Well Done Modi Ji!!!
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Reference
इस वीडियो के स्पांसर छत्रम पुट्टप्पा जी को धन्यवाद्, आपके सहयोग से हम यह वीडियो बनाने में सफल हुए हैं.
आप सभी को याद होगा, अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है, भारतीय रक्षा मंत्री ने लिपुलेह्ख पास से होकर जाने वाली 80 किलोमीटर लम्बी नयी रोड का उद्घाटन किया था.
जब इस रोड का निर्माण हो रहा था , तो पता नहीं नेपाल ने क्या फूंक रखा था, लेकिन रोड चालू होते ही उसकी नींद टूट गयी, और उसने विरोध करना चालू कर दिया.
आप सभी को पहले से पता था, और बाद में इंडियन आर्मी चीफ ने भी कन्फर्म कर दिया था, की भारत के खिलाफ जहर उगलने के लिए नेपाल में हवा चीन ने भरी है.
अब एक और कदम आगे बढ़ाते हुए, नेपाल की कैबिनेट ने नया मानचित्र approve कर दिया है, जिसमे लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है.
आज भारत को आँखें दिखाने वाला यह वही नेपाल है, जो पिछले रविवार को कोरोना वायरस के खिलाफ भारत के द्वारा दी गयी सहायता के लिए थैंक यू बोल रहा था.
एनीवे हमें एहशान फरामोश नेपाली कम्युनिस्ट सर्कार से वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है.
अब जब नेपाल नए मानचित्र ही छाप रहा है, तो बातचीत की गुंजाईश रह कहाँ जाती है, नेपाली कम्युनिस्ट सर्कार को जो करना है, वह कर ले.
वैसे भी जब नेपाली वामपंथी सर्कार कम्युनिस्ट चीन की धुन पर नाच रही है, तो बात करना है, तो चीन से क्यों ना की जाये??
लेकिन यहाँ पर बड़ा सवाल यह है, की जब लोहा गरम है, तो भारत सर्कार को क्या करना चाहिए, ठंडा करने के लिए उसपर पानी डालना चाहिए, अथवा हतोड़ा मारना चाहिए??
लगता है, मोदी सर्कार को आपके दिल की बात पता है, इसलिए तो उन्होंने बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन की शक्ति और बड़ा दी है. चीन और उसके पाकिस्तान नेपाल जैसे चिरकुट जितना चिल्लायेंगे, भारत उतनी ही तेज गति से सीमा छेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगा.
वह पुराने दिन लद गए हैं, जब चीन रोड बनाता था, और हम रोते रहते थे, लेकिन अब हम रोड बनाते हैं, और चीन चिल्लाता है.
आप सभी को पता है, चीन के साथ दुनिया के सबसे लम्बे बॉर्डर पर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माड करने का पूरा जिम्मा बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन पर था. और पिछले छह सालों में BRO ने हमें उस पर गौरव करने का अवसर कई बार दिया है.
लेकिन जमीनी सच्चाई यही है, की जो काम पिछले 70 सालों में नहीं हुआ है, उसे कुछ ही सालों में पूरा करना है, इसलिए BRO की कैपेसिटी को बढ़ाना समय की मांग है.
इसलिए मोदी सर्कार ने बीआरओ को यह पावर दे दी है, की वह कंस्ट्रक्शन का काम आउटसोर्स कर सकती है. बात साफ़ है, यदि BRO के पास कैपेसिटी की कमी है, तो इंतजार करते रहने से अच्छा है, की उस इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कार्य कॉन्ट्रैक्ट पर प्राइवेट कंपनी को दे दिया जाये.
100 करोड़ से अधिक कीमत के इन प्रोजेक्ट पर कंस्ट्रक्शन Engineering Procurement कॉन्ट्रैक्ट के अंतर्गत किया जायेगा.
इंडियन प्राइवेट सेक्टर जब पुरे देश में सड़कें बना सकता है, तो सीमा छेत्रों में क्यों नहीं. हाँ यह बात जरूरी है, की सिक्योरिटी के लिहाज से सभी ऐतिहात को बरता जाना चाहिए.
साथ ही साथ मोदी सर्कार ने बीआरओ को पावर दे दी है, की वह अपने लिए आधुनिक कंस्ट्रक्शन प्लांट, इक्विपमेंट और मशीनरी खरीद सकता है. और इसके लिए बीआरओ को बातें नहीं दी गयी है, बल्कि उस के बजट की साइज को 7.5 करोड़ से बढ़ाकर 100 करोड़ कर दिया गया है.
बात साफ़ है, पुराने इक्विपमेंट की मदद से बहुत हो गया धीमे धीमे लौ क्वालिटी काम, अब होगा रफ़्तार से हाई क्वालिटी काम.
इसके अलावा जमीं का अधिग्रहण, फारेस्ट और एनवायर्नमेंटल क्लीयरेंस को डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट का हिस्सा बना दिया गया है. अब प्रोजेक्ट रिपोर्ट को अप्रूवल तभी दिया जायेगा, जब 90 परसेंट अप्रूवल प्राप्त हो चुके होंगे.
बात साफ़ है, प्रोजेक्ट रिपोर्ट के बन जाने के बाद फालतू में समय और ऊर्जा की बर्बादी अब बर्दास्त नहीं होगी.
जिस तरह मोदी सर्कार ने शेकटकर समिति की इन तीन रिकमेन्डेशन को जमीं पर उतारा है, वह प्रशंसनीय है.
उम्मीद है, अब सीमा वर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों और तैनात सैन्य वलों को वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा मिलेगी.
लेकिन हमें यह याद रखना होगा, की आखिर यह कैसे हुआ, की बॉर्डर एरियाज में हम सड़कों का निर्माण आज कर रहे है,
बात यह है, 1962 में चीन से हार जाने के बाद, तब की भारत सरकारों ने दिमाग लगाया, की यदि हमने सीमा वर्ती इलाकों में सड़कें और पुल बनाये, तो उनका इस्तेमाल करके चीन हम पर ही हमला कर देगा.
अब आप ही बताएं, क्या आपने कभी इससे भी अधिक नकारात्मक विचार सुना है. तब की पड़ी लिखी सरकारों से छोटा सा सवाल यह है, की यदि बॉर्डर पर हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होता, तो क्या चीन 1962 में भारत पर हमला करने की हिम्मत जुटा पाता??
हथियार गोला बारूद से भी अधिक सड़कें और पुल युद्ध और हमले को रोकते है, दुनिया के इतिहास ने इस सत्य को कई बार सिद्ध किया है.
एनीवे गड़े मुर्दे उखाड़ने में हमारी कोई रूचि नहीं है, लेकिन जो लोग यह बात करते हैं, की मोदी सर्कार ने 6 सालों कुछ नहीं किया, उनको 70 सालों का आइना दिखाना जरूरी होता है .
एक बड़ा सवाल यह भी है, की 1962 में एक बार चीन से हार जाने के बाद भी हम क्यों चीन से बचते फिरते हैं, दूर जाने की जरूरत नहीं है, पाकिस्तान को ही देख लीजिये, चार युद्ध हो चुके हैं, पाकिस्तान one by two हो चूका है, लेकिन पाकिस्तान तो हमारा तुस्टीकरण कभी नहीं करता है. तो भला हम चीन का तुस्टीकरण क्यों करें??
जहाँ तक अटेंशन सीकर पाकिस्तान का सवाल है, यदि हम उसे इग्नोर करके चीन पर फोकस करने लगें, तो आप ही बताएं, पाकिस्तान के लिए इससे बड़ी सजा क्या होगी?
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