भारत ऑस्ट्रेलिया जापान तीनो ने मिलकर निकाली चीन की हवा


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China wary as India, Australia, Japan push supply chain resilience

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References - 

https://www.thehindu.com/news/national/china-wary-as-india-australia-japan-push-supply-chain-resilience/article34431964.ece


कोरोना के जिन्न को बोतल से कब किसने और कैसे बहार निकाला, जबकि इस पर वाद विवाद अभी बना हुआ है, लेकिन इस पुरे कोरोना क्राइसिस ने यह दिखला दिया है, की किसी भी एक माल के अनेक सोर्स नहीं होने का क्या दुष्परिणाम होता है.


और यह सप्लाई चैन मैनेजमेंट का बहुत ही बेसिक कांसेप्ट है, की आपकी सप्लाई चैन ऐसी होनी चाहिए, की वह संकट के समय बिना टूटे और बाधित हुए प्रोडक्शन को बराबर चालू रख सके. लेकिन इस मूलभूत सिद्धांत का उल्लंघन किया गया,  उन लोगों के द्वारा जो जिन्होंने शिक्षा तो प्राप्त की थी दुनिया के बड़े बड़े बिज़नेस स्कूल में, लेकिन प्रॉफिट की गुलामी करते करते कब वह चीन के गुलाम हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला.


और हमें अच्छे से याद है, आप में से कई दर्शक तो कोरोना के पहले से ही इस सप्लाई चैन के संकट के प्रति आशंका प्रकट करते आ रहे हैं.  बस कोरोना ने यह कॉमन सेंस दुनिया के बड़े बड़े नेताओं सरकारों के दिमाग में डाल दिया है, की उन्हें लचीली सप्लाई चैन का अब विकास करना ही होगा.


और इसी सन्दर्भ में पिछले एक साल से बात चल रही है, भारत ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच एक ऐसी सप्लाई चैन का विकास करने की, जो की लचीली और विस्वस्नीय हो.


और पिछले मंगलवार को इन तीन देशो ने आधिकारिक रूप से सप्लाई चैन रेसिलिएन्स इनिसिएटिव SCRI लांच कर दिया. 


जबकि इस पहल का दुनिया में कहीं भी विरोध नहीं हुआ, अरे साहब  विरोध तो छोड़ दीजिये, इस पुरे घटनाक्रम को आम खबर मानकर नजरअंदाज कर दिया गया.


लेकिन  चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, तभी तो जबकि मगलवार को इस पुरे कार्यक्रम में चीन का नाम तक किसी ने नहीं लिया. फिर भी इस नई पहल के खिलाफ बुधवार को चीन ने जमकर भड़ास निकाली .

चाइनीस प्रवक्ता का कहना था, की यह पूरी पहल unrealistic है, क्योकि सप्लाई चैन का विकास और विस्तार बाजार और कम्पनिया अपनी सुविधा और लाभ हानि को ध्यान में रखते हुए करती है.


इस प्रकार चीन के प्रवक्ता का कहना यह है, की यदि देश सप्लाई चैन को पुनर्विकसित करने की कोसिस करेंगे, तो वह असफल होंगे.


साथ ही साथ उनका विचार था, की यदि आर्टिफीसियल तरीके से सप्लाई चैन और प्रोडक्शन कैपेसिटी का ट्रांसफर किया गया, तो यह ना तो इन देशो की घरेलु अर्थव्यवस्था में सुधार और ना ही ग्लोबल इकॉनमी की रेकवेरी में मदद करेगी.


आज चीन यह सब बातें दे रहा है, लेकिन क्या चीन हमें बताएगा, की वह ग्लोबल फैक्ट्री कैसे बना?? 

यदि 1998 - 99 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन  ने चीन को गले नहीं लगाया होता, और यदि 2001 में चीन WTO का हिस्सा नहीं बना होता, तो क्या आज पूरी दुनिया में चाइनीस माल की बाढ़ आ पाती. यदि तब देशो ने चीन को खुली छूट ना दी होती, तो आज भी चीन की गिनती गरीब देशो में की जा रही होती.


असल बात आपको भी पता है, की चीन आज कल जो सप्लाई चैन मैनेजमेंट का ज्ञान पेल रहा है, वह सिर्फ इसलिए है, क्योकि वह किसी न किसी तरीके से अपने ग्लोबल फैक्ट्री के स्टेटस को कायम रखना चाहता है.

अब जबकि यह एग्रीमेंट हो गया है, चीन को चाहे कितनी ही चिनमिनी उठती रहे, हम अपेक्षा करते हैं, की यह तीनो सरकारें अपने अपने देश में ऐसी पालिसी बनाएगी, जिससे कंपनियों को अपनी सप्लाई चैन reconfigure करने की प्रेरणा मिले.


जाहिर है, यह सब आसानी से तो होगा नहीं, क्योकि इन कंपनियों को चाइनीस बंधुआ मजदूरों से सस्ते में प्रोडक्शन करवाना बड़ा प्रॉफिटेबल प्रतीत होता है, इसलिए चीन के खिलाफ तो हम आगे बढ़ गए, अब हमें इन प्रॉफिट की गुलाम कंपनियों को भी सही रस्ते पर लाना होगा, जाहिर है, इस दौरान बजाज ऑटो की तरह यह कंपनियां अख़बारों में रोना गाना तो मचाएगी ही.


लेकिन सही काम करने का सही समय अब आ चूका है. हमें विस्वास है, तीन देशो की यह पहल अब आंदोलन बनकर ही रहेगी.


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