OIC की मीटिंग करवाना पाकिस्तान को पड़ गया महंगा
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Central Asian nations foreign ministers to skip Pak's OIC meet pushing for Taliban recognition, instead attending India-led dialogue on Afghanistan
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Reference -
https://www.aninews.in/news/world/asia/central-asian-nations-foreign-ministers-to-skip-paks-oic-meet-pushing-for-taliban-recognition-instead-attending-india-led-dialogue-on-afghanistan20211219042639/
आप सभी को अच्छे से जानकारी है, की अफ़ग़ानिस्तान की तालिबानी सर्कार को अंतरास्ट्रीय मान्यता दिलवाने के लिए आज कल पाकिस्तानी खूब पसीना बना रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान में यह होगा तो वह हो जायेगा, अफ़ग़ानिस्तान का दिवालिया निकल गया, तो दुनिया के लिए अच्छा नहीं होगा, जब इन पाकिस्तानी गीदड़ भभकियों की एक ना चली, तो पाकिस्तान ने अपना फेवरेट रिलिजन कार्ड खेल दिया,
आज कल वह अफ़ग़ानिस्तान के ऊपर 57 देशो के आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) की बैठक का आयोजन कर रहा है, ताकि जब तक पश्चिमी देशो से पैसे नहीं मिल पाते तब तक OIC से दो पैसे का जुगाड़ हो जाये.
लेकिन जिन 57 देशो की महफ़िल पाकिस्तान ने बिठाई थी, उसी महफ़िल में शामिल होने वाले पांच सेंट्रल एशिया के देशो कजाखस्तान, किर्गीज़ रिपब्लिक, ताजीकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विदेशी मंत्री तो भारत में आ चुके थे.
क्योकि इन पांच देशो को भारत में इंडिया सेंट्रल एशिया डायलाग में शामिल होना है, जिसका खासा फोकस अफ़ग़ानिस्तान पर रहने वाला है.
इस प्रकार साफ़ हो जाता है, की अफ़ग़ानिस्तान के पांच सेंट्रल एशियाई पड़ोसियों को पाकिस्तान पर रत्ती भर भी भरोषा नहीं है, तभी तो उनके विदेश मंत्री पाकिस्तान ना जाकर भारत में मीटिंग कर रहे हैं.
यह एक बार फिर साफ़ कर देता है, की यह पांच देश अफ़ग़ानिस्तान को धर्म के नजरिये से नहीं, बल्कि अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थयित्वा की नजर से देखते हैं.
वैसे भी अफ़ग़ानिस्तान को लेकर जो चिंताएं भारत की है, वही दुःख दर्द इन देशो को भी है, इसलिए जब उनके राष्ट्रीय हित भारत के साथ मिलते हैं, तो जाहिर है, वह पाकिस्तान के बजाय भारत को तरज़ियत देंगे.
जहाँ तक अमेरिका का सवाल है, वह तो चुपचाप अफ़ग़ान बजट के कई बिलियन डॉलर दवाये बैठा है, और पाकिस्तान के द्वारा पैनिक क्रिएशन की तमाम कोशिशों के बाबजूद बाइडेन प्रसाशन के कान पर जून तक नहीं रेंग रहा है.
बड़े बेआबरू हो कर जिस तरह अमेरिकी अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर निकले, उसके बाद उन्हें अफ़ग़ानिस्तान में रूचि नहीं रह गयी है, अब अमेरिका आगे और पाकिस्तान पीछे पीछे तालिबानी कटोरा लिए दौड़ रहा है.
कुल मिलाकर अब रोता हुआ लावारिश अफगानी बच्चा पाकिस्तान के हाथ में रह गया है, और यह जिम्मेदारी उसने खुद अपने सर पर ली है.
अमेरिका से पाकिस्तान को गिले शिकवें होंगे, समझ में आता है, लेकिन यहाँ तो उसके भाई पांच पांच सेंट्रल एशियाई देश जो की पाकिस्तान की ही तरह अफ़ग़ानिस्तान के साथ बॉर्डर साझा करते हैं, वह तक पाकिस्तान के साथ एक कमरे में बैठने के लिए राजी नहीं है. इस प्रकार पाकिस्तान अपनों के बीच अकेला महसूस कर रहा है.
भारत की जीत और पाकिस्तान की हार से ज्यादा यह दिखलाता है, की पाकिस्तान जितना फड़ फड़ायेगा, उतना ही वह अफ़ग़ानिस्तान के रेतीले दल दल में खुद बा खुद धंसता चला जायेगा.
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