफ्ट लिबरल विद्वान यह सिंपल बात भूल जाते हैं, की अपने आपको  मुगलों का उत्तराधिकारी मानने वाला  पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान सिर्फ इसलिए चाहिए, ताकि वह हिंदुस्तान पर कब्ज़ा कर सके. अफ़ग़ानिस्तान  खेल का अंत नहीं, शुरुआत है.

आप सभी को अच्छे से अंदेशा है,  चीन के प्यादे पाकिस्तान की साजिस पहले कश्मीर को  और फिर बाद में हिंदुस्तान को हिन्दुओं से छीनने की है.

इसलिए हज़ारों सालों से चले आ रहे कनफ्लिक्ट को आज का अख़बार पढ़कर हल नहीं किया जा सकता है.

हम सभी देख रहे हैं, किस तरह कम्युनिस्ट चाइना ने हिन्दू नेपाल और हिंदुस्तान के बीच कभी न भर सकने वाली दरार पैदा कर दी है. 

इसी बैकग्राउंड में अफ़ग़ान हाई कौंसिल फॉर नेशनल रेकन्सीलिएशन के चेयरमैन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने अफ़ग़ानिस्तान में भारत के राजदूत से मुलाक़ात करि,  और उन्होंने आधिकारिक रूप से भारत को धन्यवाद् दिया.

क्योकि भारत ने राजनैतिक असमंजस का दौर ख़तम किया, और सभी लोगों का प्रतिनिध्त्व करने वाली सर्कार के निर्माड में सहयोग प्रदान किया. साथ ही भारत के सपोर्ट के बल पर ही अफ़ग़ान हाई कौंसिल फॉर नेशनल रेकन्सीलिएशन की स्थापना हो पायी, जो तालिबान के साथ भविस्य की शांति वार्ताओं का नेतृत्व करेगी.

और तो और अफ़ग़ान पीस टॉक्स के दौरान भारत को भूल चुके अमेरिका को भी अब हिंदुस्तान याद आने लगा है, US स्टेट  डिपार्टमेंट की सीनियर अधिकारी के अनुसार, हेल्थी अफ़ग़ानिस्तान को भारत के साथ हेल्थी रिलेशनशिप की जरूरत होगी, और भारत अफ़ग़ान खेल का क्रिटिकल प्लेयर भी है.

इसी बीच पाकिस्तान रूस चीन और ईरान ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिये मीटिंग करके अफ़ग़ान पीस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट कर दी है. यह हम सभी को पता है, इन अफ़ग़ान पीस से ज्यादा इन देशो की रूचि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की पीठ देखना है.

लेकिन इस पुरे घटनाक्रम से साफ़ हो जाता है, की खेल में जीत और हार का फैसला अभी नहीं हुआ है. इसलिए बिना फल की चिंता किये भारत अपनी भूमिका को अच्छे से निभाता रहेगा, ऐसा हमें विस्वास है. लेकिन एक बात निश्चित है, तालिबान जैसे दुशमन से बात करने के लिए भारत अफ़ग़ान सर्कार जैसे अपने दोस्तों को किसी भी कीमत पर दगा नहीं देगा.

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