Very Super News - Galwan Bridge Construction Complete


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जैसा की आप सभी ने कई बार नोटिस किया है, की मैदाने जंग में जीती हुई लड़ाई को हम अख़बारों के पन्नों पर हार जाते हैं.

ऐसी ही गलवान जीत को भारतीय हार के रूप में  दिखाने का आज हर संभव प्रयास किया जा रहा है.

अब आप कहेंगे, की गलवान फेस ऑफ को हम भारतीय जीत बताने की गलती क्यों कर रहे हैं??

इस सवाल का जवाब देने के पहले हम आपसे एक छोटा सा सवाल पूछना चाहते हैं, गुंडे मवाली चीन ने पुरे के पुरे साउथ चाइना सी को हड़प लिया.  क्या आज तक आपने कभी दक्षिण चीन सागर में faceoff की कोई खबर कभी सुनी है??

चीन ने समुद्र को तालाव बना दिया, क्या किसी ने उसे रोकने की कभी कोसिस की??

तो गलवान वैली में जब बहादुर भारतीय सेना ने चीन का विरोध किया, तभी तो दोनों देशो के बीच खुनी झड़प हुई , तो हम कैसे कह सकते हैं, की भारतीय सेना सो रही थी.

जो लोग AC कमरों में बैठकर भारतीय सेना की स्ट्रेटेजी पर सवालिया निशान लगा रहे हैं, वह यह क्यों नहीं पूछते, की आज तक चीन गलवान faceoff में गिरी अपनी लाशों की गिनती को आजतक पूरा क्यों नहीं कर पाया है??

चाहे आप माने या ना माने, चीन को समझ आ चूका है, की लद्दाक साउथ चाइना सी नहीं है. की चीन जो चाहे वह करता रहे, और उसे कोई रोकेगा टोकेगा नहीं.

अभी भी आप सवाल कर सकते हैं, की गलवान faceoff  हुआ, तो उसे भारत की जीत कैसे कहा जा सकता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक्सक्लूसिव खबर के मुताबिक जहाँ पर श्योक और गलवान रिवर मिलती हैं, वहां पर नदी को पार करने के लिए फुट ब्रिज था, जिस पर से होकर सिर्फ सैनिक ही गुजर सकते थे.

लेकिन जब इंडियन आर्मी और बॉर्डर रोड्स organization ने इस Y जन्शन को पार करने के लिए स्थायी  ब्रिज का निर्माण कार्य चालू किया, तभी बेजिंग में खतरे की घंटी बजने लगी.

आपको ध्यान हो, यही Y जन्शन ब्रिज नदी पार कर इंडियन आर्मी ITBP के बेस कैंप को गलवान वैली तक पहुंचने का रास्ता देता है.

यहाँ तक की 15 जून को जिस पेट्रोलिंग पॉइंट पर झड़प हुई, वह इस Y जन्शन ब्रिज से महज 2 किलोमीटर दूर है.

आपको बात समझ आ गयी होगी, यह नया ब्रिज भारतीय सेना की तागत कितनी अधिक बढ़ाने वाला है. पहले जिस ब्रिज से केवल सैनिक गुजर सकते थे, अब नए पुल के ऊपर से मिल्टरी के वाहन भी निकल सकते हैं.

यह प्रोजेक्ट कितना क्रिटिकल था, यह आपको इसी बात से समझ आ जायेगा, की 15 जून के विवाद के दौरान भी इस पर काम को नहीं रोका गया, और परिणाम हमारे सामने है, कल इस ब्रिज का निर्माण कार्य पूरा हो गया.

जिस काम को रुकवाने के लिए चीन ने ऐड़ी छोटी का जोर लगा दिया, वह काम तो पूरा हो गया ना, क्या आप इसे भारत की जीत के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे??

जो बड़े बड़े विद्वान लोग अभी भी इंडियन आर्मी की छमता और साहस पर प्रश्न वाचक सवाल लगाते हैं, उनसे एक छोटा सा सवाल यह है, की आजादी के 70 सालों के बाद हमें क्यों श्योक गलवान रिवर जंक्शन पर मजबूत पुल बनाने की जरूरत पड़ रही है??

इस ब्रिज को बनाने के लिए तक भी पड़ी लिखी सरकारों को किस चीज़ का इंतजार था?

कास यह पुल समय पर बना लिया गया होता, तो गलवान में भारतीय सेना को रोक पाने की चीन कभी हिम्मत तक नहीं कर पाता.

हम सभी का आम अनुभव बताता है, की आपका बिरोध तभी होता है, जब आप आगे बढ़ते हैं. पहले की सरकारों का ध्यान तो चाइनीस ड्रैगन के साथ इंडियन एलीफैंट को नचाने पर था, तो भला चीन को भारत से दो हाथ करने की जरूरत ही क्या थी.

जिनको विरोध करना है करते रहें. लेकिन श्योक गलवान रिवर जंक्शन पर बना यह पुल सिद्ध करता है, की गलवान में वीरगति प्राप्त हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया.

अंत में इस पुल का युद्ध स्तर पर हर खतरे के बाबजूद निर्माड पूरा करने के लिए हम तो  इंडियन आर्मी के फार्मेशन egineers और बॉर्डर रोड्स organization को बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद् देते हैं.

यह दुर्भाग्य ही है, की चीन ने गलवान वैली में टेंट गाड़ लिए, इसके लिए मोदी साहेब को दोष तो दिया जाता है, लेकिन स्योक गलवान रिवर जंक्शन पर ब्रिज बनाने के लिए श्रेय देना तो छोड़िये, इस असाधारण उपलब्धि को ऐसे नजर अंदाज़ कर दिया जाता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

आखिर कब तक हम चीन की खुरापात को बड़ा चढ़ा कर, अपनी करामात को कम करते रहेंगे.

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