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हम सभी को पता है, पिछले कुछ दिनों में लद्दाक और सिक्किम में भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ चूका है.
एक और चीन डायरेक्ट इंडिया को चुनौती दे रहा है, तो दूसरी और उसने अपने प्यादे नेपाल को भी पिटने के लिए आगे बड़ा दिया है. आप सभी को जानकारी है, नेपाल ने मनमानी करते हुए, अपना नया मानचित्र प्रकाशित कर दिया है.
जबकि स्वयं इंडियन आर्मी चीफ ने संदेह प्रकट किया था , की नेपाल किसी और के बहकावे में आ चूका है, फिर भी the वायर जैसे news paper हमें यह समझाने की कोसिस कर रहे हैं, की चीन का नेपाल की हरकतों से कोई लेना देना नहीं है.
अब आप स्वयं देख लीजिये, ये वामपंथी विद्वान देश के नहीं वल्कि केवल अपनी विचारधारा के सगे होते हैं. भारत ने इन्हे पाल पोस कर बड़ा किया, लेकिन भारत में रहकर यह कम्युनिस्ट चीन और नेपाल के स्वार्थ साधते हैं.
जबकि सीमा पर हमारे सैनिक मजबूती से डटे हुए हैं, वामपंथी विद्वानों ने भारत में चीन और नेपाल की तरफ से मोर्चा सम्हाल लिया है.
जब आम लोगों ने कोरोना को चाइनीस वायरस कहा, तो इन कम्युनिस्ट लोगों के पेट में बड़ा दर्द हुआ, लेकिन आज नेपाल के प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को इंडियन वायरस कहा, तो पूरी की पूरी मीडिया में प्रशन्नता से भरा सन्नाटा पसरा हुआ है.
हम उम्मीद करते हैं, की अगली बार नेपाली कम्युनिस्ट सर्कार की मदद करने के पहले भारत सर्कार नेपाली प्रधानमंत्री का यह स्टेटमेंट जरूर याद रखे. आप ही बताएं, आखिर कब तक हम सांपो को दूध पिलाते रहेंगे??
इसी बीच खबरें आ रही है, की पेंगोंग लेक में चीन ने अपनी पेट्रोल बॉट्स की संख्या में तीन गुना बृद्धि कर दी है, और गलवान वैली रीजन में चीन ने 100 टेम्पोररारी तम्बू भी खड़े कर लिए है.
बात साफ़ है, तीन साल पहले हुए डोकलाम विवाद की पुनरावृति हो रही है. लेकिन गर्व की बात यह है, की इस बार रोल रिवर्स हो चुके हैं. भारत मजबूती से खड़ा है, और चीन रो धो रहा है.
आज जब भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है, यह देखने में अच्छा लगता है, की सबसे पहले स्टेटमेंट आया, अमेरिकन स्टेट डिमार्टमेंट के सीनियर ऑफिसियल की तरफ से, जिसमे उन्होंने भारत के पक्ष का indirectly support किया है.
जी हाँ, Alice जी वेल्स का कहना है, चीन का आक्रामक व्यवहवार केवल उसकी बोली तक सीमित नहीं है, चाहे साउथ चाइना सी हो अथवा इंडिया के साथ बॉर्डर हो, हर जगह हमें चीन की भड़काऊ प्रवत्ति देखने को मिलती है, जो पूरी तरह से साफ़ कर देती है, की शक्तिशाली चीन किस दिशा में आगे बढ़ रहा है.
चीन के इरादों के बारे में आप सभी को यह पहले से मालूम है, अच्छा है, अब अमेरिका के अधिकारीयों को भी उनकी भनक लग रही है, और वह सीमा विवाद में भारत के साथ खड़े हो रहे हैं.
इसी बीच भारत में बैठे वामपंथी विद्वान जो भारत से नेपाल का तुस्टीकरण करने को कहते हैं, उन्हें इस सवाल का जवाब देना चाहिए, की जब अमेरिका नेपाल को सड़क और बिजली के छेत्र में काम करने के लिए 500 मिलियन डॉलर का लोन देने को तैयार बैठा है, तो नेपाल के पाँव क्यों कांप रहे हैं.
पैसा तो पैसा हो था, चाहे चीन से आये या अमेरिका से, लेकिन फिर भी अमेरिका को नेपाल को लोन चैलेंज देना पड़ रहा है. इसे ही कहते हैं, चाइनीस कर्ज का जाल, जिसमे फंसकर नेपाल ने अपनी सम्प्रभुता का सौदा कर लिया है.
बात साफ़ है, अब भी यदि हमने नेपाल के ऊपर दरियादिली दिखाई, तो हमसे बड़ा मुर्ख कोई नहीं होगा.
अंत में अमेरिका को धन्यवाद, की उसने सबसे पहले भारत का खुले तौर पर साथ दिया है. अब आप में से कुछ लोग कह सकते हैं, की अमेरिका स्वार्थी है, वह किसी का दोस्त नहीं हो सकता है.
तो आप हमें यह भी बताएं, की दुनिया का कौन सा देश स्वार्थी नहीं है, बड़ा सवाल यह है, की हमें अमेरिका जैसे स्वार्थी और चीन जैसे दुश्मन देश में फ़र्क़ करना आता है या नहीं.
फिर भी आप कह सकते हैं, की मोदी साहब भारत को अमेरिका के चंगुल में धकेल रहे हैं, पहली बात तो यह है, की भारत अमेरिका की दोस्ती को मोदी साहेब नहीं, बल्कि चाइनीस राजा मजबूत कर रहे हैं.
लेकिन फिर भी आप कह सकते हैं, की गुट निरपेक्ष भारत को अमेरिका से मदद लेने की कोई जरूरत नहीं है, तो आपसे एक छोटा सा सवाल यह है, की 1962 की लड़ाई में भारतीय वायु सेना का प्रभावी इस्तेमाल ना करने वाले नेहरू ने US एयरफोर्स के लिए लिखित में अमेरिका के आगे हाथ क्यों फैलाये थे??
जब भारत चीन से युद्ध में हार रहा था, तक गुट निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल मित्र देश कहा थे?
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