कश्मीर पर टर्की की टर टर को भारत ने बंद किया
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References -
https://indianexpress.com/article/india/unga-presidents-kashmir-remarks-unacceptable-mea-7334751/
https://www.hindustantimes.com/india-news/turkey-invokes-mahatma-gandhi-and-rumi-as-it-delivers-covid-19-aid-to-india-101622214323484.html
अभी दो तीन पहले ही हमने चर्चा की थी, भारत और टर्की के बीच सम्बन्ध सुधरते दिखाई दे रहे हैं, जब टर्की ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में काम आने वाले उपकरण और दवाइयां भारत के लिए हवाई जहाज पर लोड की थी. और यह भी स्वीकार किया, की भारत ने हमेसा टर्की की मदद की है, इसलिए बदले में सहायता भेजकर टर्की सिर्फ अपना कर्त्तव्य पूरा कर रहा है.
लेकिन तब आप में से अधिकांश दर्शको ने बिलकुल सही कहा था, की सूरज पश्चिम से उग सकता है, लेकिन टर्की और भारत के बीच कभी दोस्ती नहीं हो पायेगी.
क्योकि वहां टर्की से हवाई जहाज उड़ा ही था, और टर्की के डिप्लोमेट जो की UN जनरल असेंबली की प्रेजिडेंट के पद पर बैठे हुए है, उन्होंने टर्की का असली रूप दिखा दिया.
उन्होंने पाकिस्तान यात्रा के दौरान कहा, की यह पाकिस्तान का कर्तव्य है, की वह यूनाइटेड नेशंस के प्लेटफार्म पर कश्मीर के मुद्दे को और मजबूती के साथ उठाता रहे.
जिससे साफ़ हो गया, की भले ही टर्की के ऑफिसियल एक ऐसे पद पर बैठे हैं, जहाँ उन्हें किसी देश विशेष का पक्ष नहीं लेना चाहिए, फिर भी वह पाकिस्तान में UN जनरल असेंबली के प्रेजिडेंट नहीं बल्कि टर्की के एक छूट भइये नेता की तरह बोल रहे थे.
जाहिर है, वह अपने पावर का नजायज फायदा उठा रहे थे, वह भी तब जबकि उनके बगल में खड़े थे, पाकिस्तान के विदेश मंत्री.
मतलब साफ़ है, इससे पहले की टर्की का सामान भारत पहुंच पाता, टर्की ने भारत के साथ उसके सुधरते सम्बन्धो का सत्यानाश कर दिया, और यह सिद्द हो गया, की टर्की आज भी पाकिस्तान का पिछलग्गू ही है.
UN जनरल असेंबली की प्रेजिडेंट के रूप में टर्किश नेता ने जो काम किया, वह स्वाभाविक था, की भारत को नागवार गुजरेगा,
भारत ने आधिकारिक रूप से कह दिया, की जिस पद पर वह बैठे हैं, उन्होंने उसी पद की गरिमा का उल्लंघन किया है, और उनके द्वारा कश्मीर मुद्दा उठाने का ठेका पाकिस्तान को दिए जाने का भारत पुरजोर विरोध करता है.
सायद टर्की ने सोचा होगा, की भारत को थोड़ा सा कोरोना का सामान दे कर, उसे भारतीय हितों को चोट पहुंचाने की आजादी मिल गयी है,
यह भी हो सकता है, की भारत की मदद करने के बाद वह पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धो को संतुलन में बनाये रखने की नापाक कोसिस कर रहा हो.
टर्की के जो भी निजी राजनैतिक हित हो, हमें उनसे कोई लेना देना नहीं है, लेकिन जब आप किसी अंतरास्ट्रीय पद पर बैठे हैं, तो आप अपने देश के स्वार्थ नहीं साध सकते हैं, आपकी भूमिका को निष्पक्ष होना ही पड़ेगा.
लेकिन इसी बीच टर्की का कोरोना सामान भारत में लैंड हो गया है, जो की अपने साथ महात्मा गाँधी जी का सन्देश लेकर आया है. जिस तरह अँधेरे के बाद सूरज उगता है, ठीक उसी प्रकार निराशा के बाद उम्मीद उठती है.
देख लीजिये, अब टर्की हमें बताएगा, की सूरज कब उगता है, काश टर्की ने थोड़ा सा ज्ञान अपने नेता को दिया होता, जो की जिस थाली में खा रहे हैं, उसी में छेद करने में लगे हुए हैं.
लेकिन अब जबकि टर्की की गुस्ताखी की सजा भारत ने भी स्टेटमेंट जारी करके दे दी है, फिर भी हमें लगता है, की भारत ने अब टर्की की मदद स्वीकार नहीं करनी चाहिए, आखिर कब तक हम इन सरफिरे देशो के सामने कब तक सर झुकाते रहेंगे.
वक़्त आ गया है, की हम टर्की को साफ़ साफ़ सन्देश दे, की उसका दुश्मनी से भरा यह दोहरा चरित्र भारत अब पचा नहीं पायेगा.
आपको क्या लगता है, की क्या हमने टर्की से आयी कोरोना सामग्री को लौटा देना चाहिए अथवा अब चूकि सामान आ ही गया है, तो हमने उसका उपयोग कर लेना चाहिए??
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