Big Victory of Modiji- Nepal Awards Hydropower Project to India



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India's Satluj Jal Vidyut Nigam Bags 679 MW Hydropower Project In Nepal

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References -

https://en.wikipedia.org/wiki/Arun_III

https://www.blogger.com/blog/post/edit/2528969700990693050/1876744183537086499

https://www.aninews.in/news/world/asia/nepal-businessmen-in-rasuwa-protest-against-chinas-undeclared-blockade-of-cross-border-trade20210130135543/

https://thehimalayantimes.com/business/power-china-to-build-679mw-lower-arun-hydel/

https://www.jagranjosh.com/current-affairs/nepal-government-awards-hydropower-project-to-indias-satluj-jal-vidyut-nigam-1612078314-1

Nepal government awards hydropower project to India's Satluj Jal Vidyut Nigam

https://www.psuconnect.in/news/sjvn-bags-679-mw-lower-arun-hydro-electric-project-in-nepal/26491

https://www.livemint.com/news/india/satluj-jal-vidyut-nigam-bags-hydropower-project-in-nepal-11612055783725.html

https://www.business-standard.com/article/current-affairs/nepal-awards-hydropower-project-to-india-s-satluj-jal-vidyut-nigam-121013000326_1.html

आज के पाजिटिविटी पार्टनर हैं, सूरज सिंह राजावत जी (Suraj Singh Rajawat). स्पॉन्सरशिप के लिए आपको धन्यवाद.




यह बात जगजाहिर है, की नेपाल की सरकार चाइनीस कम्युनिस्ट पार्टी की गोद में बैठी हुई है.



इसी बैकग्राउंड में नेपाल ने पिछले शुक्रवार को लिया एक महत्वपूर्ण निर्णय. जिसके अंतर्गत अरुण नदी पर बनाये जाने वाले लोअर अरुण हाईडल प्रोजेक्ट का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया गया, भारतीय सरकारी कंपनी सतलुज जल विद्युत् निगम को.




679 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट के लिए नेपाल ने आयोजित की थी, इंटरनेशनल बिडिंग प्रोसेस, जिसमे भारत की सतलुज जल विद्युत् निगम और चीन की सरकारी कंपनी पावर चाइना मुख्य प्रतिद्वंदी थे




यहाँ पर ध्यान में रखना जरूरी है, की अरुण नदी पर ही बने अरुण III प्रोजेक्ट पर भी सतलुज जल विद्युत् निगम काम कर रही है, और कई भारतीय बैंक्स ने इस प्रोजेक्ट को फाइनेंसिंग भी मुहैया करवाई हुई है.




इसलिए चूँकि भारत पहले से ही रिवर के हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, इसलिए भारत की लोअर अरुण प्रोजेक्ट में भी स्वाभाविक रूचि थी.






लेकिन यहाँ पर सवाल उठता है, की नेपाल की सरकार के सर पर तो चाइनीस भूत सवार है, आखिर क्यों उन्होंने चीन के बजाये भारत को यह प्रोजेक्ट दे दिया.




तो इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा, साल अक्टूबर 2018  से ही चाइनीस ड्रैगन की दृस्टि इस प्रोजेक्ट पर टिकी हुई थी. यहाँ तक की इस प्रोजेक्ट के लिए उसने नेपाल की सरकार के साथ मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर तक कर दिए थे, मतलब भारत के लिए इस प्रोजेक्ट के दरवाजे लगभग बंद हो चुके थे.




फिर मार्च 2019 में आयोजित हुआ नेपाल इन्वेस्टमेंट समिट, जिसमे पावर चाइना ने ढोल तक पीट दिया की वह इस लोअर अरुण प्रोजेक्ट का कंस्ट्रक्शन चालू करने जा रही है.




