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जैसा की कल हमने चर्चा की थी, की रूस इंडिया और चीन के बीच 22 जून को होने वाली मीटिंग पोस्ट पोन हो गयी है. 

लेकिन वीडियो पब्लिश करने के बाद रूस के विदेश मंत्री की तरफ से स्टेटमेंट आया, जिसमे उन्होंने कहा, की चूँकि इस त्रि पक्षीय वार्ता में द्वी पक्षीय मुद्दों पर बातचीत नहीं होती है, इसलिए तीनो देशो के बीच अगले सप्ताह मीटिंग तय कार्यक्रम के अनुसार होगी.

अब यह भारत पर निर्भर करता है, की रूस की बात मानकर हम इस मीटिंग में भाग लेते हैं या नहीं.  हमारा तो अभी भी यही मानना है, जब तक चीन गलवान वैली को खाली नहीं करता है, तब तक भारत ने चीन के साथ सम्बन्धो को सामान्य किसी भी हालत में नहीं होने देना चाहिए.

आज यदि गलवान वैली में हमने चीन के अतिक्रमण को पचा लिया, तो एक दिन लेह पर चाइनीस कब्जे की बुरी खबर सुनने के लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए.

जैसा की आप सभी को समझ में आता है, हिन्द महासागर हो या लद्दाक हो, भारत के खिलाफ चीन सौ सालों की साजिश पर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है, इसलिए यदि हमने चीन को आज नहीं रोका, तो हम फिर चीन को सायद ही कभी रोक पाएं.

अपने एक वीडियो में हमने चर्चा की थी, की गलवान फेस off के जवाब में भारत ने दिल्ली मेरठ रेलवे प्रोजेक्ट का कॉन्ट्रैक्ट चीन की कंपनी को किसी भी हालत में नहीं देना चाहिए.

अब हमें यह बताया जा रहा है, की इस प्रोजेक्ट को Asian डेवलपमेंट बैंक ने लोन दिया है, इसलिए कर्ज की शर्तों के अनुसार बिड दाखिल करने वाली कंपनियों के बीच भारत किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं कर सकता है.

यह बात हमारी समझ के बिलकुल परे हैं, एक ओर चीन पूरी दुनिया में हर नियम और समझौते की धज्जीयां उडाता घूम रहा है, तो दूसरी और भारत को इन नियमो कानूनों का वास्ता दिया जाता है.

आप ही बताएं, आखिर कब तक हम इन नियमो के मकड़ जाल में फंसते रहेंगे?? क्या ADB से लोन लेने के लिए भारत ने अपनी सम्प्रभुता को गिरवी रखा था?

इसी बीच कल इस तरह की खबरें आयी थी, की भारत सर्कार ने 4G अपग्रेड प्रोजेक्ट में चाइनीस कंपनियों को शामिल ना करने का आदेश दिया है.

जिसके जवाब में भारत के सेलुलर ऑपरेटर्स के संघटन ने भारत सर्कार को ज्ञान दिया है, की उसने राजनीति ओर व्यापार को अलग अलग रखना चाहिए??

इन बड़े बड़े धन्ना सेठों से हमारा एक छोटा सा सवाल है, की गलवान वैली में सहीद हुए सैनिक क्या राजनीती ओर जिंदगी को अलग अलग करके नहीं देख सकते थे?? क्या जरूरत थी, उनको की वह चीन के अतिक्रमण का विरोध करें?? क्या उन्हें अपनी सैलरी ओर फॅमिली प्यारी नहीं थी??

चीन ने गलवान वैली में इसी लिए अटैक किया था, क्योकि उसे अपने आप से ज्यादा भारत के इन अमीरों ओर विद्वानों पर भरोसा था.

एनीवे इसी दौरान एक अच्छी खबर आयी, इंडियन रेलवे की तरह से.

जी हाँ 417 किलोमीटर लम्बे ओर 471 करोड़ के रेलवे प्रोजेक्ट से चाइनीस कंपनी को धक्के मारकर बहार निकाल दिया गया.

चीन की इस कंपनी को यह प्रोजेक्ट 2016 में मिला था, लेकिन पिछले 4 सालों में केवल 20 प्रतिशत काम ही पूरा किया गया,  ओर तो ओर ना तो चीन की कंपनी ने टेक्निकल डॉक्यूमेंट मुहैया करवाए, ओर ना ही वह साइट पर काम करने के लिए कुशल engineers ओर कामगारों की व्यवस्था करवा पाया.

इंडियन रेलवे ने देर से ही सही लेकिन दुरुस्त कदम उठाते हुए यह निर्णय लिया, लेकिन बड़ा सवाल यह है, की 4 सालों के नुकसान की भरपाई कौन करेगा? 

सबसे कम कीमत के चक्कर में चाइनीस कंपनियों को प्रोजेक्ट देने का समर्थन करने वालों को क्या इस प्रोजेक्ट की असफलता से कोई सीख नहीं मिलती है??

पिछले बीस सालों में चीन ने अपनी यह फ़र्ज़ी इमेज बहुत चमकाई है, की वह सबसे जल्दी सबसे बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने की अद्भुत छमता रखता है. अब आप स्वयं देख लीजिये, चाइनीस प्रोजेक्ट Execution Capability का सच, जब की सारे क्लीयरेंस मौजूद थे, फिर भी फिसड्डी चाइनीस कंपनी समय पर काम पूरा नहीं कर पायी.

ठीक इसी प्रकार बिना कोई युद्ध जीते, चीन ने शक्तिशाली चाइनीस ड्रैगन की फ़र्ज़ी इमेज खड़ी कर ली, आप ही बताएं, इस जूठे तिलिश्म को क्या भारत के अलावा कोई ओर तोड़ सकता है?

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