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इस वीडियो को स्पांसर करने के लिए छत्रम पुट्टप्पा जी को धन्यवाद्, आपका कंट्रीब्यूशन हमारे लिए इम्पोर्टेन्ट है.
जैसा की हम सभी देख रहे हैं, की लाइन ऑफ़ एक्चुअल कट्रोल पर भारत और चीन के बीच तनातनी बनी हुई है. दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक स्तर पर बातचीत चल रही है, और अपेक्षा जताई जा रही है, की एक सप्ताह के बीच मामले पर मिटटी डाल दी जाएगी.
लेकिन इसी बीच दोनों पक्षों ने बॉर्डर पर अपना अपना deployment बड़ा दिया है, पिछले सप्ताह इंडियन आर्मी चीफ ने भी लद्दाख का दौरा करके साफ़ कर दिया, की भारत चीन से लोहा लेने के लिए तैयार है.
इसी दौरान भारतीय मीडिया में पैनिक का माहौल पसरा हुआ है, चालबाज़ चीन और उसके पाकिस्तान नेपाल जैसे चिरकुटों से एक साथ अकेला भारत कैसे निपट पायेगा, इस सवाल को लेकर बाल की खाल निकाली भी जा रही है.
लेकिन भारत में जो विस्वास स्वयं इंडियन मीडिया को नहीं है, वही यूरोपियन फाउंडेशन ऑफ़ साउथ एसीएन स्टडीज की रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया है, की भारत को घबराने की जरूरत नहीं है, इस आपदा ने भी हमारे लिए अवसरों का द्वार खोल दिया है.
हाल के कुछ वर्षो में भारत ने जिस रफ़्तार से सीमा वर्ती इलाको में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया है, उसके कारण चीन की नींद उडी हुई है, और वह हड़बड़ी में गड़बड़ी कर रहा है.
आप स्वयं देख लीजिये, साउथ चाइना सी हो या ईस्ट चाइना सी हो, ऑस्ट्रेलिया हो जापान हो या अमेरिका हो, हर जगह सबके साथ चीन ने पंगे ले रखे हैं.
हर मोर्चे पर लड़ाई को खोलकर सिकंदर नहीं जीत पाया, तो सी जिनपिंग कौन सी खेत की मूली है?
इसलिए दोकलाम विवाद हो या वर्तमान तवाव हो हमें सिर्फ मजबूती से खड़ा रहना है, चीन को पीछे हटना पड़ेगा.
जैसा की आप सभी कहते भी आ रहे हैं, इस दौरान भी भारत ने शतरंज की बिशात से नजर नहीं हटानी है, हमें अपनी लॉन्ग टर्म स्ट्रेटेजी पर काम को तेज करना है.
इसी बीच आपको लग रहा होगा, की चीन के तानाशाह पर ऐसी कौन सी चुड़ैल सवार है, की वह हर मोर्चे पर आक्रामक हो रहे हैं, असल में उनका खुद का कहना है, की इतिहास में बड़े बिनाश के बाद ही बड़े कदम उठाये जाते हैं.
इसलिए चीन जो कर रहा है, उसके पीछे उनकी साजिस है, तो चीन से बिना डरे हमने भी अपनी रणनीति पर आगे बढ़ना है.
चीन का तुस्टीकरण करते हुए, यदि हमने एक बार फिर अपनी रणनीति पर काम को धीमा कर दिया, तो इतिहास में हम अपनी बेवकूफी के लिए ही जाने जायेंगे.
इसी बैकग्राउंड में यूरेशियन टाइम्स के हवाले से खबर आ रही है, की जल्द इंडिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली ऑनलाइन समिट में भविस्य का निर्माण होने जा रहा है.
लम्बे समय से आप सभी को पता है, की भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच म्यूच्यूअल लोजिस्टिक्स शेयरिंग एग्रीमेंट हो सकता है, जिसके अंतर्गत दोनों देशो को एक दूसरे के नेवल बेस तक पहुंच हांसिल हो जाएगी.
इसी एग्रीमेंट के तहत ऑस्ट्रेलिया को अंडमान और निकोबार आइलैंड तक और भारत को ऑस्ट्रेलिया के कोको आइलैंड तक पहुंच मिल जाएगी,.
