Well Done Modi ji
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Reference
इस वीडियो के स्पांसर अविनेस जी को धन्यवाद्, आपके सहयोग से हम यह वीडियो बनाने में सफल हुए हैं.
आज जबकि भारत और कपटी चीन के बीच तनाव बढ़ता चला जा रहा है, अक्साई चिन में चीन ने भारतीय भूमि पर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास आराम से कर लिया, लेकिन जब भारत अपनी जमीं पर सड़कें और पुल बना रहा है, तब चाइनीस कम्युनिस्ट पार्टी को बड़ी पीड़ा होती है.
डरपोक चीन को यही भय सताता है, की भारत अपने इंफ्रास्ट्रक्टर का उपयोग चीन पर हमला करने के लिए करेगा, तो एक छोटा सा सवाल है, चीन ने क्या LAC पर सड़कें और पुल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनाये थे??
बात साफ़ है, 70 सालों तक भारत को डरा धमकाकर जिस इंफ्रास्ट्रक्टर का विकास चीन ने नहीं होने दिया, अब जब वही सब कुछ हो रहा है, तो चीन कैसे चुपचाप बैठ सकता है. वैसे भी गर्मी में मौसम में ही पहाड़ी इलाकों में कंस्ट्रक्शन के काम में तेजी आती है, इसलिए लद्दाख स्टेनडॉफ अभी क्यों चल रहा है, आपको समझ आ गया होगा.
19 मई को हमने वीडियो पब्लिश किया था, जिसमे हमने डिसकस किया था, की किस तरह भारत सर्कार ने बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन को लेकर क्रांतिकारी बदलाव किये है.
अब काम में तेजी लाने के लिए बीआरओ कंस्ट्रक्शन वर्क को Indian प्राइवेट कंपनियों को आउटसोर्स कर सकता है, साथ ही BRO अपने लिए अब आधुनिक कंस्ट्रक्शन प्लांट, इक्विपमेंट और मशीनरी भी खरीद सकता है.
तब बिलकुल साफ़ हो गया था, की भले ही सीमा पर चीन की तरफ से बढ़ती तैनाती को सम्हालने के लिए इंडियन ट्रुप्स का डिप्लॉयमेंट बढ़ाया जा रहा है, लेकिन सीमा के अंदर इंफ्रास्ट्रक्चर कंस्ट्रक्शन में किसी भी तरह की ढिलाई नहीं आने दी जाएगी.
दशकों से चली आ रही चीन का तुस्टीकरण की नीति को ख़तम करते हुए भारत सर्कार ने अब 12 हज़ार वर्कर्स को लद्दाक में ले जाने का निर्णय लिया है. और इसके लिए 11 स्पेशल ट्रेंस चलाई जाने वाली हैं.
इन ट्रेंस से झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स जम्मू और चंडीगढ़ तक आएंगे, और फिर उन्हें सड़क के जरिये धीरे धीरे चाइनीस बॉर्डर के पास ले जाया जायेगा, ताकि सड़क निर्माण का काम चालू हो सके.
आधुनिक और हलके टैंक और आर्टिलरी गन्स के साथ चालबाज़ चीन ने LAC पर 5 हज़ार सैनिक तैनात किये, ताकि भारत घबड़ाकर इंफ्रास्ट्रक्चर कंस्ट्रक्शन को रोक दे.
लेकिन यहाँ तो चीन का दाव ही उल्टा पड़ गया, रोकने की बात तो छोड़िये, अब तो सडकों और पुलों का निर्माड और तेज रफ़्तार से होगा.
चीन को यह बात अच्छे से समझ आ जानी चाहिए, की ये भारत है फिलीपीन्स नहीं, और ये लद्दाख है, साउथ चाइना सी नहीं. यहाँ चीन की मनमानी नहीं चलेगी.
चाइनीस ड्रैगन भले ही दुनिया पर आग बरसाता रहे, उसे भीगी बिल्ली बनाएगा भारत ही.
बीआरओ और मोदी सर्कार को धन्यवाद् की उन्होंने चीन की गीदड़ भभकियों से डरने के बजाये, अपने काम को जारी रखा है.
वैसे भी इस बात की सम्भावना कम है, की यह लद्दाक स्टेनडॉफ इतनी जल्दी सुलझ पायेगा, चीन में बड़ी गर्मी है, तभी तो LAC के पास उसने अपने तम्बू गाड़े हैं, नवंबर की सर्दी आने पर हम भी देखेंगे, की कौन रुक पता है, उस ऊंचाई पर.
आगे बढ़ते हुए, जैसा की आप सभी को जानकारी है, एक और जहाँ UK ने 5G के छेत्र में मिलकर काम करने के लिए लोकतान्त्रिक देशो का एक नया समूह D10 बनाने का प्रस्ताव पेश किया है, वही US ने ग्लोबल ट्रेड और पॉलिटिक्स के छेत्र में डेमोक्रेटिक कन्ट्रीज के बीच समन्वय को बढ़ाने के लिए G7 को G10 के रूप में विस्तार देने का निर्णय लिया है.
चाहे UK प्राइम मिनिस्टर का आईडिया हो अथवा US प्रेजिडेंट का निर्णय हो, दोनों में ही एक भारत कॉमन है.
जैसा की आज सुबह हमने पोल्ल करवाया था, आप में से 92 परसेंट लोगों का साफ़ तौर पर कहना था, की भारत ने इन नए लोकतान्त्रिक देशो के समूहों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए.
आज जबकि कम्युनिस्ट कोरोना वायरस के रूप में पूरी दुनिया पर संकट के बादल छाए हुए हैं, तो यह जरूरी है, की लोकतान्त्रिक देश एक दूसरे का सहयोग करे.
हमें उम्मीद है, की भारत सर्कार बिना किसी झिझक के इन नए समूहों में ना सिर्फ भाग लेगी, बल्कि नेतृत्व भूमिका भी निभाएगी.
जहाँ तक की गुटनिर्पेक्ष्ता की घिसे पिटे आईडिया का सवाल है, तो जिस आईडिया ने भूतकाल में हमारा भला नहीं किया, वह भविस्य में हमारा क्यों उद्धार करेगा?
पुराने उपायों को अपनाकर यदि हम नए परिणामो की अपेक्षा करेंगे, तो हमारे हाथ निराशा ही लगेगी.
हाँ एक बात जरूर है, यदि इस समय भी भारत ने गुटनिरपेक्षता की माला जपि, तो भारत चीन का काम निश्चित रूप से आसान कर देगा.
जहाँ तक कई लोगों का कहना है, की अमेरिका एक स्वार्थी देश है, और भारत को उसके जाल में नहीं फसना चाहिए, तो इन लोगों से एक छोटा सा सवाल है, G10 और D10 जैसे समूहों में क्या अकेला अमेरिका ही है??
जब भारत चीन की लीडरशिप वाले SCO में शामिल हुआ, तो इन वामपंथी विद्वानों ने खूब तालियां पीटी, अब जब भारत G10 में शामिल होने जा रहा है, तो फिर नेहरुवियन गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को खतरा क्यों पैदा हो जाता है.
डेमोक्रेटिक भारत कम्युनिस्ट चीन का पिछलग्गू बना रहे, तो सब ठीक है, लेकिन यदि भारत डेमोक्रैटिक अमेरिका का दोस्त बनने की कोसिस करे, तो यह भारत की सम्प्रभुता को खतरा क्यों माना जाता है?
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