Good News - India to provide Huge Subsidy for Global Export of API



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References - 

https://www.youtube.com/watch?v=vfe6u4s7eF4 

https://www.wionews.com/india-news/madras-high-court-raises-concern-over-indias-over-dependence-on-chinese-pharma-ingredients-334145

https://www.business-standard.com/article/economy-policy/govt-invites-latam-caribbean-nations-to-invest-in-india-s-pharma-sector-120101401470_1.html

https://www.expresspharma.in/expert-opinions/pli-scheme-guidelines-evoke-mix-reviews-from-industry/

https://www.cnbctv18.com/healthcare/pharma-pli-scheme-29-companies-sign-up-to-take-benefits-more-to-apply-soon-7130981.htm


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एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट API दवाई का वह पार्ट होता है, जिसके कारण दवाई शरीर पर अपना असर दिखाती है. बेहद सरल सब्दो में दर्द से राहत दिलाने वाला एक विशेष एपीआई होता है, जिसके बल पर कई प्रकार की पैन किलर टेबलेट काम करती है.




भले ही अपने आपको फार्मेसी ऑफ़ the वर्ल्ड बताने में भारत गर्व महसूस करता हो. लेकिन जमीनी सच्चाई हम सभी को पता है, भले ही दवाओं को हम एक्सपोर्ट करते हों, लेकिन उनकी API हम मुख्य रूप से चीन से इम्पोर्ट करते हैं.




इस महीने की शुरुआत में जब मद्रास हाई कोर्ट फार्मा कंपनी से रिलेटेड केस की सुनवाई कर रहा था, तो हाई कोर्ट ने सवाल किया, की एपीआई के मामले में 99.7 प्रतिशत आत्मनिर्भर भारत कैसे अपनी एपीआई की 99% सप्लाई को पूरा करने के लिए चीन पर ओवर डिपेंडेंट हो गया?




हालाँकि इस सवाल का जवाब बहुत काम्प्लेक्स हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह था, की भारत में बनने वाली एपीआई की तुलना में चीन ने वही same to same API को  25% कम कीमत पर बाजार में उतार दिया.




परिणाम यह हुआ, भारत में API का उत्पादन करना पड़ गया महगा, और इंडियन फार्मा कंपनियों को अपनी API फैक्ट्री पर ताला डालने को मजबूर होना पड़ा. परिणाम स्वरुप एपीआई का प्रोडक्शन करने वाला भारत API का नेट इम्पोर्टर बन गया.




आज कल जो विद्वान लोग यह पूछते हैं, की भारत में रोजगार के अवसर कैसे ख़तम हो गए, क्या वह यह जवाब देंगे, की कैसे भारत की फलती फूलती API इंडस्ट्री चाइनीस अकाल का शिकार हो गयी.




वैसे हमें अच्छे से याद है, भारत सर्कार तो इस साल ही एपीआई की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी स्कीम लेकर आयी है, आप सभी तो काफी लम्बे समय से इस बात को हाईलाइट कर रहे थे, की आखिर क्यों हम अपनी एपीआई की जरूरत को पूरा करने के लिए अपने दुश्मन नंबर १ चीन पर निर्भर हो.




भारत की हालत तो ऐसी थी, की हमने अपने जानी दुश्मन को ही अपना डॉक्टर बना लिया. 




घरेलु एपीआई के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस स्कीम के तहत अगले पांच सालो में सब्सिडी के रूप में कंपनियों को 6 हज़ार करोड़ रुपये दिए जाने हैं.



इस स्कीम की प्रारंभिक सफलता का अंदाज़ा सिर्फ इस बात से ही लगाया जा सकता है, की जुलाई महीने में लांच हुई PLI स्कीम का लाभ उठाने के लिए इस महीने तक 29 कंपनियों ने एप्लीकेशन दाखिल करा दी हैं.




इस स्कीम में दिक्कत यह थी, की यह सब्सिडी सिर्फ उसी API को मिलना थी, जिसका उपयोग घरेलु स्तर पर किया जाना था. 




ज़ी बिज़नेस की रिपोर्ट के अनुसार इस एपीआई सब्सिडी स्कीम को और आकर्षक बनाने के लिए भारत सर्कार ने अब एक्सपोर्ट होने वाली एपीआई को भी सब्सिडी देने का मन बना लिया है, और जल्द ही इस बारे में फाइनल निर्णय सार्वजनिक कर दिया जायेगा.




पॉइंट सिंपल है, जब चाइनीस सर्कार के बल पर चाइनीस कंपनियां भारत की तुलना में 25 फीसदी डिस्काउंट पर एपीआई बेच सकती है, तो भारत की कंपनियों को क्यों सरकारी सब्सिडी का लाभ नहीं मिलना चाहिए.




लेकिन हमारे ध्यान में यह बात है, की जैसे ही भारत में बड़े पैमाने पर एपीआई का प्रोडक्शन चालू होगा, कपटी चीन अपनी API के दाम और गिरा सकता है, ताकि भारत की पनपती API इंडस्ट्री ग्लोबल मार्किट में जड़ें ही ना जमा पाए.




इसलिए API सब्सिडी स्कीम के बाबजूद भी मोदी सर्कार को चौककना रहना होगा. और स्कीम में समय के अनुसार सुधार भी करना पड़ेगा .




यहाँ पर कहना जरूरी है, की भले ही इंडियन एपीआई इंडस्ट्री को सरकारी सपोर्ट यानि की हम सभी टैक्स पयेर्स के पैसे की जरूरत है, लेकिन ग्लोबल कम्पटीशन को ध्यान में रखते हुए उन्हें भी अपने स्तर पर हाई क्वालिटी एपीआई प्रोडक्शन कम कीमत पर करने की हर संभव कोसिस करनी चाहिए.




क्योकि सरकारी subsidy सपोर्ट शुरुआत में हेल्प कर सकता है, लेकिन लम्बे समय तक ग्लोबल मार्किट में टिके रहने के लिए हमें चीन को उसी के खेल में पछाड़ना होगा

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