Success of Modi ji - Indian Trade Deficit with China reduced by $11 Billion
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India's imports from China decline sharply as Atmanirbhar Bharat mission gets a boost
Why China Is Back As India's Top Trade Partner Despite Border Conflict
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References -
https://www.dnaindia.com/india/report-indias-imports-from-china-decline-sharply-as-atmanirbhar-bharat-mission-gets-a-boost-2877231
https://www.ndtv.com/india-news/china-was-again-indias-top-trade-partner-in-2020-amid-border-row-2376492
वह कहते हैं ना, की नजर बदली तो नज़ारे बदले, कस्ती ने बदला रुख तो किनारे बदले. यह वीडियो देखकर आप भी सहमत होंगे, की यह कहावत बिलकुल सही है.
हुआ यूँ की, इंडियन कॉमर्स मिनिस्ट्री के इस वित्तीय वर्ष अप्रैल से जनवरी तक के ट्रेड आँकड़े सामने आ चुके हैं, ये अभी भी फाइनल नहीं हैं, क्योकि इनमे इस फरबरी और आगामी मार्च का डेटा शामिल होना वाक़ि है.
लेकिन चूँकि अमेरिका में कोरोना अपने चरम पर है, इसलिए भारत से अमेरिका को होने वाले एक्सपोर्ट में आ गयी है गिरावट. परिणाम स्वरुप वित्तीय वर्ष 2018 के बाद एक बार फिर इस वित्तीय वर्ष के अभी तक आये आंकड़ों के अनुसार अमेरिका को पछाड़ते हुए चीन भारत का टॉप ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है.
फिर क्या था, हमारे यहाँ की मीडिया ने ऐसे behave करना चालू कर दिया, मानो की प्यासे को पानी मिल गया हो, सीमा विवाद के बाबजूद चीन भारत का टॉप ट्रेडिंग पार्टनर बन गया. मेक इन इंडिया फ़ैल हो गया, आत्मा निर्भर भारत अभियान की हवा निकल गयी, ऐसे ही कमैंट्स से अख़बारों के पन्ने भर गए.
परन्तु यदि हम आकड़ों को देखें तो पाएंगे, ऐसा नहीं है, की चीन और भारत के बीच टोटल ट्रेड बढ़ गया है, बल्कि रियलिटी में यह तो 5.64 परसेंट घटा है. वह तो चूँकि अमेरिका के साथ होने वाला भारतीय टोटल ट्रेड कहीं ज्यादा घट गया, इसलिए चीन अमेरिका से आगे निकल गया.
बेहद सरल सब्दो में, चीन की लकीर लम्बी नहीं हुई हैं, बल्कि अमेरिका की लकीर कोरोना वायरस ने मिटा दी है, इसलिए चीन की लकीर 5.64 प्रतिसत मिटने के बाबजूद सबसे लम्बी दिखाई पड़ रही है.
अब आप में से कुछ लोग कहेंगे, चाहे चीन नंबर one हो या अमेरिका टॉप करे, हमें क्या. तो दोस्तों यहाँ पर बड़ी बात यह है, की पिछले साल की तुलना में जहाँ भारत से चीन को होने वाला एक्सपोर्ट 16.15 फीसदी बढ़ गया, वही चीन से भारत में होने वाला इम्पोर्ट 10.87 परसेंट कम हो गया.
सिंपल शब्दों में इसका मतलब यह है, की भारत का एक्सपोर्ट बढ़ने एवं चीन से इम्पोर्ट घटने के कारन चीन के साथ व्यापार करने से भारत को होने वाला व्यापारिक घाटा 20 प्रतिशत कम हो गया है. यह परिवर्तन कितना प्रभावशाली है, यह समझने के लिए यही काफी है, की इस प्रकार भारत के १ या २ नहीं बल्कि ११ बिलियन डॉलर बच गए हैं. दोस्तों व्यापार में तो घाटे का कम होना भी अच्छा माना जाता है. वैसे भी कॉमन सेंस कहता है, की पैसा बचाना भी पैसा कमाने जैसा होता है.
साथ ही साथ ये जो 11 बिलियन डॉलर बचे हैं, उनके कारण वोकल फॉर लोकल कैंपेन को बल मिला होगा, इंडियन इंडस्ट्रीज और कम्पनीज का माल ज्यादा बिका होगा, वैसे तो नई नौकरियां भी मिली होंगी, लेकिन यदि रोजगार के नए अवसर पैदा ना भी हुए हों, तो भी कम से कम कोरोना के कहर के बाबजूद कुछ नौकरियां तो पक्के से बची होंगी.
इस प्रकार जिन कॉमर्स मिनिस्ट्री के आंकड़ों के सहारे मोदी जी के मुँह पर कालिख पोतने की कोसिस हमारी मीडिया ने की थी,यदि उसी डेटा को सही ढंग से देखा जाये, तो वह मोदी जी का नाम ही रोशन कर रहे हैं. साथ ही साथ हमें साफ़ दिखाई दे जाता है, की आत्मा निर्भर भारत अभियान भी काम कर रहा है, और मेक इन इंडिया ने भी उड़ान भर ली है.
जबकि यह ट्रेड आँकड़े हम सभी के अनुमान के मुताबिक सही जा रहे हैं, हमारे पैर अभी भी जमीं पर ही हैं. और हम सभी को पता है, की ना तो मोदी जी अलादीन है, और ना ही PLI स्कीम कोई चिराग है. चीन को भी दुनिया की नंबर two इकॉनमी बनने में 40 साल लग गए. १ दिन में तो जनाव जंगल तक खड़ा नहीं होता है, और हम यहाँ पर बात कर रहे हैं, भारत को ग्लोबल फैक्ट्री बनाने की.
इसलिए मोदी जी की मुहीम कितनी सफल होती है, इसका निर्णय करने का अधिकार हम भविस्य से छीनने की कोसिस नहीं कर रहे हैं. हमारी अपेक्षा सिर्फ यह है, की मोदी जी की सक्सेस को लेफ्ट लिबरल मीडिया ऐसे ना दिखाए की वह दुनिया को फेलियर लगने लगे.
आपको क्या लगता है, इस वित्तीय वर्ष के अभी तक आये आकंड़ो में आपको क्या दिखती है, भारत की जीत या हार?? नीचे कमेंट सेक्शन में हमें लिखकर जरूर बताएं.
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