The Great Indian Air force
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आप को सायद याद हो, वर्ष 2015 में भारत ने 1.1 बिलियन डॉलर की कीमत पर अमेरिका से 15 शिनूक हेलिकॉप्टर्स खरीदने का निर्णय लिया था.
मार्च महीने में देश भर में लॉक डाउन लगने के ठीक पहले अमेरिका ने 15 के 15 हेलिकॉप्टर्स की डिलीवरी पूरी कर दी.
और कल वह दिन आ ही गया, जब पहली बार इन हैवी लिफ्ट हेलिकॉप्टर्स को स्ट्रेटेजिक ईस्टर्न कमांड में ऑपरेशनल बना दिया गया.
अपर आसाम में तैनात होने वाले ये हेलिकॉप्टर्स भारतीय वायुसेना को ना केवल युद्ध लड़ने में बल्कि हुमेनिटरियन ऑपरेशन्स को पूरा करने की अद्भुत छमता प्रदान कर देंगे.
शिनूक हेलिकॉप्टर्स के पहले भारतीय वायुसेना रसियन Mi 17 हेलिकॉप्टर्स का इस्तेमाल किया करती थी.
जहाँ रसियन हेलिकॉप्टर्स केवल 4000 किलोग्राम तक वजन उठा सकते थे, अमेरिकन हेलिकॉप्टर्स 10 हज़ार किलो तक वेट लिफ्ट कर सकते हैं.
जहाँ रसियन हेलिकॉप्टर्स में केवल 24 यात्री बैठ सकते थे, वहीँ इस अमेरिकन हेलिकॉप्टर्स में 55 फुल्ली आर्म्ड soldiers बैठ सकते हैं.
हिमालय की आसमान छूती चोटियों के बीच की दरारों में यह हेलिकॉप्टर्स intervalley ट्रूप मूवमेंट को आसान कर देंगे.
युद्ध जब होगा तब होगा, लेकिन ऑपरेशनल होते ही इन शिनूक हेलिकॉप्टर्स ने सबसे पहले किया मानवता की सेवा का काम.
जी हाँ असम में तैनात हुए इन हेलिकॉप्टर्स ने सबसे पहले राहत सामग्री अरुणाचल प्रदेश में पहुंचाने का काम किया.
दो उड़ानों में इन हेलिकॉप्टर्स ने 83 क्विंटलजरूरी सामग्री चांगलांग डिस्ट्रिक्ट के दूर दर्ज के विजयनगर तक पहुंचाई.
सबसे पहले तो इंडियन एयर फाॅर्स को धन्यवाद् की उन्होंने इस अच्छे काम से चिनूक हेलीकाप्टर के मिशन की शुरुआत करवाई.
लेकिन अरुणाचल के आकाश में जब ये हेलीकाप्टर उड़ेंगे, को किसके पांव काँपेगे, यह हम सभी को अच्छे से पता है.
अभी जबकि लदाख और सिक्किम में भारत और चीन के बीच तनाव सातवे आसमान तक पहुंच गया है, यह देखने में बेहद अच्छा लगता है, की भारत सर्कार ने बिना हिचकिचाहट के अपने स्ट्रेटेजिक प्रोजेक्ट्स पर काम चालू कर रहा है.
चीन को चाहे जीतनी चिनमिनी उठती रहे, स्वाभिमानी और संप्रभु भारत अपनी राह पर आगे बढ़ता रहेगा.
वैसे भी भारत सर्कार ने साफ कर दिया है, की चीन को जो करना हो कर ले, सीमावर्ती इलाको में भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट किसी भी कीमत पर नहीं रुकेगा.
अब आप में से कुछ लोग कह सकते हैं, की यह तो नार्मल मिलिट्री ऑपरेशन है, हम इसे फालतू में हवा दे रहे हैं. लेकिन आप हमें यह बताएं, लद्दाक स्टैंड ऑफ के कारण यदि भारत ने शिनूक हेलिकॉप्टर्स को तैनात करने के प्रोजेक्ट में डिले कर दिया होता, तो आप किसे दोष देते??
