भारत ने किया चीन को साफ इंकार, India China Relations
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No Chinese Company Has Been Allowed To Invest In India: Government Sources
No change in policy on Chinese FDI post disengagement
Government panel to vet Chinese investments
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References -
https://www.ndtv.com/india-news/no-chinese-company-has-been-allowed-to-invest-in-india-sources-2376961?pfrom=home-ndtv_bigstory
https://www.livemint.com/news/india/no-change-in-policy-on-chinese-fdi-post-disengagement-11614077181065.html
https://www.tribuneindia.com/news/coronavirus/government-panel-to-vet-chinese-investments-216125#:~:text=According%20to%20reports%2C%20about%20150,US%20companies%20through%20Hong%20Kong.&text=The%20plan%20is%20to%20divide,sensitive%20and%20non%2Dsensitive%20categories.
जैसा की आपको पता होगा, की जब लद्दाक सीमा विवाद अपने चरम पर था, तब भारत सरकार ने चीन से आने जाने वाले निवेश की राह में रुकावट पैदा कर दी थी, जिसके अंतर्गत चीन की कोई कंपनी भारत में पैसा डाले अथवा निकाले, दोनों ही हालत में उस चाइनीस प्रस्ताव को अलग से सरकारी अनुमति लेना जरूरी हो गया था.
वैसे भी सायद आपको याद हो, जब कोरोना फैला तो भारतीय कंपनियों के भाव जमीं पर आ गए थे, और तब यह खतरा पैदा हो गया था, की कहीं ऐसा ना हो, की यह भारतीय आपदा चीन के लिए अवसर बन जाये, और वह थोक में भारत की टॉप क्लास कंपनियों में हिस्सेदारी ओने पौने दामों पर खरीद ले.
भारत सरकार के इस क़दम का प्रभाव और चाइनीस साजिस का अंदाज़ा लगाने के लिए यह जानना काफी है, की जब से FDI की पालिसी में परिवर्तन हुआ है, तभी से चाइनीस कंपनियों के 2 बिलियन डॉलर वैल्यू वाले 150 प्रस्ताव अप्रूवल के इन्तजार में सरकारी दफ्तरों में धुल खा रहे हैं.
जब चीन की कंपनियों का हज़ारों करोड़ों रुपया इस प्रकार फंसा हुआ था, तो वह बैचेन क्यों ना होगी. इसलिए जैसे ही लद्दाक में सीमा विवाद के कम होने की खबरें छपी, भारतीय मीडिया में चाइनीस कैंपेन दना दन चालू हो गयी.
पहले यह कहा गया, की अब चूँकि दोनों देशो की तलवारे म्यान में जा चुकी हैं, इसलिए अटके पड़े चाइनीस प्रस्तावों को जल्द ही मोदी सरकार अप्रूवल दे सकती है.
और फिर बाद में अखबारों में यहाँ तक छाप दिया गया, की जल्द ही भारत सरकार एक दो नहीं बल्कि 45 चाइनीस प्रस्तावों को एक ही बार में हरी झंडी दिखाने वाली है.
जबकि यह फ़र्ज़ी कैंपेन जोरों से चल रही थी ,तो हमने भी इसे कवर किया था, और आप में से बहुत से दर्शको ने हमें कमेंट करके बताया भी था, चूँकि भारत दूध का जला है, इसलिए उसने अब छांछ को भी फूंक फूंक कर पीना चाहिए.
इसलिए कोई सवाल ही नहीं उठता था, की मोदी सरकार तुस्टीकरण करते हुए चाइनीस कंपनियों के लिए रेड कारपेट बिछा दे. वैसे भी गलती एक बार हो तो उसे माफ़ भी किया जा सकता है, लेकिन यदि एक ही गलती बार बार दोहराई जाये तो वह अपराध बन जाती है.
लेकिन फिर भी हमारी मीडिया में चाइनीस प्रचार थमने का नाम ही नहीं ले रहा था, मानो अख़बारों के जरिये कोई अदृस्य तगत भारत से अपना काम निकलवाने की कोसिस कर रही हो.
एनीवे झूठ के अँधेरे को हटाने के लिए सत्य का एक ही दिया काफी है, और अब ANI के हवाले से खबर आयी है, की चाइनीस निवेश को अनुमति को लेकर भारत सरकार की निति और नियत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.और ऐसे किसी भी चाइनीस निवेश को गो अहेड नहीं दिया जायेगा, जो की भारतीय आर्थिक अथवा सामरिक सुरक्षाः के लिए शार्ट टर्म अथवा लॉन्ग टर्म में खतरा बन सकता हो.
लेकिन जो पालिसी चीन के खिलाफ बनी है, उसका खामियाज़ा कोई NRI अथवा मित्र जापान तो नहीं भुगत सकता है, इसलिए जापान की कंपनियों जैसे की Nippon पेंट्स के होन्ग कोंग के रास्ते भारत में निवेश को परमिशन दे दी गयी है.
वैसे यह है भी कॉमन सेंस की बात , जो नियम दुश्मनो के लिए बनाये गए, उनके कारण दोस्तों को नुकसान नहीं होना चाहिए. चीन को हानि पहुंचाने के चक्कर में भारत के हितों को डैमेज नहीं हो, इसीलिए तो वरिष्ठ अधिकारियो की समिति बनाई गयी है, जो की चीन अथवा होन्ग कोंग से आने वाले हर निवेश को बारीकी से देखती परखती है, और केवल उपयुक्त प्रस्तावों को ही क्लियर करती है.
हमें सांप को ऐसे मारना है, की हमारी लाठी ना टूटे. इसलिए हम सभी अपेक्षा करते हैं, की मोदी सरकार चीन के खिलाफ कड़ा रुख बनाये रखेगी. यदि कहीं हम फिर चीन पर नरम पड़ गए. तो जो लोग इतिहास से नहीं सीखते हैं, वह फिर भविस्य का शिकार बनते हैं.
आइये देखते हैं, हम अपनी पुरानी गलतियों से कुछ सीखे या नहीं. लेकिन हाल फ़िलहाल मीडिया की चाइनीस कैंपेन की हवा निकालने के लिए मोदी सरकार को धन्यवाद.
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