लेकिन पावर चाइना यह बात नहीं पचा पाई, की जिस प्रोजेक्ट पर वह काम करने जा रही है, उस प्रोजेक्ट को फिर भी क्यों नेपाल की सरकार ने इन्वेस्टमेंट समिट में दिखाया. दूसरे सब्दो में चीन को यह बात नागवार गुजरी की, की जो प्रोजेक्ट उसके चंगुल में फंस चूका है, आखिर उस प्रोजेक्ट को दिखाकर नेपाल सरकार अन्य global कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित क्यों कर रही है.




जबकि नेपाल और चीन के बीच खींच तान चल रही थी, मौके का लाभ उठाया भारत ने, और बाजीगर की तरह हारी हुई बाज़ी जीत ली.




ना केवल भारत से अधिकारियो बल्कि मोदी सरकार के मंत्रियो ने नेपाल की यात्रा की, बल्कि नेपाल को भरोषा दिलाया गया, की जिन शर्तो और सुविधाओं को भारतीय कंपनी ने अरुण थ्री प्रोजेक्ट में पालन किया है, same to same ऑफर नेपाल को दिया गया लोअर अरुण प्रोजेक्ट के लिए. सरल सब्दो में भारत ने नेपाल को ऐसा attractive ऑफर दिया, जिसे वह रिजेक्ट नहीं कर सकता था.




जबकि लोअर अरुण प्रोजेक्ट को लेकर नेपाल और चीन के बीच खटास आ चुकी थी, इसी दौरान नेपाल की सरकार सभी ऑफर्स पर विचार करती रही, और अंत में जाकर पिछले शुक्रवार को यह प्रोजेक्ट भारत को मिल गया.




अब चीन की कंपनी या तो इस प्रोजेक्ट से आपने पीछे हट गई हो, अथवा बिडिंग कम्पटीशन में उसका ऑफर भारत के सामने ना टिक पाया हो, दोनों ही सूरतेहाल में जमीनी सच्चाई यह है, की भारतीय कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को बिल्ड ओन ऑपरेट एंड ट्रांसफर मॉडल पर जीत लिया है.




साथ ही साथ भारतीय कंपनी सतलुज जल विद्युत् निगम  ने नेपाल की सरकार को भरोसा दिलाया है, की इस प्रोजेक्ट पर योजना के मुताबिक समय पर काम कम्पलीट किया जायेगा, और 20 सालों बाद यह प्रोजेक्ट का मालिकाना हक़ नेपाल सरकार को मिल जायेगा.




इसी बीच नेपाल और चीन के बीच ख़राब होते सम्बन्धो का नजारा देखने को मिला, जब चीन ने नेपाल के साथ क्रॉस बॉर्डर ट्रेड को रोक दिया.




साल 2019 की बात है, जब बड़ा हंगामा बरपाया हुआ था, की नेपाल ने भारतीय रस्ते पर निर्भरता को कम करने के लिए चीन से बैकल्पिक रास्ता प्राप्त कर लिया है, उन एग्रीमेंट की कलई अब खुल गयी, जब चीन ने बिना किसी घोसणा के नेपाल की नस काट दी, फिर क्या था,कल तक भारत को गाली देने वाले नेपाली व्यापारी आज चीन को blockade के लिए कोस रहे हैं.




इन दोनों घटना क्रमो को यदि मिलाकर देखा जाये, तो साफ़ हो जाता है, नेपाल की ओली सरकार और चीन के बीच अभी द्वन्द युद्द चल रहा है. इस संघर्ष में कौन जीतता है, और कौन हारता है, यह तो समय ही बताएगा.




लेकिन उम्मीद है, की कपटी चीन का असली रूप नेपाल की सरकार और वहां के नागरिको को दिखाई दे गया होगा. जो लोग खुद नहीं सीखते हैं, उन्हें फिर समय ढंग से सिखाता है, इसलिए चालबाज़ चीन के दम पर इतराने वाले नेपाली बन्धुंओ की आंखे अब खुल जाएगी, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है.



अंत में इस वीडियो के Sponsor सूरज सिंह राजावत जी को धन्यवाद देते हुए हम यह वीडियो समाप्त करते हैं.

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