Smart Move of Modi ji - India to build World Class Dredgers



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CSL signs pact for building dredgers

India to attain self-reliance in building dredgers; CSL, DCI, IHC Holland ink pact: Mandaviya

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References -

https://www.livemint.com/politics/policy/india-to-attain-self-reliance-in-building-dredgers-csl-dci-ihc-holland-ink-pact-mandaviya-11614178948008.html

https://www.thehindu.com/news/cities/Kochi/csl-signs-pact-for-building-dredgers/article33928062.ece

https://www.royalihc.com/en/products/dredging

https://en.wikipedia.org/wiki/Trailing_suction_hopper_dredger


सायद आपको जानकारी हो, भारत के पास  around 7000 किलोमीटर लम्बा समुद्र तट है, जिसके मेंटेनेंस के लिए यह जरूरी होता है, पर्याप्त मात्रा में तट पर सैंड बनी रहे. तो दूसरी और हमारे यहाँ लगभग 14500 किलोमीटर लम्बा इनलैंड वाटरवे है, जिसके ऊपर से माल वाहक जहाज गुजर सकें, इसके लिए नदी की सतह से रेत को निकालना पड़ता है. समुद्र को पीछे धकेलकर प्राप्त जमीं पर कई बार Port इंफ्रास्ट्रक्टचर अथवा डिफेंस स्ट्रक्चर खड़ा करना पड़ता है.




इन सभी कामो में जरूरत पड़ती है, ड्रेजिंग की. कहने का मतलब यह है, की भारत में ड्रेजिंग की requirement बहुत बड़ी है. अब आप सवाल कर सकते हैं, की आज मैडम क्या रेता नदी और समुद्र का टॉपिक उठा कर ले आयी.




तो दोस्तों हमारी तरह आपको भी जानकर हैरानी होगी, की बड़े स्केल पर ड्रेजिंग का काम कर पाने में सक्षम Trailing Suction Hopper ड्रेजर भारत में बनते ही नहीं है. लेकिन ड्रेजिंग तो करनी ही पड़ेगी, इसलिए सरकारी कंपनी ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया  बड़े पैमाने पर ड्रेजिंग की जरूरत पड़ने पर hire करती है, विदेशी कंपनियों को. जो की सालाना 1500 से लेकर 2000 करोड़ के खर्चे पर ड्रेजिंग का काम किया करती है.




मतलब यह हर साल का खर्चा है, जो की अत्याधुनिक ड्रेजर्स को हायर करने के ऊपर खर्च हो जाता है. इसलिए ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के दिमाग की बत्ती जली और उन्होंने कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड से बात की, क्या वह सस्ते में भारत में ही Trailing Suction Hopper ड्रेजर का प्रोडक्शन कर सकती है. 




लेकिन कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के पास इन ड्रेजर की टेक्नोलॉजी थी ही नहीं. तो इस समस्या को हल किया, नेदरलैंड की कंपनी Royal IHC हॉलैंड ने.  जो की पिछले 150 सालों से ड्रेजिंग के काम में लगी हुई है.




फिर क्या था, जब ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया की डिमांड, कोचीन शिपयार्ड की कैपेसिटी और Royal IHC हॉलैंड की टेक्नोलॉजी मिली, तब फाइनल हुआ भारत और नेदरलैंड की कंपनियों के बीच नया एग्रीमेंट. 



जिसके तहत भारत में पहली बार Trailing Suction Hopper ड्रेजर का उत्पादन चालू होने वाला है, और अभी तक के एस्टीमेट के मुताबिक शुरुआत में 800 करोड़ के इस ड्रेजर के 50% कॉम्पोनेन्ट भारत में बने होंगे, और धीरे धीरे यह प्रतिशत बढ़ाया जायेगा, ताकि कोचीन शिपयार्ड और Royal IHC हॉलैंड 100 परसेंट मेड इन इंडिया ड्रेजर का प्रोडक्शन चालू कर सके.




यहाँ पर अच्छी बात यह है, की ड्रेजिंग कोरोप्रेशन ऑफ़ इंडिया का कहना साफ़ है, वह यह कैपेसिटी भारत में ही इसलिए डेवेलोप करवा रही है, ताकि भारतीय कम्पनिया भी मेड इन इंडिया सस्ता Trailing Suction Hopper ड्रेजर खरीद सकें, और फिर जब ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया को अथवा अडानी पोर्ट जैसी इंडियन प्राइवेट कंपनियों को  जरूरत पड़ेगी, तो वह टेंडर निकालेगी, जिसमे विदेशी कंपनियों के साथ साथ देशी कंपनियां भी भाग ले पायेगी.




दोनों में से जो ऑप्शन सबसे सस्ता होगा उसे मिलेगा ड्रेजिंग कॉन्ट्रैक्ट और इस प्रक्रिया में भारत बन रहा है Trailing Suction Hopper ड्रेजर में पूरी तरह से आत्मा निर्भर.




वैसे भी स्वाभाविक है.भारतीय कंपनियां मेड इन इंडिया ड्रेजर और इंडियन क्रू मेंबर्स एंड वर्कर्स के बल पर बेहद सस्ते दामों पर ड्रेजिंग कर देंगी, जिससे हर साल भारत से विदेश जाने वाला 2 हज़ार करोड़ रुपया भारत में रह जायेगा. और इस प्रकार मिलेगा कई भारतीयों को रोजगार.




जैसा की आपको अंदाज़ा लग गया होगा, ड्रेजिंग की जरूरत के ख़तम होने की बात तो छोड़ ही दीजिये, यह demand तो और बढ़ने वाली है. इसलिए इस फील्ड में हम फॉरेन ड्रेजर्स पर डिपेंडेंट हमेसा के लिए नहीं रह सकते हैं.




यह बात और है, की इस सिंपल सोलुशन का विकास करने में भारत को इतना लम्बा समय लग गया, कोई बात नहीं, देर आये दुरुस्त आये. हम तो मोदी सर्कार को बधाई देना चाहते हैं, की वह ऐसी समस्याओ का समाधान खोज रही है, जिनके बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं था. हाँ,साल दर साल इंडियन टैक्सपेयर का पैसा बर्बाद जरूर हो रहा था.




दोस्तों, टॉपिक से थोड़ा हटते हुए कई बार कुछ दर्शक कमेंट करते हैं, की मैडम आपका चैनल आगे नहीं बढ़ पा रहा है, फलाने चैनल की मिलियन सब्सक्राइबर हो गए, डिमकाने चैनल के 10 मिलियन viewers  हो गए. तो हमारा कहना सिर्फ यही होता है, की कमी हमारे कंटेंट में है, यदि कहीं हम देश तोड़ने वाली बाते अथवा नेगेटिविटी कवर करते, तो क्या पता हम कहाँ  से कहाँ पहुंच जाते. कोई बात नहीं, हम तो अपनी धीमी रेंगती प्रगति से ही संतुस्ट हैं.

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