इसलिए जब आप में से कुछ लोग हर बुरी घटना के लिए दोष मोदी साहेब को दे सकते हैं, तो हर अच्छे काम के लिए श्रेय मोदी जी को क्यों नहीं दिया जाना चाहिए.
जहाँ तक हम कह सकते हैं, शिनूक हेलीकाप्टर को तैनात करके मोदी सर्कार ने बहुत सही काम किया, अभी तक अरुणाचल की जमीं पर सड़के और पुलों के बनने से चीन को बेचैनी होती थी, अब जब चाइनीस सैनिक शिनूक हेलीकाप्टर को उड़ता देखेंगे, तो उनको रातों में नींद नहीं आएगी.
अब आप में से कुछ लोग कह सकते हैं, की हम चीन को कम करके आंक रहे हैं, लेकिन हमारा मानना साफ़ है, चीन एक कागजी शेर है, मीडिया के सहारे उसने अपनी इमेज बड़ी चमकाई है.
हम सभी ने देखा है, चीन को सबसे तेज रफ़्तार की आर्थिक विकास दर यानि की GDP ग्रोथ रेट के लिए जाना जाता है, लेकिन अभी प्रेजिडेंट ट्रम्प को मात्र तीन साल ही हुए हैं, कुछ ही दिनों पहले इस साल के लिए चीन अपनी GDP ग्रोथ रेट का टारगेट तक नहीं दे पाया.
इसलिए दुनिया पर राज करने का सपना देखने वाला चीन पहले इस साल के लिए GDP ग्रोथ रेट का अनुमान लगा ले, तो अच्छा होगा.
जहाँ तक प्रेजिडेंट ट्रम्प के स्टेटमेंट का सवाल है, हमारे यहाँ के एक्सपर्ट्स और मीडिया अपने आप को हमेसा से ट्रम्प से भी होसियार समझते आयी है.
इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, की ट्रम्प ने भारत चीन के विवाद में टांग क्या अढ़ाई, चीन को दर्द होना तो लाजमी था, हमारे एक्सपर्ट्स के पेट में जलन पहले उठने लगी.
हमारा तो साफ़ तौर पर मानना है, की प्रेजिडेंट ट्रम्प जो भी कह रहे हैं अथवा कर रहे हैं, वह भारत के लिए है ही नहीं, उनका टारगेट सिर्फ चीन है. और आज आप सभी ने तिलमिलाए चीन को कहते सुना होगा, की वह भारत के साथ मिलकर इस विवाद को सुलझाना पसंद करेगा.
इस खेल में अमेरिका भारत की तरफ से indirectly खेल रहा है, तो अमेरिका को गलियां देने से अच्छा होगा, की हम चीन पर फोकस करें.
आप में से कुछ लोग हमेसा कहते हैं, की अमेरिका विस्वस्नीय नहीं है, स्वार्थी है, चलिए आपकी बात हम मान लेते हैं, लेकिन आप क्या ऐसा को देश हमें बताएँगे, जो स्वार्थी नहीं है.
और यदि अमेरिका हमारा दोस्त नहीं है, तो क्या चीन हमारा दोस्त कभी बन सकता है??
इतिहास गवाह है, स्वर्गवास के एक महीने पहले सरदार पटेल ने पत्र लिखकर प्रधान मंत्री नेहरू को तोते की तरह पढ़ाया था, की चीन हमारा दोस्त कभी नहीं हो सकता है.
1950 में नेहरू ने पटेल साहब के लेटर को आँखें खोलकर नहीं पड़ा, लेकिन आश्चर्य यह है, की वर्ष 1965 से 55 साल गुजर जाने के बाद आज भी हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो चीन के साथ दोस्ताने का रोमांटिक सपना देखते रहते हैं.
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