अंडमान निकोबार आइलैंड का महत्व तो हम सभी को अच्छे से पता है, इसी के कारण भारत मल्लका स्ट्रेट के मुँह पर बैठा हुआ है, और चीन के राजा को रात में नींद भी इसी लिए नहीं आती है, क्योकि की भारत अपने दोस्तों के साथ मिलकर कभी भी चीन का रास्ता रोक सकता है.
अब बात करते हैं, कोको आइलैंड की, सुदूर हिन्द महासागर में स्तिथ यह द्वीप समूह की स्ट्रेटेजिक इम्पोर्टेंस किसी से छुपी नहीं है.
यह आइलैंड इंडो पसिफ़िक की इम्पोर्टेन्ट सी लेन्स जैसे इण्डोनेसिअन स्ट्रेट ऑफ़ सुंडा, लोम्बोक और ओमबाई वेटर के सामने स्थित है.
यहाँ तक की बड़ी बड़ी बातें करने वाले अमेरिका के ढीले ढाले राष्ट्रपति ओबामा ने भी चीन का रास्ता रोकने के लिए कोको आइलैंड पर नजर गड़ाई थी. लेकिन उम्मीद के मुताबिक कुछ हुआ नहीं.
अब यदि ऑस्ट्रेलिया भारत को कोको आइलैंड तक पहुंच दे देता है, तो भारत या तो ऑस्ट्रेलियाई सुविधाओं का स्तेमाल करेगा, अथवा वह अपना स्वयं का मिलिट्री बेस भी बना सकता है.
एक्चुअल एग्रीमेंट क्या होता है, इसके लिए हमें भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्रियों के बीच बैठक का इंतजार करना होगा, लेकिन कोको आइलैंड पर इंडियन मिलिट्री बेस का बनना तय हो जाता है, तो इस बारे में सार्वजनिक घोसणा होगी, हमें ऐसी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
मुद्दे की बात यह है, की चीन के मन में डर पैदा हो न चाहिए, की कल तक भारत मालक्का स्ट्रेट के सामने बैठा था, अब भारत ने हिन्द महासागर में घुसने के चीन के अन्य रस्ते भी बंद कर दिए है.
वैसे भी आप सभी को पता है, की ऑस्ट्रेलिया भी चीन से बड़ा परेशान हो चूका है, ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खिलाफ WHO में आवाज़ क्या उठाई, तिल मिलाये चीन ने ऑस्ट्रलियन इम्पोर्ट के रास्ते में रुकावटें खड़ी कर दी.
इसलिए भारत को गले लगाने के अलावा ऑस्ट्रेलिया के पास और कोई विकल्प नहीं है. बात साफ़ है, यदि चीन नेपाल और पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है, तो भारत अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ हाथ से हाथ क्यों नहीं मिला सकता है??
दुर्भाग्य यह है, की हमारे देश में बैठे वामपंथी विद्वानों के सर पर आज भी गुटनिरपेक्षता का फितूर सवार है, उनका कहना है, की चीन के खिलाफ भारत ने किसी भी अलायन्स में शामिल नहीं होना चाहिए.
अब आप ही बताएं, की ये एक्सपर्ट भला भारत का चाहते हैं, या चीन का. इनके अनुसार अकेला भारत चीन से मार खाता रहे, लेकिन भारत ने चीन की खिलाफ चूं तक नहीं करनी चाहिए. किसी मित्र से मदद लेनी नहीं चाहिए.
इतिहास गवाह है, कई बार अलायन्स की शक्ति ने बड़े बड़े युद्धों को होने से पहले ही टाल दिया है, जबकि इसी फर्जी गुटनिर्पेक्ष्ता ने 1962 की लड़ाई हरवाई थी, इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाबजूद इन एक्सपर्ट लोगों की अकल ठिकाने पर आज तक नहीं आयी.
क्या चीन के खिलाफ भारत ने मित्र देशो के साथ हाथ नहीं मिलाना चाहिए, क्या ख्याल है आपका ??
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