बलवान BPCL ने कर दिया बड़ा ऐलान


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 Privatisation-bound BPCL replaces Polyols with Polypropylene project in Kochi

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Reference -

https://www.newindianexpress.com/business/2022/feb/15/privatisation-bound-bpcl-replaces-polyols-with-polypropylene-project-in-kochi-2419852.html

https://www.thehindubusinessline.com/companies/bpcl-scraps-planned-11130-crore-polyols-plant-at-kochi-refinery/article65046023.ece

बात है जनवरी 2019 की, जब मोदी जी ने आधारशिला रखी थी, BPCL के नए पेट्रोकेमिकल प्लांट की. जिसमे 11 हज़ार करोड़ का निवेश किया जाना था.


लेकिन अभी कुछ ही दिनों पहले BPCL ने उस प्लांट के प्रोजेक्ट को डाल दिया कचरे के डब्बे में. तो आप में से कुछ लोग पप्पू पुजारियों की तरह जरूर कहेंगे, की देखो देखो मुझे तो पहले से ही पता था, की मोदी जी फेंकू हैं, झूठ बोलते हैं.


मोदी जी को कोसना हो, तो बहाने वैसे भी आपको भर भर के मिल जायेंगे, लेकिन यहाँ पर बड़ा सवाल यह है, की आखिर क्यों BPCL को पाली ऑल का पेट्रोकेमिकल प्लांट कैंसिल करना पड़ा, जबकि मोदी सरकार ने उसे जमीं भी दे दी थी, और कंस्ट्रक्शन का काम भी चालू हो गया था.


दरअसल BPCL ने किया कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस, जिसके अनुसार पहले की तुलना में अब प्रोजेक्ट लाभकारी नहीं रह गया था, बोले तो प्लांट को लगाने में जितना पैसा लग रहा था, उससे उतना पैसा कमाने की उम्मीद नहीं बची थी.


आपको तो पता है, पिछले दो सालो में मेटल के दाम उछल चुके हैं, टेक्नोलॉजी भी महगी हो चुकी है, नया प्लांट लगाया जाता है, प्रॉफिट कमाने के लिए, घाटा खाने के लिए नहीं.


इसलिए BPCL ने जो किया, वह हमारी दृस्टि में सही जान पड़ता है, अब आप सुनिए ध्यान से, उसी जगह अब लग रहा है, प्लास्टिक के लिए दूसरा पेट्रोकेमिकल बनाने का प्लांट.


अच्छी बात यह है, की इस पेट्रोकेमिकल की डिमांड पहले से बहुत है, और इसे लगाने के लिए पैसा भी कम खर्च करना पड़ता है. इस प्रकार जिस जमीं पर मोदी जी ने नए प्लांट की आधार शिला रखी थी, वहां नया प्लांट अभी भी लग रहा है.


सिर्फ उससे पैदा होने वाला पेट्रोकेमिकल बदल गया है, प्लांट से कौन सा पेट्रोकेमिकल बनता है, उससे हमें क्या. बस पेट्रोकेमिकल की डिमांड होनी चाहिए, और उसे बनाना मुनाफे का सौदा होना चाहिए.


नहीं तो यदि पेट्रोकेमिकल को बनाने में घाटा होता, तो अंत तह उसका बिल फटता आम टैक्स पेयर पर ही. BPCL को घाटा नहीं होता किसी भी केस में पैसा डूबता तो भारतीयों का डूबता.


यही है एप्रोच का अंतर, पुरानी सरकारें होती तो प्रॉफिटेबल न होने के बाबजूद कमिशन खाकर प्लांट खड़ा कर देती, ताकि फिर उसे चलाने की कीमत आम भारतीय हर पेट्रोल पम्प पर अदा करता रहे.


लेकिन मोदी सरकार को जैसे ही पता चला, की धंधे में नफे की जगह नुकशान हो सकता है, उसने तुरंत धंधा ही बदल दिया, 


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