तालिबान को समझ आ गया, "बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया"

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Taliban has adopted concepts of deflection from Pak ISI's playbook: Report

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References -

https://www.hindustantimes.com/world-news/want-to-continue-our-political-trade-ties-with-india-taliban-leader-stanekzai-101630233039985.html

https://www.aninews.in/news/world/asia/taliban-has-adopted-concepts-of-deflection-from-pak-isis-playbook-report20210829181009/


सायद आपने अखबारों में पड़ लिया होगा, की जबकि अफ़ग़ानिस्तान में मार काट मची हुई है, भारतीय अखबारों में इस बात की चर्चा जोरों से हो रही है, की ड्राई फ्रूट्स और हींग को जल्दी जल्दी खरीदो नहीं तो उनका भाव आसमान पर चढ़ जायेगा, और इस किल्लत का कारण यह बताया जा रहा है, की तालिबान के आ जाने से भारत में अफ़ग़ान इम्पोर्ट बंद हो गया है. 


देख लीजिये, उधर अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान भारत की बर्बादी की व्यवस्था कर रहा है, इधर भारत में लोगों को ड्राई फ्रूट्स की पड़ी है.


जाहिर है, भारत कितना पानी में है, यह बात तालिबान को भी पता है, इसलिए तालिबान के दूसरे नंबर के नेता ने कहा है, की तालिबान चाहता है, की चूँकि भारत एक महाशक्ति है, इसलिए पहले की तरह भारत के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्ध बने रहेंगे.


पाकिस्तान से होकर भारत के साथ व्यापर चलता रहेगा, और तो और भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच एयर कॉरिडोर भी चालू रहेंगे. ताकि अफ़ग़ानिस्तान अपना माल भारत के बाजार में दबा कर बेच सके.


यहाँ तक की तालिबान के इतने महत्वपूर्ण नेता ने चाबहार पोर्ट के बारे में सकारात्मक बातें कही, लेकिन वह यह बताना भूल गए, की वह भारत से माल खरीदेंगे की नहीं.


और इसी बात से हमें दिक्कत भी है, उल्टा हमारे लिए तो यह रेड फ्लैग है, चीन से हो या तालिबान से व्यापार यदि होना भी चाहिए तो दोनों के बीच होना चाहिए. अब यह तो हो नहीं सकता, की भारत अफ़ग़ानिस्तान के ड्राई फ्रूट्स खरीदकर उसे पैसे देता रहे, और उसी पैसे का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों में धड़ल्ले से किया जाये.


दो तरफा व्यापर के बात तो छोड़ दीजिये साहब, तालिबान से जो यह कानो को मीठी मीठी सुनाई देने वाली चासनी भरी बातें आ रही है, वह और कुछ नहीं भारत को भ्रमित करने का जाल है,  ताकि भारत असमंजस में पड़ा रहे. इसी सवाल में उलझा रहे, की तालिबान दोस्ती चाहता है या दुश्मनी. और कुछ नहीं दोस्तों, तालिबान इस प्रकार मीडिया की मक्खियों को गुड़ का लालच दे रहा है.



वैसे भी जिस तरह माइक मुँह के सामने आते ही तालिबान शांति की बंसी बजाने लगता है, लेकिन अफ़ग़ान जमीं आज भी खून से लाल हो रही है, उससे कम से कम एक बात तो साफ़ हो जानी चाहिए,  की पाकिस्तानी टट्टुओं की कथनी और करनी अलग अलग है.


दो मुहे सांप हैं यह, इसलिए जो गलती बेवक़ूफ़ बाइडेन ने कर दी, वह मोदी साहेब नहीं करेंगे, ऐसी उम्मीद है. वैसे भी बाइडेन के पांव कब्र में लटके हुए हैं, इसलिए वह भविस्य के बारे में भला टेंशन क्यों लेंगे.


तालिबान के खिलाफ अफ़ग़ान रेजिस्टेंस मूवमेंट को अमेरिका और भारत सपोर्ट ना दें, इसी एक उद्देश्य से तालिबान रोजाना झूठ का यह तिलिस्म रचता चला जा रहा है.


जहाँ तक तालिबान का सवाल है, तो उन्होंने पाकिस्तान और खासतौर पर ISI से उन्होंने दोगलेपन में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त कर ली है, इसलिए जब हम पाकिस्तान पर भरोषा नहीं कर सकते हैं, तो पाकिस्तान पुत्र तालिबान पर विस्वास करने का तो सवाल ही नहीं उठत्ता है. वैसे भी जब बाप नम्बरी हो,  तो बेटा दस नम्बरी ही होता है.


लगता है, संगीत से नफरत करने वाले तालिबानियों ने नुसरत फ़तेह अली खान का सांग "कहना गलत गलत और छुपाना सही सही", सुन रखा है. और वह उसी गाने में बताई राह पर चल रहे हैं.


इसलिए जहाँ तक हम समझ सकते हैं, तालिबान की बातों में ट्रेड खोलकर भारत ने अपने दुश्मन को धनवान बलवान नहीं बनाना चाहिए. 


आपको क्या लगता है, की शांतिदूत तालिबान के कहे अनुसार क्या भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक तरफा ट्रेड का रास्ता खोल देना चाहिए??


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