New Strategic Agreement signed with International Energy Agency
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India inks MoU with IEA for global energy security, sustainability
India to ink strategic partnership framework with IEA today
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References -
https://www.aninews.in/news/world/asia/india-inks-strategic-partnership-agreement-with-iea20210127175530/
https://www.outlookindia.com/newsscroll/india-inks-mou-with-iea-for-global-energy-security-sustainability/2018238
https://www.livemint.com/industry/energy/india-to-ink-strategic-partnership-framework-with-iea-today-11611717086141.html
https://swarajyamag.com/insta/india-to-enter-into-strategic-partnership-with-iea-to-bolster-its-energy-security
https://economictimes.indiatimes.com/industry/energy/oil-gas/branded-petrol-crosses-rs-100-mark-in-rajasthan-prices-at-all-time-high-across-the-country/articleshow/80478483.cms
https://en.wikipedia.org/wiki/International_Energy_Agency
https://en.wikipedia.org/wiki/1973_oil_crisis
आज कल तो साहब पेट्रोल पंप पहुंचते ही गाडी गर्म और जेब ठंडी हो जाती है, और हो भी क्यों ना, पेट्रोल डीजल के दामों में आग जो लगी हुई है.
हालाँकि इस महगाई के लिए मोदी साहेब को जिम्मेदार ठहराना बेहद आसान है, लेकिन यह जमीनी सच्चाई आपको भी पता है, दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक के रूप में गिने जाने वाले सऊदी अरब ने अचानक से कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती कर दी, जिसके परिणाम स्वरुप पेट्रोल और डीजल के दाम आज आसमान छु रहे हैं.
इसलिए बड़ा सवाल यह उठता है, की आखिर कब तक दुनिया इन गिने चुने आयल प्रोडूसिंग कन्ट्रीज की दया पर जीती रहेगी. कहने का मतलब यह है, की Organization of the Petroleum Exporting कन्ट्रीज OPEC से मोलभाव करने की शक्ति का विकास उन देशो ने करना चाहिए, जो कच्चे तेल की सप्लाई के लिए इन देशो पर ओवर डिपेंडेंट हैं.
ऐसा ही कुछ हुआ था, साल 1973 में खाड़ी के देशो ने इसराइल का सपोर्ट करने की सजा US, UK जापान और कनाडा जैसे देशो को देने के लिए उन्हें कच्चा तेल बेचने से मना कर दिया था. तब इस वैश्विक संकट ने जन्म दिया था, International Energy एजेंसी को. जिसका काम था, की यदि किसी तरह से crude आयल की सप्लाई को artificially disrupt कर दिया जाये, तो ऐसे संकट से कैसे मिलकर निपटा जाये. साथ ही साथ यह संघटन ग्लोबल आयल मार्किट की स्टडी करता रहता है, और रिसर्च रिपोर्ट को मेंबर देशो के साथ साझा करता है.
इसलिए यह बात बेहद स्वाभाविक थी, की भारत को भी इस संघटन में मेंबर होना चाहिए, लेकिन जब यह संघठन बना था, तब कागजी नियम यह था, की केवल Organisation for Economic Co-operation and डेवलपमेंट के सदस्य ही इसके मेंबर बन सकते हैं, दूसरे सब्दो में UN security council की तरह, इस आर्गेनाइजेशन के कमरे में बैठे देशो ने शुरुआत से ही इस कमरे का गेट भारत के लिए बंद कर रखा था.
लेकिन वह कहते हैं ना, की कोसिस करने वालों की हार नहीं होती, परिणाम स्वरुप साल 2017 में भारत को फुल मेम्बरशिप ना सही, लेकिन एसोसिएट मेम्बरशिप मिल गयी. इस प्रकार International Energy एजेंसी में पांव रखने की जगह जो मिली थी, उसका भारत ने उठाया भरपूर लाभ.
यहाँ तक की International Energy एजेंसी ने भी नोटिस किया, की भारत ने हर मीटिंग और कार्यक्रम में अपेक्षा से अधिक परफॉर्म किया हैं.
चार सालों की भारतीय मेहनत रंग लायी, जब भारत और International Energy एजेंसी के बीच आपसी सहयोग और पार्टनरशिप को मजबूत करने के लिए आज स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट फाइनल हो गया. जिसके तहत धीरे धीरे भारत को International Energy एजेंसी से मिलने बाले अधिकार और साथ में जिम्मेदारी भी बढ़ती जाएगी. यह बात कॉमन सेंस की है, की बिना कर्तव्य के अधिकार नहीं मिलते हैं. इसलिए इस एग्रीमेंट से भारत को International Energy एजेंसी में अपना प्रभाव और बढ़ाने का मौका मिल गया है.
और वैसे भी International Energy एजेंसी आयल प्रोडूसिंग कन्ट्रीज की मनमानी से तंग आ चुकी है, जाहिर है, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयल कंस्यूमर भारत International Energy एजेंसी की आवाज को और बुलंद करेगा.
अब जबकि इस संघठन में मेम्बरशिप की राह खुलती जा रही है, तो भारत के सामने एक और बाधा खड़ी है, नियम कहता है, की इस संघटन के हर सदस्य देश के पास 90 दिनों का तेल भंडार होना चाहिए. लेकिन अभी भारत के पास लगभग १० दिनों का तेल भंडार रहता है. इस कमी को पूरा करने के लिए भारत सर्कार ने साल 2018 में निर्णय लिया था, की भारत के तेल का भंडार बढ़ाकर 12 दिनों के लिए किया जाना चाहिए.
लेकिन फिर भी International Energy एजेंसी के नियम की खानापूर्ति करने में हमें लम्बा समय लगेगा, यह तो पक्का है, इसलिए जब तक भारत को फुल मेम्बरशिप नही मिलती है, तब तक बात तेजी से आगे बढ़ सके इसलिए आज हुई स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप का महत्वा बहुत अधिक है.
बेहद सरल सब्दो में सामने खड़े रूल्स एंड रेगुलेशंस के पहाड़ों के सामने भारत एक नदी की तरह आगे बढ़ने का रास्ता निकाल रहा है. और उद्देस्य सिर्फ यह है, की इस खेल को ख़तम किया जाये, जिसमे कुछ देश एक कमरे में बैठकर तय कर लेते हैं, की दुनिया में तेल का भाव ऊपर जायेगा या नीचे. पॉइंट सिंपल है, खाड़ी के देशो की मनमानी के कारण हम भारतीयों का बजट नहीं बिगड़ना चाहिए.
कॉमन सेंस कहता है, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है, इसिलए या तो हमें पुराने सघठन का हिस्सा बनना पड़ेगा, अथवा नया सघठन खड़ा करना होगा.
लेकिन यह दोनों ही प्रोसेस बेहद जटिल हैं, और इसमें समय लगेगा, वैसे भी कुछ ही पलों के भीतर पेड़ में आम नहीं लगते हैं. इसलिए मोदी सर्कार के द्वारा किये जा रहे सभी सतत प्रयासों के साथ हम मजबूती से खड़े हैं.
हाँ यदि आप को बहुत तेजाइ है, तो आप मोदी सर्कार को फेंकू और International Energy एजेंसी में भारतीय सदस्य्ता को जुमला कहने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं. अफ़सोस सिर्फ इस बात का है, काश आपने इतनी जल्दवाजी पहले दिखाई होती, तो 1973 के बाद से International Energy एजेंसी का एसोसिएट मेंबर बनने के लिए भारत को 2017 का इंतजार नहीं करना.पड़ता.
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